उन्नाव कांडः कुलदीप सिंह सेंगर के बहाने योगी पर निशाना
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उन्नाव कांडः कुलदीप सिंह सेंगर के बहाने योगी पर निशाना

कानून-व्यवस्था के स्तर पर किसी भी सरकार की भूमिका मुख्यतः दो स्तरों पर ही आंकी जाती है. पहला यह कि वह अपराध की घटनाओं को रोक पाती है या नहीं और दूसरे घटना घटित होने के बाद वह क्या कदम उठाती है.

उन्नाव कांडः कुलदीप सिंह सेंगर के बहाने योगी पर निशाना

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी की हार के बाद से ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार को पार्टी के भीतर और बाहर तरह-तरह के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. पार्टी के दलित सांसदों के विरोध का स्वर अभी थमा भी नहीं है कि उन्नाव में बलात्कार और पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के मामले में उनकी सरकार पर हमले बढ़ गए हैं. क्या योगी सरकार इस अपराध में लिप्त लोगों को बचा रही है? अगर हां, तो उसकी घेरेबंदी का औचित्य बनता है, क्योंकि पक्षपात रहित प्रशासन बीजेपी का चुनावी मुद्दा रहा था. अगर योगी सरकार कोई पक्षपात नहीं कर रही है, तो क्या विपक्षी पार्टियां राजनीतिक लाभ की उम्मीद में योगी सरकार की आलोचना में जल्दबाजी नहीं कर रही हैं? क्या अपराध की एक घटना के आधार पर किसी सरकार के कामकाज का मूल्यांकन किया जा सकता है?

उन्नाव कांड सामाजिक दृष्टि से एक ऐसा संवेदनशीन मसला है, जिसके बारे में हर कोई यही चाहेगा कि दोषियों के खिलाफ जल्द से जल्द कार्रवाई हो, पर कानून लागू करने वाली एजेंसियों के सामने ऐसे तत्वों की पहचान करने की चुनौती होती है. जब तक मामले की ठीक तरीके से जांच नहीं की जाती, उनके खिलाफ कारगर कार्रवाई नहीं हो सकती. आखिर जांच भावना से नहीं, तथ्यों से नियंत्रित होती है, ताकि कोई निर्दोष न फंसे. यह तो नहीं कहा जा सकता कि इस मामले में शुरू में ढिलाई नहीं हुई है, लेकिन यह भी कहना कठिन है कि प्रदेश का सर्वोच्च प्रशासन इसमें लिप्त है. 

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एक मुख्यमंत्री से यह उम्मीद की जाती है कि राज्य की कानून-व्यवस्था की नैतिक जिम्मेदारी उठाए, लेकिन व्यवहार में ऐसा संभव नहीं है कि वह हर थाने की दैनिक गतिविधि पर नजर रखे. ऐसी स्थिति में सरकार की नीयत की असली परीक्षा तब होती है, जब मामला संज्ञान में आने के बाद उसकी कार्रवाई की गति और दिशा क्या होती है. 

इस लिहाज से योगी सरकार ने एसआईटी गठित कर उच्च स्तरीय जांच का आदेश दिया, कुछ पुलिस वाले निलंबित किए, कुछ गिरफ्तारियां कीं. अब सीबीआई जांच का फैसला भी हो चुका है. 

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कहा जा सकता है कि बाद में प्रशासन ने इस मामले में तत्परता दिखाई. इसलिए योगी सरकार की नीयत के बारे में अभी कोई नकारात्मक निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगा. लेकिन इतना तो साफ है कि विपक्षी पार्टियां इसे राजनीतिक दृष्टि से भुनाने में लग गई हैं. विपक्ष मुख्यमंत्री योगी की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल उठाने लगा है. 

आरोपों में घिरे बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर उन्नाव जिले में अपना राजनीतिक प्रभाव रखते हैं, लेकिन उन्नाव संपूर्ण उत्तर प्रदेश नहीं है, जिससे बीजेपी का राजनीतिक भविष्य अधर में पड़ जाएगा. लेकिन इस घटना के जरिये योगी मुख्यमंत्री के खिलाफ हमला करने से बहुत कुछ फर्क आ सकता है. योगी बीजेपी शासित उस राज्य के मुख्यमंत्री हैं, जहां से उसकी केंद्रीय सत्ता की राह आसान होगी. और तो और, वे बीजेपी के उन मुख्यमंत्रियों में शुमार हैं, जिनकी छवि अच्छे प्रशासक की है. 

