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Puja Path ke Jaruri Niyam: अपने ईष्ट की आराधना यानी पूजा या उपासना तो सभी करते हैं लेकिन सबका तरीका थोड़ा न थोड़ा अलग होता ही है. आज हम जानेंगे कि व्यक्ति को किस तरीके से अपने भगवान का पूजन करना चाहिए. यूं तो उपासना करना भाव पूर्ण कार्य है, यानी आप शुद्ध हृदय से उपासना करें. लेकिन आजकल सभी की जिंदगी इतनी व्यस्त हो गई है कि ऐसा भाव बन ही नहीं पाता है. फिर भी पूजन में कुछ नियमों का पालन जरूर करना चाहिए और एक चरणबद्ध तरीके से धीरे-धीरे अपनी साधना को अपग्रेड करना चाहिए. विधि-विधान से की गई उपासना मन को मजबूत करती है. ऐसा नियमित तौर पर करने से बहुत लाभ होता है.
- उपासना करने से पहले स्नान करें और फिर शांत चित्त से पूजा घर में जाएं.
- किसी भी प्रकार की कोई जल्दी न करें. भले ही 5 मिनट पूजा करें लेकिन उस बीच में अपने ऑफिस और घर का तनाव या व्यवस्तता आदि सब भूल कर केवल पूजा में फोकस करें.
-पूजा शुरू करने से पहले पूजा स्थान को साफ अवश्य कर लें.. फोटो को साफ कपड़े से पोंछ लें, यदि भगवान की कोई मूर्ति है तो उसको स्नान करा लें.
-पूजा में सबसे पहले पंच तत्वों की मौजूदगी होनी आवश्यक है. ये पंच तत्व हैं- अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल और आकाश. जब हम पूजा घर में पहुंचते हैं तो हमारे पास इन पंचतत्व में तीन तत्व पहले से ही उपस्थित रहते हैं, आकाश, वायु और पृथ्वी. बस हमें आवश्यकता पड़ती है अग्नि तत्व की और जल तत्व की इसलिए सबसे पहले एक छोटा सा देसी घी का दीपक जलाएं. इसके अलावा कलश में साफ जल रखें. इसके बाद आप आंख बंद करके प्रार्थना करिए और जो भी आपकी समस्याएं हैं, वह प्रभु से शेयर करें.
-प्रभु को उन सब चीजों के लिए धन्यवाद दें जो उन्होंने अब तक दिया है. प्रभु को उनकी आपकी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद दें. हर रोज ढेर सारी समस्याएं ही न गिनाएं.
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-उपासना प्रारम्भ करते ही सर्वप्रथम गणपति जी को प्रणाम करना अनिवार्य है, पूजा का श्रीगणेश करने के लिए गणेश जी की उपासना तो करनी है.
-बांस की डंडी वाली अगरबत्ती का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि बांस का प्रयोग पूजा में निषिद्ध है. इसके स्थान पर आप धूपबत्ती का प्रयोग करें.
- आखिर में एक छोटे से कलश में जल लेकर घर की तुलसी माता को जल चढ़ाएं, अगर आपके यहां तुलसी नहीं लगी है तो आज ही ले आइए. तुलसी मां का आशीर्वाद लेना बहुत आवश्यक है.
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-पूजा स्थान पर एक शंख होना चाहिए और यदि आप पूजा के उपरांत शंख बजाते हैं तो यह आध्यात्मिक एवं स्वास्थ्य दोनों ही दृष्टि में बहुत ही लाभप्रद होगा.
-यदि संभव हो तो पूर्णिमा और अमावस्या अथवा किसी एक दिन हवन अवश्य करें.
-पूजा करने के पश्चात घंटी अवश्य बजानी चाहिए.