गांधी के 2 आगे गांधी, गांधी के 2 पीछे गांधी, आगे गांधी पीछे गांधी, बोलो कितने गांधी?
Advertisement
trendingNow1734097

गांधी के 2 आगे गांधी, गांधी के 2 पीछे गांधी, आगे गांधी पीछे गांधी, बोलो कितने गांधी?

ऐसा नहीं है कि सोनिया के जाने से कांग्रेस में हर कोई दुखी ही है, दुखी बस वही हैं, जो पुराने कांग्रेसी कैम्प में हैं, यानी सोनिया कैम्प में. 

गांधी के 2 आगे गांधी, गांधी के 2 पीछे गांधी, आगे गांधी पीछे गांधी, बोलो कितने गांधी?

क्या कभी अम्बर से
सूर्य बिछड़ता है
क्या कभी बिन बाती
दीपक जलता है

कैसी है ये अनहोनी
हर आंख हुई नम
छोड़ गया जो तू
कैसे जिएंगे हम

तू ही किनारा तू ही सहारा
तू जग सारा, तू ही हमारा
सूरज तू ही तारा

जय जयकारा, जय जयकारा
स्वामी देना साथ हमारा

आप ‘बाहुबली’ के इस गाने में बाहुबली की जगह सोनिया, राहुल को रख दीजिए और दुखी हो रही जनता की जगह अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह, चिदंबरम, शशि थरूर, अमरिंदर सिंह, अशोक गहलौत आदि कांग्रेस नेताओं के चेहरे रख दीजिए.

अध्यक्ष और पीएम पद दोनों के लिए लॉटरी खुल सकती है
ऐसा नहीं है कि सोनिया के जाने से कांग्रेस में हर कोई दुखी ही है, दुखी बस वही हैं, जो पुराने कांग्रेसी कैम्प में हैं, यानी सोनिया कैम्प में. जो लोग राहुल कैम्प मे हैं, फौरन उन्होंने राहुल का नाम बढ़ा दिया है, कि आप जा रही हो तो राहुल को बनाकर जाओ. आप दिग्गी राजा, पवन खेड़ा आदि के ट्वीट पढ़ सकते हैं. कुछ ऐसे भी हैं, जो दबे ढके प्रियंका गांधी का भी नाम उछाल रहे हैं, पर किसी एक की हिम्मत ये कहने की नहीं है कि कोई गांधी परिवार से बाहर का आदमी कांग्रेस का अध्यक्ष होना चाहिए.

मतलब गांधी के 2 आगे गांधी, गांधी के 2 पीछे गांधी, आगे गांधी पीछे गांधी, बोलो कितने गांधी, यानी कहानी इन 3 गांधियों के इर्द गिर्द ही घूमेगी.

ये भी पढ़ें: कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक शुरू होते ही सोनिया गांधी ने की इस्तीफे की पेशकश

वहीं, एक तरफ बीजेपी को देखो, नायडू, राजनाथ, गडकरी, अमित शाह जैसे कई पूर्व अध्यक्ष अभी भी सक्रिय हैं. नड्डा नए अध्यक्ष हैं और करीब 20 लोग अध्यक्ष पद के योग्य हैं और बाकायदा लाइन में हैं और कई को उम्मीद भी है कि एक दिन अध्यक्ष और पीएम पद दोनों के लिए उनकी लॉटरी खुल सकती है. लेकिन कोई भी ना तो किसी खानदान की चाटुकारिता करता है और ना ही किसी परिवार का मोहताज है. और दूसरी तरफ से कांग्रेसी हैं, दिग्गी राजा, अहमद पटेल, शशि थरूर, गुलाम नबी आजाद जैसे खांटी और योग्य नेता सपने में भी सोचना नहीं चाहते और सोचते भी होंगे तो जुबान पर नहीं लाते होंगे.

