जीत की रेस में 'आप' का वज़ूद
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जीत की रेस में 'आप' का वज़ूद

दिल्ली विधान सभा का चुनाव दिलचस्प होता जा रहा है। खबरिया चैनलों के तमाम सर्वेक्षणों में कभी केजरीवाल की पार्टी सत्ता के करीब दिखती है तो कभी भाजपा को पूर्ण बहुमत दिखाया जा रहा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव कई मायने में अहम है। आम आदमी पार्टी के लिए यह चुनाव जहां जीवन-मरण का सवाल बन गया है। वहीं, भाजपा के लिए यह चुनाव नरेन्द्र मोदी की 8 महीने की सरकार के लिए जनमत के तौर पर भी देखा जा रहा है।

जीत की रेस में 'आप' का वज़ूद

आम आदमी पार्टी के नेता और राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव में आप को स्पष्ट बहुमत मिलने का दावा किया है। आत्मविश्वास से लबरेज अरविंद केजरीवाल का मानना है कि दिल्ली में ठीक एक साल बाद 'आप' फिर सरकार बनाने जा रही है। उन्होंने कहा, 'पिछले साल 14 फरवरी को मैंने इस्तीफा दिया था और इस साल 15 फरवरी को मुख्यमंत्री पद की शपथ लूंगा।' अरविंद केजरीवाल के इस बयान को क्या कहेंगे - दिल्ली के जनमानस को पढ़ने और समझने में किसी तरह की गलती नहीं करने वाला राजनीतिक पंडित या फिर 49 दिनों में सीएम की कुर्सी को छोड़ पीएम की कुर्सी के लिए काशी कूच करने जैसी गलती करने वाला राजनीतिक नौसिखिया का चलताऊ बयान।

दिल्ली विधान सभा का चुनाव दिन-ब-दिन दिलचस्प होता जा रहा है। खबरिया चैनलों की ओर से नित नए-नए सर्वे लाए जा रहे हैं। तमाम सर्वेक्षणों में कभी केजरीवाल की पार्टी सत्ता के करीब दिखती है तो कभी भाजपा को पूर्ण बहुमत दिखाया जा रहा है। यानी मुकाबला कांटे का है। दिल्ली विधानसभा चुनाव कई मायने में अहम है। आम आदमी पार्टी के लिए यह चुनाव जहां जीवन-मरण का सवाल बन गया है। वहीं, भाजपा के लिए यह चुनाव और अहम है क्योंकि इस चुनाव को नरेन्द्र मोदी की 8 महीने की सरकार के लिए जनमत के तौर पर भी देखा जा रहा है।

दिल्ली हमेशा से भाजपा का गढ़ रही है। बावजूद इसके वह सूबे की सत्ता से पिछले डेढ़ दशक से अधिक समय से बाहर है। भाजपा के लिए दिल्ली का यह चुनाव पिछले लोकसभा चुनाव के बाद हुए राज्यों के सभी विधानसभा चुनावों से कठिन साबित हो रहा है। दिल्ली के भाजपाई दिग्गजों की हालत नाजुक है। हकीकत यह है कि भाजपा के पास दिल्ली में कायदे का कोई नेता ही नहीं। लिहाजा किरण बेदी को पैराशूट की तरह मैदान में उतारना पड़ा। वरना, लोकसभा चुनाव 2014 के बाद कई राज्यों में विधान सभा चुनाव हुए। पर भाजपा ने किसी भी चुनाव में मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं घोषित किया। पार्टी की तरफ से हर जगह तर्क दिया गया कि भाजपा कभी भी मुख्यमंत्री का उम्मीदवार नतीजे आने के पहले घोषित नहीं करती।

चुनाव प्रचार की बात करें तो आम आदमी पार्टी इस समय सबसे आगे चल रही है। उसने बहुत पहले से अपना अभियान शुरू कर दिया था और अपने उम्मीदवारों की घोषणा भी समय से पहले ही कर दी थी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी दबी जुबान में यह स्वीकार किया है कि आम आदमी पार्टी चुनाव अभियान में आगे है। आम आदमी पार्टी सस्ती बिजली, मुफ्त पानी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन को मुद्दा बनाकर अभियान चला रही है तो दूसरी ओर, भाजपा का पूरा का पूरा चुनाव अभियान नकारात्मकता पर आधारित है। केजरीवाल और उनकी पार्टी को निशाना बनाना उसके अभियान के केन्द्र में है। कुल मिलाकर कहें तो अकेले केजरीवाल की ओर से पूरी मोदी ब्रिगेड और भाजपा को कड़ी टक्कर मिल रही है। हम यहां जानने की कोशिश करेंगे कि आप से भाजपा को मिल रही कड़ी टक्कर के पीछे की वजह क्या है?

