जब महिला मुक़ाबिल हो तो उसका ‘चरित्र’ उछालो...
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जब महिला मुक़ाबिल हो तो उसका ‘चरित्र’ उछालो...

कंगना के खिलाफ जब धमकी, बीएमसी का उनका ऑफिस तोड़ना, क्वारंटाइन की धमकी देना कुछ भी काम नहीं आया तो अब एंटी कंगना ब्रिगेड जुट गई है उनके चरित्र हनन में. 

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जब महिला मुक़ाबिल हो तो उसका ‘चरित्र’ उछालो...

जब तोप मुक़ाबिल हो तो अखबार निकालो...

पत्रकारिता का ककहरा इसी पंक्ति से सीखना शुरू किया था, पर आज ऐसी एक और लाइन भी मन में आ रही है, वो है...

जब महिला मुक़ाबिल हो तो चरित्र उछालो...
ये आखिरी हथियार है किसी महिला के खिलाफ, जब पुरुष के पास कोई तरीका नहीं बचता किसी महिला के तर्कों, दावों से निपटने का तो उसके पास ये 'ब्रह्मास्त्र' होता है.

कंगना के खिलाफ बीएमसी का उनके ऑफिस को तोड़ना, क्वारंटाइन की धमकी देना भी काम नहीं आया तो अब एंटी कंगना ब्रिगेड जुट गई है उनके चरित्र हनन में. तमाम पार्टियों की आईटी सेल और कई पूर्व पत्रकार जुट गए हैं उनके बोल्ड फोटो या विडियोज ढूंढने में. कंगना को मिलते जन समर्थन से अब एक तबका घबरा गया है.

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कंगना की बोल्ड फिल्मों के दृश्यों पर सवाल उठाने वाले ये एजेंडावादी महेश भट्ट पर सवाल नहीं उठाएंगे कि अपनी फिल्मों में महिलाओं को इतना बोल्ड क्यों दिखाते हो. ऐसी इंडस्ट्री क्यों बना दी गई जहां बोल्डनेस के बिना रोल ही नहीं मिलते? कोई उन मर्दों से सवाल नहीं पूछेगा कि जब उन्हें कंगना के ऐसे पोज से इतनी तकलीफ थी, तो क्यों वे लोग कंगना की बोल्ड फिल्म देख कर उसे सुपरहिट बनाते आए हैं.

औरत की अस्मिता का मुद्दा सिर्फ कंगना तक सीमित नहीं
औरत की अस्मिता का ये मुद्दा सिर्फ कंगना तक सीमित नहीं है. देश के मर्दों के एक बड़े तबके ने जिस तरह औरत की जगह को चौके तक सीमित रखा, वैसे ही फिल्म इंडस्ट्री की महिलाओं की जगह को नाच-गाने तक ही सीमित रखने की मंशा बनाई. अब उनको खौफ हो गया है कि ‘नाचने गाने वाली’ (ये शब्द औरत की अस्मिता को कम करने के लिए मर्दवादी सोच का प्रतीक है, पर नाचना-गाना-एक्टिंग करना एक कला है और कला का सम्मान देश के हर नागरिक को करना चाहिए) देश के बड़े मुद्दों पर बात करके उन्हें नई चुनौती पेश कर रही है. अपना हर वार फेल होने के बाद वह उसकी बोल्ड फोटो शेयर करके लिख रहे हैं कि ‘इसको दी है केंद्र सरकार ने सिक्योरिटी’.  सच मानिए ये सिक्योरिटी न मिली होती तो अब तक माफिया गैंग कंगना के मुंह पर स्याही तो फिंकवा ही चुका होता. 

कंगना की जिंदगी पहले से ही खुली किताब है. आदित्य पंचोली से लेकर अध्ययन सुमन और ऋतिक रोशन तक उन्होंने कुछ नहीं छिपाया. फिर आपके पास खुलासे के लिए भी कुछ नहीं है. आपके पास बस वही हथियार बचा है जो सदियों से ताकतवर मर्द एक ताकतवर होती महिला के खिलाफ इस्तेमाल करते आए हैं, वो है द्रौपदी से लेकर रजिया सुल्तान तक के चरित्र पर लांछन लगाने का.

रिया के सपोर्ट में कैंपेन
सबसे शर्मनाक है फिल्मी हस्तियों का रवैया. कल उन्होंने रिया के सपोर्ट में कैंपेन चलाया, रिया ने काली टी शर्ट पहनकर गिरफ्तारी दी, जिस पर लिखा था पितृसत्ता को खत्म करो. इसमें कौन सी पितृसत्ता का मामला है? सीधे ड्रग्स का मामला है. पितृसत्ता को चुनौती देने का ये मामला तो कंगना का बनता है और ये सब हस्तियां एक ड्रग एडिक्ट या सप्लायर के लिए तो खड़ी हैं लेकिन ‘हरामखोर’ करार दे दी गई एक लड़की के लिए नहीं, क्योंकि उन्हें मुंबई में अपना घर या ऑफिस नहीं तुड़वाना है.

हिम्मत से तय होता है चरित्र का पैमाना
अब सोचिए किस में दम है और कौन डरपोक है, इसी हिम्मत से चरित्र का पैमाना तय होता है. प्रोफेशनल कमिटमेंट के तहत खिंचवाई गईं फोटोज या विडियोज से नहीं. कंगना एपिसोड ने न केवल नेताओं का, उनके साथी फिल्म वालों का और साथ में उन बुद्धिजीवियों का चेहरा भी उजागर कर दिया है, जो सालों से भारत में महिला उत्पीड़न की दास्तान सुनाते आए हैं.

