Dead Body In Space: अगर किसी मिशन के दौरान, अंतरिक्ष में किसी एस्ट्रोनॉट की मौत हो जाए तो उसकी लाश का क्या होगा? क्या शव को धरती पर वापस लाया जाएगा या उसे वहीं छोड़ दिया जाएगा?
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Death In Space: जरा सोचिए! इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) से निकलकर कोई एस्ट्रोनॉट स्पेसवॉक कर रहा हो. अचानक कार्डियक अरेस्ट से उसकी मौत हो जाए तो? अभी तक वैज्ञानिकों को ऐसी परेशानी से नहीं जूझना पड़ा है. अंतरिक्ष में अब तक कुल 21 लोगों की मौत हुई है. ये सभी मौतें स्पेसक्राफ्ट में खराबी की वजह से हुईं जिसमें पूरा क्रू मारा गया. लेकिन क्या हो अगर किसी एक एस्ट्रोनॉट की तबीयत बिगड़ने से मौत हो जाए और बाकी क्रू सही-सलामत रहे? जाहिर है उन्हें लाश को जल्द से जल्द ठिकाने लगाना होगा. पर कैसे?
अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA का प्रोटोकॉल कहता है कि धरती की निचली कक्षा वाले मिशनों में किसी एस्ट्रोनॉट की मौत होने पर, क्रू लाश को एक कैप्सूल में रखकर कुछ ही घंटों में धरती पर भेजेगा. अगर चंद्रमा पर किसी की मौत हो तो कुछ दिनों के भीतर लाश वापस आएगी. ऐसे मामलों में लाश को संभालकर रखना प्राथमिकता नहीं होती, बाकी क्रू को सकुशल वापस धरती पर लाना जरूरी हो जाता है.
अगर एस्ट्रोनॉट की मौत धरती से दूर किसी लंबे मिशन के दौरान होती है तो क्रू का फौरन वापस लौट पाना संभव नहीं होगा. उस स्थिति में शव को एक अलग चैंबर या खास तरह के बॉडी बैग में रखा जा सकता है. लेकिन यह सब तभी संभव होगा जब मृत्यु स्पेसक्राफ्ट या स्पेस स्टेशन के भीतर हुई हो.
अगर कोई अंतरिक्ष में ऐसे ही बाहर मौजूद हो, बिना किसी स्पेससूट के, तब क्या होगा? उस स्थिति में एस्ट्रोनॉट की फौरन मौत हो जाएगी. अंतरिक्ष के लो-प्रेशर वाले वैक्यूम में शरीर की सतह पर मौजूद सारा पानी फौरन गैस में बदल जाएगा. यानी शव की त्वचा, आंखें, मुंह, कान और फेफड़े सब गैस हो जाएंगे. LiveScience की रिपोर्ट के अनुसार, शरीर में बचा बाकी पानी भी जम जाएंगा क्योंकि अंतरिक्ष का तापमान -270 डिग्री सेल्सियस के आसपास रकता है. पानी के गायब हो जाने और फिर शरीर के जम जाने से लाश किसी ममी जैसी स्थिति में पहुंच जाएगी.
बिना स्पेससूट के किसी एस्ट्रोनॉट का अंतरिक्ष में यही हाल होगा. लाश का क्या होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई बैक्टीरिया है या नहीं. अंतरिक्ष में बैक्टीरिया तीन साल तक जिंदा रह सकते हैं. अगर लाश पर कोई बैक्टीरिया जिंदा रहे तो वह शव को खाना शुरू कर देंगे. अंतरिक्ष का ताकतवर रेडिएशन भी लाश पर असर डालेगा. लाश कहां जाएंगी, यह इसपर निर्भर करता है कि उसे किस दिशा में फेंका गया है. अगर लाश की किसी और ऑब्जेक्ट से टक्कर नहीं होती तो वह उसी दिशा में आगे बढ़ती रहेगी.
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अगर मृत्यु पृथ्वी के आसपास बाहरी अंतरिक्ष में हुई होगी तो लाश कक्षा में जाएगी. चूंकि काफी सारा अंतरिक्ष मलबा और सैटेलाइट्स कक्षा में मौजूद हैं, ऐसे में लाश के उनसे टकराने की संभावना काफी ज्यादा है. इसीलिए NASA की सलाह है कि शव को किसी भी ग्रह की कक्षा से दूर छोड़ा जाए.
अगर लाश किसी सैटेलाइट या मलबे से नहीं टकराती तो अंतत: यह पृथ्वी की ओर खिंच आएगी और गुरुत्वाकर्षण उसे वायुमंडल की ओर खींचेगा. ऐसी स्थिति में लाश फिर से वायुमंडल में दाखिल होगी और जल उठेगी.
किसी स्पेसक्राफ्ट से लाश को बाहर अंतरिक्ष में छोड़ना एकमात्र विकल्प नहीं, लाश को दफन भी किया जा सकता है. NASA ऐसा बॉडी बैग बना रहा है जिससे स्पेसशिप पर लाश को 48 से 72 घंटों तक संरक्षित किया जा सकता है. हालांकि, इसे ISS जैसे धरती के नजदीकी स्टेशन से लाश वापस लाने के लिए ही इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर मंगल या अन्य किसी सुदूर ग्रह पर किसी एस्ट्रोनॉट की मौत होती है, तब क्रू को कोई और तरीका खोजना होगा. वहां लाश को दफनाने से ग्रह पर संक्रमण फैलने का खतरा है.