भाजपा की भाषा में कहें तो अरविंद केजरीवाल 'भगोड़ा' है इसको अगर विराम दे दें तो दिल्ली चुनाव के सभी समीकरण आम आदमी पार्टी के फेवर में जाता दिख रहा है।  दिल्ली में मतदाताओं का एक बड़ा तबका निम्न मध्यवर्ग का है जो आप के साथ है। इस तबके में झुग्गी-झोपड़ी, अनधिकृत कॉलोनी के मतदाता शामिल हैं जो केजरीवाल का मुरीद बना हुआ है। ऑटो रिक्शा, बैटरी रिक्शा चालकों में आप के केजरीवाल काफी लोकप्रिय हैं इस तबके की अच्छी-खासी तादाद दिल्ली में है जो आप को वोट करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहती है। दिल्ली के युवाओं में भी केजरीवाल काफी लोकप्रिय हैं। भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली का केजरीवाल का नारा हर दिल्लीवासियों को लुभाता है। आप की 49 दिन की पिछली सरकार में भ्रष्टाचार पर लगाम के संकेत देखे भी गए।

दिल्ली में आठ से ज़्यादा विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां मुस्लिम वोट 35 फीसदी से ज़्यादा है और हर बार नतीजा तय करने में निर्णायक होता है। इस बार भी दिल्ली के चुनावों में मुस्लिम वोटरों पर राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की नजर है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) दोनों ये दावा कर रहे हैं कि भाजपा को रोकने के लिए मुसलमान उनको वोट देंगे। लेकिन इस चुनाव में मुस्लिम वोटर इस बात को समझ रहा है कि कांग्रेस को वोट देना वोट बेकार करना होगा। धर्मांतरण पर भाजपा और केंद्र सरकार के रवैये से मुस्लिम वोट बैंक में गुस्सा भी है और डर भी। यह गुस्सा और डर आम आदमी पार्टी के हित में है। दिल्ली के वकील भी भाजपा के सीएम उम्मीदवार किरण बेदी के नाम का विरोध कर रहे हैं। इस सबके बाद भाजपा का भितरघात आप के लिए रामबाण साबित हो रहा है। यह ऐसा रामबाण है जो 'भगोड़ा केजरीवाल' पर भारी पड़ रहा है।  

एक और अहम मुद्दा सरकारी कर्मचारियों के रिटायरमेंट उम्र को लेकर है। इस बात में सौ फीसदी सच्चाई है कि हरियाणा में नवनिर्वाचित भाजपा सरकार द्वारा शपथग्रहण के बाद जो पहला फैसला लिया उसमें सरकारी कर्मियों की रिटायरमेंट उम्र 60 साल से 2 साल घटाकर 58 साल करने की घोषणा थी। हथौड़ा गरम था और आप नेता अरविंद केजरीवाल ने इस बात को दिल्ली चुनाव मुद्दा बना दिया। केजरीवाल ने इस बात का जोर-शोर से प्रचार कर दिया कि दिल्ली में अगर भाजपा की सरकार लाओगे तो सरकारी कर्मचारियों को 2 साल पहले रिटायर कर दिया जाएगा। केजरीवाल के इस तर्क में दम भी है और नई दिल्ली में सरकारी कर्मचारियों को वोट किसी भी उम्मीदवार को हराने और जिताने में अहम भूमिका निभाता है। इसका असर दिल्ली के अन्य सीटों पर भी होता दिख रहा है।  

