Trending Photos
नई दिल्ली: जल (Water) ही जीवन है. जो सबसे कीमती संसाधन है. धरती पर जीवन को बनाए रखने के लिए भी ये सबसे जरूरी है. लेकिन यह आया कहां से, इसका कोई साफ जवाब अभी तक नहीं मिल सका है. क्या आपको इस सवाल का जवाब पता है कि धरती पर पानी (Water on Earth) कहां से आया? हालांकि इस बड़े सवाल को लेकर कई रिसर्च हो चुकी हैं.
इसके उत्तर में कभी कोई जवाब दिया गया तो कभी कुछ और कहा गया. हालांकि अभी तक नासा (Nasa) या किसी और साइंस जर्नल के वैज्ञानिकों ने एकदम साफ-साफ जवाब नहीं दिया है कि आखिर जो पानी हमें धरती पर दिखता है वो आखिर आया कहां से?
इस बीच एक बार फिर वैज्ञानिकों ने नई थ्योरी सामने रखी है जो स्पेस डस्ट एनलिसिस (Solar Dust Analysis) के साथ सूरज (Sun) और उस दौर की सोलर विंड्स (Solar Winds) ओर इशारा कर रही है. इससे पहले कभी यह बताया गया कि धरती पर पानी अंतरिक्ष से आए क्षुद्रग्रहों और उलकापिंडों से आए तो कभी ये कहा गया कि पृथ्वी पर ही पानी बना और यहां पर शुरू से बना रहा. इन शोधों में अधिकांश शोध पृथ्वी पर गिरे उल्कापिंड और क्षुद्रग्रहों के टुकड़ों पर किए गए हैं.
यूके (UK), ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के रिसर्चर्स ने इस स्टडी में पाया है कि धूल के कणों में पानी तब बना था जब सूर्य के आने वाले सौर पवन कहलाने वाले आवेशित कणों ने अंतरिक्ष में मौजूद धूल के कणों की रासायनिक संरचना बदल दी जिससे इनमें पानी के अणु पैदा हो सके.
नई स्टडी में जापान के 2010 के हायाबुसा अभियान (Hayabusa Mission) से हासिल किए गए पुरातन क्षुद्रग्रह के नमूने का विश्लेषण किया गया. इस अध्ययन से पता चला है कि पृथ्वी पर पानी अंतरिक्ष के धूल के कणों (Dust Particles) से आया था जिनसे ग्रहों का निर्माण हुआ था.
इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक स्पेस वेदरिंग कहते हैं. नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बताया है कि पृथ्वी की महासागरों में पानी की सरंचना पैदा करना क्षुद्रग्रह जैसे स्रोतों के पदार्थों के मिश्रण से बनाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है. लेकिन सौर पवनें इस सवाल का जवाब दे सकती हैं.
ये भी पढ़ें- Space Junk: पृथ्वी के चारों ओर बन सकता है शनि जैसा छल्ला, वैज्ञानिकों ने दी ये चेतावनी
ग्लासगो यूनिवर्सिटी की वेबसाइट www.gla.ac.uk में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों की अगुआई में अंतरराष्ट्रीय टीम ने एटम प्रोब टोमोग्राफी के जरिए अलग-अलग प्रकार के अंतरिक्ष की चट्टानों के नमूनों का अध्ययन किया. ये चट्टानें एस (S) प्रकार के क्षुद्रग्रह कहलाती हैं जो सी (C) प्रकार के क्षुद्रग्रहों की तुलना में सूर्य के ज्यादा पास रहकर उसका चक्कर लगाते हैं.
Video:
ये नमूने इटोकावा क्षुद्रग्रह के थे और इनके विश्लेषण किया. जब वैज्ञानिकों ने एक बार में एक परमाणु की आणविक संरचना का अध्ययन किया से पता चला कि उनमें पानी के अणुओं की उपस्थिति है. इस अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ ल्यूक डाले ने बताया कि पानी के ये अणु इनमें कैसे पहुंचे या बने.
शोध में शामिल डॉ डाले ने बताया कि सूर्य से आने वाले हाइड्रोजन आयन किसी बिना हवा वाले क्षुद्रग्रह के साथ अंतरिक्ष में मौजूद धूल से टकराए और पादर्थ के अंदर जाकर उनकी रासायनिक संरचना को प्रभावित किया. इससे धीरे धीरे हाइड्रोजन आयन ऑक्सीजन अणुओं से प्रतिक्रिया कर चट्टान और धूल के अंदर ही पानी के अणु बनाने लगे जो क्षुद्रग्रहों के खनिजों में छिपे रह गए. यही धूल पृथ्वी पर सौर पवनों और क्षुद्रग्रहों के साथ आ गई होगी और पानी ले आई होगी.
रिसर्चर्स का यह भी मानना रहा कि इसके साथ ही पृथ्वी पर पानी एक और हलके आइसोटोपिक स्रोत से आया होगा जो सौरमंडल में कहीं और था. नई पड़ताल से पृथ्वी पर पानी पहुंचने और बड़ी तादाद में सतह को घेरने लायक मात्रा में होने के आसपास के कई रहस्यों का भी खुलासा हो सकेगा. अब वैज्ञानिकों को ये उम्मीद भी है कि इस स्टडी के नतीजे भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों में हवा रहित ग्रहों (Air Free Planets) पर पानी खोजने में मददगार हो सकेंगे.