सुशांत सिंह राजपूत मामला अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है. भले ही मुख्य आरोपी मानी जा रहीं रिया चक्रवर्ती को ड्रग्स के मामले में गिरफ्तार किया गया है, लेकिन यह इंसाफ की दिशा में बढ़ाया गया पहला कदम है, जिसका इंतजार काफी समय से किया जा रहा था. इस लड़ाई में अभिनेत्री कंगना रनौत ने भी बेहद अहम् एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. निर्भीकता के साथ ‘सही’ को सही और ‘गलत’ को गलत कहना हर किसी के बस की बात नहीं. कंगना जानती थीं कि इसके लिए उन्हें बहुत कुछ झेलना होगा, जिसकी शुरुआत बीएमसी की कार्रवाई से हो चुकी है, लेकिन इसके बावजूद वह सच्चाई की राह पर अडिग रहीं.

सोशल मीडिया पर भी निशाना बनाया गया
कंगना को सोशल मीडिया पर भी निशाना बनाया गया. उनके खिलाफ तरह-तरह की बातें लिखी गयीं. यह दर्शाने का प्रयास किया गया कि उनकी जिंदगी खुद ड्रग्स के अंधेरे में रही है. क्रिया पर प्रतिक्रिया स्वाभाविक है. अक्सर किसी बड़ी ताकत के खिलाफ आवाज उठाने वाले को आलोचनाओं, आरोपों के बाण झेलने पड़ते हैं. इसलिए अब तक जो कुछ कंगना के खिलाफ सोशल मीडिया पर होता आया है, उसे लड़ाई का हिस्सा मानकर स्वीकार किया जा सकता था लेकिन अब विरोध के नाम पर महिला अस्मिता, उसकी गरिमा, उसके सम्मान को निशाना बनाया जा रहा है, जिसकी एक सभ्य समाज में कोई जगह नहीं.

केंद्र सरकार द्वारा सुरक्षा प्रदान करने के बाद से कंगना की ऐसी तस्वीरों को वायरल किया जा रहा है, जिनमें वह आधुनिक या टिपिकल बॉलीवुड परिधानों में नजर आ रही हैं. वायरल करने वाले कंगना के पहनावे से उनके कैरेक्टर को जज कर रहे हैं. सरकार का फैसला सही है या गलत यह बहस का मुद्दा हो सकता है और इस पर स्वस्थ बहस से शायद ही किसी को एतराज हो, लेकिन असहमति का यह अंदाज क्या जायज है?

 

आधुनिक पहनावे को चरित्र से जोड़कर देखा जा रहा
वैसे कंगना अकेली ऐसी महिला नहीं हैं जिनके आधुनिक पहनावे को उनके चरित्र से जोड़कर देखा जा रहा है. इतिहास में तमाम ऐसी घटनाएं दर्ज हैं, जहां संकीर्ण मानसिकता से पीड़ित पुरुषों ने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों के लिए उनके कपड़ों को दोषी ठहराया है और आज भी ठहराया जाता है. द्रौपदी से लेकर कंगना तक महिलाएं ऐसी पिछड़ी मानसिकता का शिकार होती रही हैं. महाभारत काल में द्रौपदी को दांव पर लगाया गया, कौरवों ने उनका चीरहरण किया. आज इतने युग के बाद भी स्थिति कमोबेश वैसी ही है या कह सकते हैं कि सोशल मीडिया के आविष्कार के बाद से इसमें तेजी आई है. अभिव्यक्ति की आजादी के इस मंच पर अपने आजाद ख्यालों को व्यक्त करने वालीं महिलाओं का शाब्दिक चीर हरण किया जाता है. 

पहनावे पर उंगली उठाकर मानसिक रूप से तोड़ना हमारी आदत
भले ही कोई स्वीकार करे या न करे, लेकिन महिलाओं के पहनावे पर उंगली उठाकर उन्हें मानसिक रूप से तोड़ना हमारी आदत में शुमार हो गया है. शब्दों की जंग हो या व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा जब भी पुरुष महिलाओं के मुकाबले खुद को कमजोर पाते हैं, उनके कपड़ों से उनके कैरेक्टर को जज किया जाने लगता है. यह बताने की कोशिश शुरू हो जाती है कि आधुनिक पहनावे वाली महिलाएं चरित्रवान नहीं होतीं, इसलिए वह अतिरिक्त सुविधा या सम्मान की हकदार नहीं. पहनावा यदि चरित्र का पैमाना है, तो अधिकांश पुरुषों को भी चरित्रहीन की श्रेणी में रखा जाना चाहिए.

विरोध और असहमति सामान्य प्रक्रिया है. किसी एक व्यक्ति की सोच दूसरे को समझ आये यह जरूरी नहीं. इसलिए संविधान भी हमें विरोध की इजाजत देता है, लेकिन संयमित दायरे में. मर्यादा की लक्ष्मण रेखा के भीतर रहकर किया गया हर विरोध स्वीकार्य है, लेकिन विरोध के नाम पर किसी महिला की अस्मिता, उसके सम्मान से खिलवाड़ करना, उसके पहनावे को उसके चरित्र का आधार बनाना स्वीकार नहीं किया जा सकता.

लेखक: अभिषेक मेहरोत्रा Zee News के Editor (Digital) हैं.

(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं.)

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