आम आदमी पार्टी का 'प्लान एके-70'
विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों के साथ आम लोगों की सैकड़ों बैठकों और गोलमेज के आयोजनों, ऑनलाइन टिप्पणियों, ईमेल सुझाव, WhatsApp संदेश, ट्वीट्स और फेसबुक टिप्पणियों के जरिए हजारों सुझावों के बाद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के युवाओं, महिलाओं, व्यापारियों. व्यावसायियों, उद्यमियों, ग्रामीण व शहरीकृत गांवों, सफाई कर्मचारियो, अल्पसंख्यकों, अनधिकृत व पुनर्वास कॉलोनियों, जेजे कलस्टर्स, रेसिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन, को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटियों और ग्रुप हाउसिंग सोसाइटियों के लिए 70 सूत्री कार्ययोजना तैयार की है। इस 70 सूत्री कार्ययोजना को दिल्ली के 70 विधानसभा क्षेत्रों से जोड़ा जाएगा। इसमें कुछ अहम मद्दे मसलन बिजली बिल आधा करने, प्रतिमाह 20 हजार लीटर मुफ्त पानी, क्लीन और ग्रीन दिल्ली, बेहतर शिक्षा, महिलाओं की सुरक्षा, सड़क सुरक्षा, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा, दिल्ली जनलोकपाल बिल, इंस्पेक्टर राज का खात्मा और दिल्ली में खुदरा एफडीआई पर रोक लगाने का वादा शामिल है।

क्या कहते हैं चुनावी सर्वेक्षण ?
एबीपी न्यूज़-नीलसन के ताज़ा सर्वे के मुताबिक़ बीजेपी बहुमत के जादुई आंकड़े से दो सीट कम यानी 34 सीटों पर ही सिमट जाएगी, जबकि आम आदमी पार्टी एक बार फिर 28 सीटें जीत सकती है. कांग्रेस भी अपनी मौजूदा सीट यानी 8 सीटों को बरकरार रख पाने में कामयाब रहेगी.

आंकड़ों के आधार पर सर्वे कंपनी इलेक्टलाइन ने अपने ताजा सर्वे में आम आदमी पार्टी को बड़ी तेजी से बहुमत के पास वाले आंकड़ों के करीब पाया है जबकि भाजपा की सीटों में तेजी से गिरावट भी दर्ज की है अगर इलेक्टलाइन के आंकड़ो पर गौर करे तो ये विधानसभा त्रिशंकु विधानसभा रहेगी जिसमे आम आदमी पार्टी 32 सीटों के साथ पहले नंबर पर, भाजपा 30 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर, कांग्रेस 6 सीटो के साथ तीसरे नंबर और बाकी दो सीटों पर अन्य के आने की संभावना जताई है। इसका कारण किरन बेदी के आने के बाद भाजपा की आपसी अंतर्कलह माना जा रहा है।

एनबीटी-सी वोटर सर्वे में अगर जनवरी के पहले चार हफ्तों का विश्लेषण किया जाए तो लगता है कि बीजेपी को किरन बेदी के आने से मामूली फायदा ही हुआ है। जनवरी के दूसरे हफ्ते तक बीजेपी 35 सीटें जीतने की स्थिति में थी, लेकिन किरन बेदी के सीन में आने के बाद उनकी दो सीटें बढ़ गई। 37 सीट का यह आंकड़ा बीजेपी के लिए खतरनाक कहा जा सकता है क्योंकि यह बहुमत की लक्ष्मण रेखा यानी 36 सीट से केवल एक सीट ही ज्यादा है।

बहरहाल, लोकसभा चुनाव के नौ महीने बाद दिल्ली एक बार फिर से चुनाव के मैदान में है। पिछले दो चुनाव (विधानसभा और लोकसभा) में दिल्ली एकदम से एक पार्टी भाजपा पर न्योछावर होने का ट्रेंड दिखा चुका है। लोकसभा चुनाव के नजरिए से देखें तो भाजपा और आम आदमी पार्टी के वोट शेयर में 13 फीसदी का बड़ा अंतर है। अगर मोदी लहर पहले से मंद भी हो गई हो तो क्या इतना वोटर एक साथ पार्टी को छोड़ देगा? हालांकि जिस तरह से कश्मीर और झारखंड में मोदी लहर के मंद पड़ने के संकेत दिखे हैं और 10 जनवरी 2015 को रामलीला मैदान में आयोजित मोदी रैली में उम्मीद से कम लोगों का पहुंचना इस बात का संकेत जरूर देता है कि दिल्ली के लिए कुछ न कुछ सबक तो जरूर छुपा है। ऐसे में जो भी दांव पर लगा है, वह भाजपा का ही है। आम आदमी पार्टी के लिए खोने जैसा कुछ नहीं है। सत्ता मिली तो अरविंद केजरीवाल यह कहने से नहीं चूकेंगे कि मोदी सरकार में अब जनता का भरोसा नहीं रहा और सत्ता नहीं मिली तो यह कहने से भी नहीं चूकेंगे कि उन्हें सत्ता से मोह नहीं। जिसका उदाहरण वह पहले पेश कर चुके हैं।

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