राम ‘काज’ में कब तक रोड़े अटकाएंगे राहुल गांधी?
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राम ‘काज’ में कब तक रोड़े अटकाएंगे राहुल गांधी?

राम मंदिर पर याचिका ने साफ कर दिया है कि राहुल गांधी और कांग्रेस राम 'काज' में रोड़े अटकाने से बाज नहीं आ रहे हैं.

राम ‘काज’ में कब तक रोड़े अटकाएंगे राहुल गांधी?

होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा

रामचरितमानस की ये पंक्ति एक बार फिर सही साबित हुई. तमाम विवादों के बाद अब जब अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन की तिथि तय हुई तो एक जमाने में कांग्रेस के युवराज और अब सिर्फ वायनाड के सांसद राहुल गांधी की गोद में बैठने वाले साकेत गोखले एक नई अड़चन डालने में जुट गए, पर कोर्ट ने जिस तरह उनकी याचिका को खारिज करते हुए उसके आधार को काल्पनिक बताया है, उससे आज रामभक्तों में हर्ष की लहर दौड़ गई है. वे इसे प्रभु राम के प्रताप की एक छोटी सी बानगी ही मान रहे हैं और साथ ही यह सवाल भी कर रहे हैं कि आखिर राहुल गांधी कब तक राम 'काज' में रोड़े अटकाते रहेंगे? 

अब जब प्रभु श्रीराम की बात हो रही है तो दुष्ट शक्तियों का जिक्र भी जरूरी है, ऐसी दुष्ट शक्तियां हर युग में होती हैं. जिन लोगों में सामने से वार करने की हिम्मत नहीं होती, वो मोहरे तलाशते हैं और उनके सहारे अपने स्वार्थ की पूर्ति का प्रयास करते हैं. जैसा कि कांग्रेस के तथाकथित युवा नेता राहुल गांधी ने राम मंदिर के भूमि पूजन में अड़ंगा डालने को लेकर किया. राहुल के इशारे पर राम मंदिर के भूमि पूजन के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. राहुल चाहें तो इस आरोप से मुकर सकते हैं, ये उनकी आदत में शुमार है, लेकिन तस्वीरें झूठ नहीं बोलतीं. गोखले के साथ उनकी करीबियत को किसी सबूत की जरूरत ही नहीं है. 

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राहुल गांधी की कठपुतली हैं साकेत 
आरटीआई एक्टिविस्ट साकेत गोखले ने कोरोना काल में अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन पर आपत्ति जताते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की. साकेत कांग्रेस के इतने करीबी हैं कि यदि उन्हें राहुल गांधी की कठपुतली कहा जाए तो गलत नहीं होगा. राहुल के समर्थन में अभियान चलाना और PM मोदी विरोधी अभियानों की अगुवाई करना उनका इतिहास रहा है. ऐसे में कोरोना को लेकर उनकी चिंता, न तो वाजिब ‘चिंता’ है और न ही उनका उद्देश्य लोगों को संक्रमण से बचाना है. वह केवल राहुल गांधी को बचाना चाहते हैं, जिनकी राजनीति मुद्दों के अभाव में दम तोड़ रही है.

साकेत का बैकग्राउंड बताता है कि उनका हर कदम राहुल के इशारे पर होता है. कुछ समय पहले उन्होंने खुद कहा था कि ‘मैं कांग्रेस से तब जुड़ा जब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने, राहुल के नेतृत्व में ही मेरे जैसे युवाओं को गैर-राजनीतिक परिवार से होने के बावजूद राजनीति में आने का मौका मिला. जब उन्होंने पिछले साल इस्तीफ़ा दिया तो मैंने खुद को अलग कर लिया और स्वतंत्र रूप से काम करना शुरू कर दिया’. अब कोई नासमझ ही होगा जो साकेत की याचिका में कांग्रेस के ‘हाथ’ से इंकार कर दे.

राफेल से लेकर जीएसटी तक जनता ने निकाली कांग्रेस की हवा
दरअसल, PM मोदी के कार्यकाल में राहुल गांधी और कांग्रेस मुद्दा विहीन हो गए हैं, राफेल से लेकर जीएसटी जैसे मुद्दों पर जनता ने कांग्रेस की हवा निकाल दी है जिसके चलते उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है कि अपने वजूद को जीवित रखने के लिए क्या किया जाए. इसलिए उन्होंने साकेत को प्यादा बनाकर हिंदुओं की आस्था से खिलवाड़ की यह साजिश रची है. हालांकि, इस साजिश ने राहुल के उस ढोंग को उजागर कर दिया है, जो लोकसभा चुनाव में हिंदू वोटों को प्रभावित करने के लिए उन्होंने रचा था. राहुल ने मंदिरों के दर्शन किये थे, जनेऊ धारण किया था, मगर अब बार फिर स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस की विचारधारा में ‘हिंदू’ कभी शामिल ही नहीं रहे.