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ऐसे में अगर विपक्ष उनकी छवि धूमिल कर दे, तो उसे 2019 के लोक सभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक लाभ मिल सकता है. उन्नाव कांड उसे इस दिशा में एक मौका प्रदान करता है. संभव है राजनीति के कारण प्रशासन पर दबाव पड़े और पीड़िता को लाभ मिले, लेकिन इससे मुद्दे की गंभीरता घटती है. ऐसा नहीं कहा जा सकता कि सपा की पिछली सरकार ऐसे मामलों में हमेशा तटस्थ भाव से काम करती थी. 

मुजफ्फरनगर दंगा हो या सपा नेता गायत्री प्रजापति पर बलात्कार का मामला, सपा सरकार पर पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करने के आरोप लगे. अगर इस मामले में योगी सरकार की कार्रवाई जनता की अपेक्षा के अनुरूप रही, तो उसे राजनीतिक नुकसान के बजाय लाभ हो सकता है, क्योंकि ऐसी परिस्थिति में सपा सरकार का व्यवहार जनता की अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा था. 

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दरअसल, कानून-व्यवस्था के स्तर पर किसी भी सरकार की भूमिका मुख्यतः दो स्तरों पर ही आंकी जाती है. पहला यह कि वह अपराध की घटनाओं को रोक पाती है या नहीं और दूसरे घटना घटित होने के बाद वह क्या कदम उठाती है. चुनाव में कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर किसी पार्टी के लिए लम्बे-चौड़े वादे करना आसान होता है, लेकिन उसे जमीन पर उतारना कठिन होता है. ऐसा मानना कि किसी नई सरकार के आने से अपराध की घटनाएं रुक जाएंगी, एक सपना जैसा ही है. 

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देखना यह होगा कि अपराध की घटनाओं में कमी आती है या नहीं. हालांकि योगी सरकार के अधीन अपराधियों के खिलाफ पुलिस कड़ी कार्रवाई कर रही है, लेकिन इसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि योगी सरकार के अधीन अपराध की घटनाएं रुक गई हैं. इसके बावजूद समग्रतापूर्ण आंकड़ों के अभाव में कुछ घटनाओं के आधार पर किसी सरकार के बारे में कोई राय बनाना भी उचित नहीं होगा. 

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकडे 2016 तक के ही उपलब्ध हैं, इसलिए योगी सरकार के बारे में आधे-अधूरे आंकड़ों के आधार पर निर्णायक तौर पर कहना कठिन है. ये आंकड़े अखिलेश यादव की सरकार के समय के हैं. यह सही है कि 2016 में संख्या की दृष्टि से अपराध की सबसे ज्यादा घटनाएं उत्तर प्रदेश में घटित हुई थीं, लेकिन अपराध दर की लिहाज से यह प्रदेश 26वें स्थान पर था. इसे खराब नहीं कहा जा सकता. अगर महिलाओं के खिलाफ अपराध दर के हिसाब से देखा जाए, तो उस समय उत्तर प्रदेश का स्थान 17वां था. इस लिहाज से यह आंध्र प्रदेश, असम, हरियाणा, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों से बेहतर स्थिति में है. 

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इसमें बीजेपी और गैर-बीजेपी दोनों ही शासित राज्य हैं. इसलिए अनिवार्य रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि अमुक दल वाले राज्यों की स्थिति अच्छी है और बाकी की खराब. ऐसी स्थिति में घटना के बाद सरकार के रवैये से ही उसकी साख बनती है. अगर सरकार बिना किसी भेदभाव के कार्रवाई करती है, तो उसके प्रति जनता का विश्वास पैदा होता है. इस दृष्टि से अब तक योगी सरकार की छवि सकारात्मक ही है. अपराधियों में खौफ है, आम आदमी में नहीं. आम आदमी को लगता है कि अपराध होने पर न्याय मिलेगा. यही कारण है कि उन्नाव कांड में सरकार को ईमानदारी से काम करना होगा, अन्यथा जनता का विश्वास घटेगा.

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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