गोपनीयता और सीधा प्रसारण एक साथ कैसे चलेगा माई लॉर्ड
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गोपनीयता और सीधा प्रसारण एक साथ कैसे चलेगा माई लॉर्ड

सुप्रीम कोर्ट की अदालतों में अब मीडिया कर्मियों को मोबाइल के इस्तेमाल की इजाजत भी मिल गई है.

गोपनीयता और सीधा प्रसारण एक साथ कैसे चलेगा माई लॉर्ड

सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा का सीलबंद जवाब मीडिया में कथित रूप से लीक होने पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने नाराज होकर, सुनवाई को एक हफ्ते के लिए स्थगित कर दिया. इस घटनाक्रम के बाद सुप्रीम कोर्ट के जज, वकील, मीडिया और सरकार समेत अनेक पक्षों के सामने कई सवाल खड़े हो गये हैं.

प्रेस कांफ्रेन्स करने वाले चीफ जस्टिस सक्रिय मीडिया के पक्षधर हैं
सीबीआई चीफ के घटनाक्रम से चीफ जस्टिस गोगोई को मीडिया से परहेज करने वाला व्यक्ति नहीं माना जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की मनमर्जी के खिलाफ गोगोई समेत चार वरिष्ठ जजों नें विरोध का बिगुल बजाते हुए प्रेस कान्फ्रेन्स की थी. चीफ जस्टिस बनने के पहले रामनाथ गोयनका अवार्ड समारोह में जस्टिस गोगोई ने स्वतंत्र और सक्रिय मीडिया का पुरजोर समर्थन किया था. जस्टिस गोगोई न्यायिक अनुशासन के पक्षधर हैं पर उन्हें मीडिया से परहेज करने वाला जज नहीं मानना चाहिए.

गोपनीय दस्तावेजों को मीडिया से साझा करने का रिवाज
जनवरी, 2018 की प्रेस कांफ्रेन्स में चार वरिष्ठ जजों ने मीडिया को गोपनीय पत्र सौंपा था. चीफ जस्टिस को लिखे उस पत्र को आरटीआई से भी हासिल नहीं किया जा सकता था, इसके बावजूद वह पत्र प्रेस कांफ्रेन्स में पत्रकारों को दिया गया. सीलबन्द लिफाफे में दिये गये जवाब को मीडिया ने अभी तक प्रकाशित नहीं किया, तो फिर सीबीआई चीफ के वकीलों को फटकार क्यों लगी?

सीबीआई के डीआईजी की याचिका से सनसनीखेज खुलासे
सीबीआई में विवाद के बाद आईपीएस अधिकारी मनीष सिन्हा का नागपुर स्थानांतरण कर दिया गया. डीआईजी सिन्हा ने दण्डात्मक ट्रान्सफर को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दायर अर्जी के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, केन्द्रीय मंत्री, रॉ और पीएमओ के अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए. सिन्हा की अर्जी को सीबीआई चीफ की याचिका के साथ संलग्न करने के लिए उनके वकील ने मौखिक प्रार्थना या मेंशनिंग किया, जिसे चीफ जस्टिस ने नामंजूर कर दिया. इसके तुरंत बाद सिन्हा के वकीलों ने सनसनीखेज अर्जी को मीडिया के लिए जारी कर दिया, जिस कारण सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस खफा थे. सीबीआई मामले के अलावा अन्य सभी मामलों में सुनवाई के पहले याचिका को मीडिया से साझा करने का रिवाज बन गया है. सिन्हा की अर्जी को मीडिया में जारी नहीं करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कोई निर्देश नहीं दिया था. डीआईजी सिन्हा के खुलासों से सीबीआई और सरकार को हुई बदनामी के लिए सीबीआई चीफ के वकीलों को कैसे दोषी माना जा सकता है?

सीबीआई में अफसरों के बाद अब वकीलों में भी मतभेद
डायरेक्टर और नम्बर दो के बीच जंग में अधिकारियों की लामबंदी से सीबीआई की साख चौपट हो गई. चीफ जस्टिस की नाराजगी के बाद सीबीआई चीफ के वकीलों का भी विरोधाभास देखने को मिला. सीबीआई चीफ की तरफ से नरीमन ने जवाब बनवा कर सीलबंद लिफाफे में एओआर वकील को दिया. सुप्रीम कोर्ट के नियमों के अनुसार नरीमन जैसे सीनियर एडवोकेट फाइलिंग और मेंशनिंग नहीं कर सकते. जवाब फाइल करने में तय समयसीमा से विलंब को देखते हुए सीबीआई चीफ के जूनियर वकील ने चीफ जस्टिस की अदालत में समयसीमा बढ़ाने की मोहलत मांगी. सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को सौंपा गया जवाब मीडिया में लीक नहीं हुआ. नरीमन और जूनियर वकील दोनों पक्ष सही हैं, पर गलतफहमी की वजह से सीबीआई चीफ के मामले में सुनवाई टल गई.

सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के सीधे प्रसारण का निर्णय और लाइव ट्वीट
सुप्रीम कोर्ट की अदालतों में अब मीडिया कर्मियों को मोबाइल के इस्तेमाल की इजाजत भी मिल गई है. महत्वपूर्ण मामलों में अब लाइव ट्वीट्स के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही का सजीव वर्णन जनता को मिलने लगा है. महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई के सीधे प्रसारण के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस ने सितम्बर 2018 में फैसला देते हुए कहा था कि इससे बंद कमरों में उजाला होगा. सीबीआई मामले में पूरे देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं, तो फिर सनसनीखेज खुलासों से परहेज कैसे हो सकता है?

ब्रेकिंग न्यूज की चपेट में फंसी अदालतें
देश में 24 घंटे चलने वाले सैकड़ों टीवी चैनलों और वेबसाइट्स को ब्रेकिंग न्यूज की नियमित खुराक चाहिए. अयोध्या, सबरीमाला, पटाखा बैन और सीबीआई जैसे मामलों की वजह से सुप्रीम कोर्ट अब ब्रेकिंग न्यूज का बड़ा केन्द्र बन गया है. सभी बड़े अखबार, टीवी चैनल और वेबसाइट्स के पत्रकार अब सुप्रीम कोर्ट के मामलों को कवर करते हैं, जिनमें अधिकांश कानून की पढ़ाई कर चुके हैं. पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के समय अनेक मौखिक टिप्पणियाँ, लिखित आर्डर का हिस्सा नहीं होने के बावजूद मीडिया के लिहाज से ब्रेकिंग न्यूज बन जाती थी. चुनाव आयोग समेत अनेक संस्थायें अब सोशल मीडिया से जुड़ रही हैं, तो सुप्रीम कोर्ट को भी जनता के साथ सीधे संवाद की पहल करके, ऐसे विवादों का अब अंत करना चाहिए.

(लेखक विराग गुप्‍ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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