प्रभु राम से किस बात का बदला ले रही है कांग्रेस
गोखले के तर्क से शायद किसी को परेशानी नहीं होती, यदि उनका उद्देश्य किसी सियासी पार्टी के उद्देश्य की पूर्ति से नहीं जुड़ा होता. यह सर्वविदित है कि कांग्रेस कभी राम मंदिर के पक्ष में नहीं रही. उसने कभी नहीं चाहा कि हिंदुओं की आस्था का सम्मान किया जाए. उसके नेता कोर्ट के फैसले के खिलाफ भी बोलते रहे. 

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राम मंदिर के भूमि पूजन को रुकवाने की कांग्रेसी साजिश से राहुल और उनकी पार्टी के ज़हन में भरी नफरत सामने आ गई है. राहुल गांधी ने स्वयं ही जनता को यह बता दिया है कि उनके द्वारा धारण किया गया जनेऊ केवल राजनीतिक स्टंट था और उनकी हिंदू या हिंदू धर्म में कोई आस्था नहीं है. यूं कांग्रेस पर हमेशा से ही हिंदू विरोधी होने के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में जिस तरह से उसके नेता ने मंदिरों के चक्कर लगाये, उसने कहीं न कहीं लोगों में इस धारणा को जन्म दिया कि शायद कांग्रेस बदल रही है. लेकिन ताजा प्रकरण ने उस ‘धारणा’ को गलत साबित करने के साथ ही यह पुन: स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस के दस कुटिल चेहरे हैं, जो समय-समय पर हिंदुत्व को लेकर अपना असली व कुत्सित रंग दिखाते हैं.

भूमि पूजन पर चाहती है 'ग्रहण', 'कुर्बानी' की है हिमायती
कांग्रेस को कोरोना काल में राम मंदिर के भूमि पूजन से दिक्कत है, लेकिन अपने नेताओं के उन बयानों से नहीं जो लॉकडाउन में भी ‘कुर्बानी’ की चेतावनी दे रहे हैं. मध्य प्रदेश के कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा है कि भले ही लॉकडाउन हो, ईद पर कुर्बानी हम देकर ही रहेंगे. केवल मसूद ही नहीं कांग्रेस के कई अन्य नेताओं को भी कोरोना से ज्यादा ‘ईद’ की चिंता है. राहुल गांधी और कांग्रेस की इस सोच से तो यही पता चलता है कि कोरोना धर्म देखकर लोगों को निशाना बनाता है. यानी भूमि पूजन में जुटने वाले लोग वायरस की चपेट में आ सकते हैं, दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं, लेकिन ईद के लिए जुटने वालों को खुदा ने खास ‘सुरक्षा’ से नवाजा है. न उन्हें खुद कुछ होगा और न ही वे दूसरों को कुछ होने देंगे. जबकि भोपाल में कोरोना के आंकड़े इसके उलट ही तस्वीर बयां कर रहे हैं.   

इसी मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के चलते कांग्रेस आज पतन के कगार पर पहुंच चुकी है, लेकिन इसके बावजूद वह सुधरना नहीं चाहती है. जनता को एक बार फिर से राहुल गांधी और उनकी पार्टी का असल चेहरा नजर आ गया है. वो चेहरा जो लोगों में ‘जाति-धर्म’ के आधार पर भेद करता है, वो चेहरा जिसे हिंदू हमेशा से पराये नजर आते हैं, वो चेहरा जिसके लिए हिंदू धर्म कोई मायने नहीं रखता और वो चेहरा जो गोखले जैसे प्यादों को सामने रखकर नफरत की चाल चलता है. अगले चुनाव में जनता कांग्रेस को इस ‘चाल’ का जवाब जरूर देगी, जैसा कि पिछले कुछ समय से देती आई है और वो शायद इस हिंदू विरोधी पार्टी के ताबूत में आखिरी कील साबित होगा.

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अपने ही सलाहकारों की मारी है कांग्रेस
कांग्रेस की फर्स्ट फैमिली के साथ उनके सलाहकारों की दिक्कत हमेशा से रही है. यूं तो हर ताकतवर आदमी के इर्द-गिर्द सलाह देने वाले होते हैं और तमाम गलत सलाहें भी देते हैं, लेकिन गांधी परिवार के साथ ऐसी कई सलाहें मानना ऐतिहासिक और कभी ना भुलाई जाने वाली भूल साबित हुआ है.

नेहरू जी का शेख अब्दुल्ला की सलाह पर कश्मीर में 370 लगाना और एक दिन अमेरिका से मिलकर साजिश करने के आरोप में सालों तक जेल में डाले रखना, हिंदू कोड बिल लाना लेकिन समान नागरिक संहिता ना लाना जैसी बातें अभी इतिहास भूला नहीं है और कांग्रेस आज तक इसकी कीमत चुका रही है. इंदिरा गांधी ने जिस तरह कुछ लोगों के कहने पर इमरजेंसी लगाई, उसे भी आज तक कांग्रेस भुगत रही है. शाहबानो प्रकरण और श्रीलंका में शांति सेना भेजने जैसी सलाह पर अमल कर राजीव गांधी पर हमेशा के लिए दाग लगा दिए, और उन्होंने इसकी कीमत भी चुकाई. 