उनको मालूम है अध्यक्ष कोई भी हो बागडोर तो गांधी परिवार के पास होती है, और जिसने ताकत अपने पास रखने की कोशिश की उसका हाल बुरा हुआ. जैसे नरसिंह राव अध्यक्ष भी थे और पीएम भी, उनकी डेडबॉडी को कांग्रेस के दफ्तर तक में रखने की जगह नहीं दी गई थी, मेमोरियल तो भूल ही जाइए. सीताराम केसरी का सामान तक दफ्तर से फिंकवा दिया था. ऐसे में किसकी हिम्मत है जो अपनी ख्वाहिश जताए अध्यक्ष बनने की. 

देश की जनता की उम्मीद और अरमानों को दशकों तक कुचला
20 जनवरी 2013 को कांग्रेस उपाध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने अपने भाषण में कहा था, बीती रात मां सोनिया गांधी मेरे पास आईं और कहा कि सत्ता जहर के समान है, जो ताकत के साथ खतरे भी लाती है.’ लेकिन क्या वास्तव में उन्हें ऐसा लगता है? यदि लगता है, तो फिर वो और उनकी माताजी यानी सोनिया गांधी इस ‘जहर’ को पीने के लिए इतना छटपटाते क्यों रहते हैं? क्यों नहीं वह ‘जहर’ को दूसरों के लिए छोड़ देते? हकीकत यह है कि दोनों अच्छे से जानते हैं कि इस तथाकथित विषपान से ही उन्हें शक्ति रूपी ‘अमृत’ मिल सकता है. वह शक्ति जिसके बल पर कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने देश की जनता की उम्मीद और अरमानों को दशकों तक कुचला. 

कांग्रेस मौजूदा सरकार की नीतियों की मुसोलिनी या हिटलर की नीतियों से तुलना करती है. विपक्षी पार्टी होने के नाते इस तरह की तर्कहीन तुलना उसका अधिकार है, लेकिन इस तुलना से उसकी अपनी तानाशाही कम नहीं हो जाती. देश की सबसे पुरानी पार्टी में केवल तीन पोस्टर बॉय हैं, सोनिया, राहुल और प्रियंका. जो इनके साथ है, वो पार्टी के साथ है, और जो खिलाफ वो पार्टी विरोधी. क्या ये लोकशाही है? जितिन प्रसाद, राज बब्बर, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कई प्रतिभाशाली नेता, जो इस त्रिमूर्ति का विकल्प हो सकते थे, उन्हें मानसिक तौर पर इतना प्रताड़ित किया गया कि उन्होंने अपनी राह ही बदल ली. इस फेहरिस्त में अगला नंबर सचिन पायलट का हो सकता है. पायलट कांग्रेस में रुक जरूर गए हैं, मगर यह विराम नहीं बल्कि ‘अल्पविराम’ है. 

सोनिया को ‘राजमाता शिवगामी’ के किरदार से बाहर निकलना पड़ेगा
सोनिया कांग्रेस की ‘राजमाता शिवगामी’ हैं, जो सबकुछ अपनी मुट्ठी में रखना चाहती हैं. जिस तरह से बाहुबली में ‘शिवगामी’ की अ-दूरदृष्टि और अहंकारी सोच ने ‘महिष्मति’ को नष्ट कर दिया, वैसे ही सोनिया कांग्रेस को नष्ट करने पर आतुर हैं. उनके लिए कांग्रेस का मतलब गांधी से शुरू होकर गांधी पर ही खत्म हो जाता है. सोनिया गांधी ने इस्तीफा दिया, तो राहुल गांधी ने पद संभाला, राहुल ने पद छोड़ा तो सोनिया कुर्सी पर बैठ गईं और अब फिर से कुर्सी के आदान-प्रदान का यह ‘शो’ पूरा देश देखने जा रहा है. ‘बाहुबली’ एक फिल्म थी और फिल्मों में अक्सर ‘अंत’ अच्छा ही होता है, लेकिन वास्तविक जिंदगी में नहीं. यदि कांग्रेस को ‘महिष्मति’ बनने से रोकना है, तो सोनिया को ‘राजमाता शिवगामी’ के किरदार से बाहर निकलना पड़ेगा, जिसकी संभावना बेहद कम है.

लेखक: अभिषेक मेहरोत्रा Zee News के Editor (Digital) हैं.

(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं.) 

 लेखक को ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें.

Trending news