हिंदुत्व पर ये है कांग्रेस का असली 'चाल, चरित्र और चेहरा'
हिंदुओं के मामले में तो ये गलतियां कांग्रेस से हमेशा से होती रही हैं, सोनिया गांधी के अप्रत्यक्ष राज में चिदम्बरम और दिग्विजय सिंह जैसे सलाहकारों के चलते हिंदू आतंकवाद का नारा गढ़ा गया, इससे हिंदू वोट बैंक काफी नाराज हुआ. दिग्विजय सिंह ने 26/11 के हमले के लिए संघ पर आरोप लगा दिया, इससे फायदा किसको हुआ और नुकसान किसको? अब भी राम मंदिर पर कोर्ट के फैसले के बावजूद राहुल गांधी की गोद में खेलने वाले लोग राहुल के ही राजनीतिक करियर की समाधि बनाने पर तुले हैं.

साकेत गोखले तमाम फालतू मुद्दों पर भी विवादित रहे हैं. साकेत ने भूमि पूजन को रोकने का नया शिगूफा ये सोचकर छोड़ा होगा कि इससे भाजपा और PM मोदी परेशान होंगे, लेकिन साकेत गोखले को ये समझ नहीं आया कि अब ये PM मोदी और भाजपा का मुद्दा नहीं रह गया है बल्कि जनमानस का मुद्दा बन गया है. अब राम मंदिर के मामले में अड़चन डालने का मतलब होगा कि राम भक्तों को दुनिया भर में ये संदेश जाएगा कि राहुल गांधी अपने खास लोगों के जरिए इस पुनीत काम में लगातार अपनी टांग फंसाए रखना चाहते हैं.

सोचिए जिन हिंदुओं को रिझाने के लिए वो मंदिर-मंदिर घूम रहे थे, अपना गोत्र भी ढूंढ लाए थे, मंदिरों में धोती पहनने लगे थे, कांग्रेसी उनका जनेऊ तक खोज लाए थे, उसी राहुल के तथाकथित खासमखास अब फिर से हिंदुओं की आस्था के सबसे बड़े केंद्र के भूमि पूजन में अड़ंगा डालेंगे, वो भी कोर्ट के जरिए? हिंदू इसको कैसे लेंगे, क्या वो राहुल को कभी माफ कर पाएंगे? क्या राहुल ने कभी सोचा है? जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया, जिस फैसले पर कांग्रेस ने भी खुशी जताई थी, जिस राम जन्मभूमि के ताले खोलने का श्रेय कांग्रेस ले रही है, उसी के भूमि पूजन में राहुल गांधी के लोग फच्चर फंसाएंगे? पर ऐसा हो न सका.

कांग्रेसी मंडली ही डुबो देगी राहुल गांधी को...
दिग्विजय सिंह, मणिशंकर अय्यर, अधीर रंजन और साकेत गोखले तमाम ऐसे कांग्रेसी हैं, जो अपने ऊल-जुलूल बयानों और हरकतों के चलते कांग्रेस और गांधी परिवार को नीचा दिखाते रहे हैं. कई बार तो ये राहुल को उलट सलाह देते हैं और इनके चक्कर में राहुल गांधी अपनी फजीहत करवाते हैं. साकेत गोखले भी उसी तरह के हरकती हैं, राहुल को खुश करने के लिए एक बार भाजपा की तथाकथित हेट मोंगरिंग से निपटने के लिए ऑनलाइन कैम्पेन से 22 लाख रुपए जुटा डाले थे. अब भूमि पूजन में कोविड गाइडलाइंस के हवाले से रोक की मांग करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका डाल दी और एक बार फिर कांग्रेस की छीछालेदर कराई है.

वो कांग्रेस जो रामजन्मभूमि का ताला खोलने का श्रेय लेती आ रही है, हिंदुओं के बीच अब क्या मुंह लेकर जाएगी? कहीं राहुल ने भी तो साकेत गोखले की इस मांग पर चुप्पी साधकर या समर्थन देकर वो ऐतिहासिक गलती तो नहीं की जो कभी 370 और हिंदू कोड बिल पर नेहरूजी ने, इमरजेंसी पर इंदिरा गांधी ने और शाहबानो पर राजीव गांधी ने की थी? सवाल ये है कि खुद को चमकाने के लिए ऊल-जुलूल हरकतें करके कांग्रेस को ऐतिहासिक डेंट देने की कोशिश कर रहे इन नए-नवेले नेताओं पर कांग्रेस में कोई लगाम लगाएगा क्या?

लेखक: अभिषेक मेहरोत्रा Zee News के Editor (Digital) हैं.

(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं) 

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