वन-डे और टी-20 के चक्कर में सुरक्षात्मक और शास्त्रीय क्रिकेट में हम पिछड़ रहे हैं. दूसरे टेस्ट में हार को पचाना मुश्किल पड़ रहा है. विश्व क्रिकेट की रैंकिंग में नंबर एक होने के नाते इस हार की तथ्यपरक जांच-पड़ताल जरूर बनती है.
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सेंचुरियन में दूसरा टेस्ट मैच भी हार गए. चौथी पारी की शुरुआत तक हमारे पास जीत की संभावनाएं थीं. सिर्फ 287 रन बनाने थे. कम से कम एक सौ दस ओवर का समय बाकी था. सिर्फ विकेट पर टिके रहने का हुनर ही काफी था. लेकिन विकेट बचाने का खेल शायद हम भूलते जा रहे हैं. हो सकता है कि वन-डे और टी-20 के चक्कर में सुरक्षात्मक और शास्त्रीय क्रिकेट में हम पिछड़ रहे हैं. खैर, दूसरे टेस्ट में हार को पचाना मुश्किल पड़ रहा है. विश्व क्रिकेट की रैंकिंग में नंबर एक होने के नाते इस हार की तथ्यपरक जांच-पड़ताल जरूर बनती है.
क्या अपने टक्कर की टीम से खेलने की तैयारी थी...
अब लगता है कि हमने अपनी नंबर एक की रैंकिंग को ही तैयारी मान लिया था. साउथ अफ्रीका खेलने जाने से पहले की तैयारियों पर जितनी भी रिपोर्ट पढ़ने को मिलीं उनमें यह संकेत कहीं नहीं दिखा कि अपने टक्कर की टीम के पास किस तरह के गेंदबाज हैं? वहां की पिच कैसी हैं? सिर्फ यही पढ़ने को मिला कि हम उत्साह से लबरेज हैं और हमारे पास कुछ नए-नए उभरे सितारे हैं मसलन बुमराह, हार्दिक और भुवनेश्वर. हम इस गुमान में भी थे कि कोहली और रोहित जैसे धाकड़ खिलाड़ियों की टीम को कौन हरा सकता है. इस समय विश्व की एक कमजोर सी टीम श्रीलंका को बुरी तरह पीट लेने के बाद हमारा हौसला बुलंदी पर था. लेकिन तैयारियों के मामले में कोई खास काम किया गया हो, इसका कोई सबूत ढूंढने में दिक्कत आ रही है. यहां तक कि हमेशा की तरह विदेश में सीरीज शुरू होने से पहले जो अभ्यास मैच खेलने का चलन है वे मैच भी इस दौरे में नहीं खेले गए. यहां तक कि आखिर तक यह अटकल नहीं लगी कि पहले टेस्ट में हम कौन से 11 खिलाड़ी लेकर उतरेंगे और टीम में वे ही 11 खिलाड़ी किन किन आधारों पर होंगे.
पहले टेस्ट में हार से क्या सबक लिया...
हफ्तेभर पहले की बात है कि पहले टेस्ट में भी कुछ इसी तरह हारे थे. उस मैच में जीत के लिए चौथी पारी में सिर्फ 208 रन बनाने थे. और वहां भी चौथी पारी को हमने उसी निश्चिंतता के साथ खेलना शुरू किया था जैसे वह मैच जीत ही चुके हों. बेशक पहले टेस्ट की तीसरी पारी में हमने साउथ अफ्रीका को 130 रन पर समेट दिया था और पहली पारी के सारे घाटे को पूरा कर लिया था. लेकिन यह अंदाजा लगाना भूल गए कि जब हमने साउथ अफ्रीका को मुश्किल में डाल दिया तो वैसी स्थिति हमारे सामने भी आ सकती है. ऐसा लगा जैसे हम यह भी भूल गए कि हम यह टेस्ट मैच खेल रहे हैं जिसमें समयावधि भी खेलती है.
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पहले टेस्ट में हमारे पास 150 ओवर का समय बचा था और सिर्फ 208 रन बनाने थे. उस मैच को तो हम विकेट बचाने के अभ्यास में ही लगा सकते थे. क्रिकेट के बारे में माना जाता है कि अगर रन बनाने का दबाव न हो तो दुनिया के बड़े से बड़े गेंदबाज और कठिन से कठिन पिच को भी थकाया जा सकता है. पहले टेस्ट मैच में हमें सबक मिला था कि हम विकेट बचाने का खेल भूल गए हैं. कुछ विशेषज्ञों ने पहले टेस्ट मैच के दौरान राहुल द्रविड़ और सत्तर के दशक के ऑलराउंडर एकनाथ सोलकर जैसे खिलाड़ियों की याद दिलाई थी. लेकिन पहले टेस्ट का यह सबक दूसरे टेस्ट में किसी ने याद नहीं दिलाया.
सेंचुरियन टेस्ट में चौथी पारी के खेल का विश्लेषण
चौथी पारी में हमारे पास चौथे दिन का पौने दो घंटे का खेल और पांचवे दिन के पूरे 90 ओवर बाकी थे. यानी दूसरे टेस्ट की तरह ही समय की कोई कमी नहीं थी. चौथे दिन अगर बिल्कुल भी रन न बनते फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ना था. लेकिन फिर भी अपने बल्लेबाजों के बल्ले चलते देखे जा रहे थे. हो सकता है कि खिलाड़ी के लिए अपने स्वाभाविक खेल में बदलाव लाना मुश्किल होता हो. लेकिन वन-डे और टी-20 में हमारा चित्त इतना ज्यादा लग गया है कि अगर धीरे खेलने यानी बच-बचकर खेलने के लिए अलग से प्रशिक्षण की कोई जरूरत हो भी तो उसकी वकालत करने वाला आज कोई नहीं मिलता. सभी सलाहकार अपने खिलाड़ियों को अपना स्वाभाविक खेल खेलते देने के तरफदार ही नज़र आते हैं. लेकिन साउथ अफ्रीका का प्रदर्शन और वहां की पिच, असाधारण एकाग्रता और असाधरण धैर्य की मांग कर रहे थे. यह ऐसी मांग है जो टेस्ट क्रिकेट में हमेशा रहती है और पहले और दूसरे टेस्ट मैच में तो इसकी फौरी जरूरत थी.
असमान उछाल वाली पिच का पहलू
सेंचुरियन की असमान उछाल वाली पिच का बहाना बार-बार बनाया गया. पिच खेल का ही एक हिस्सा है. इसके बारे में यह भी निर्विवाद है कि यह असमान उछाल न ही अचानक आ जाती है और न ही कोई ऐसी सूरत है कि अचानक गायब हो जाती हो. गौर करने की बात यह है कि यह पिच दक्षिण अफ्रीका के लिए भी असमान उछाल वाली ही थी. इसी असमान उछाल वाली पिच पर तीसरी पारी में दक्षिण अफ्रीका की टीम जुगत लगाकर, धैर्य और एकाग्रता साधते हुए 258 रन बना ले गई थी. सो असमान उछाल की बात सिर्फ भारतीय बारी के लिए हो ऐसी बात करना बेकार की बात है.
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हम क्यों नहीं वही एकाग्रता और धैर्य का हुनर दिखा सकते थे. लेकिन अपनी टीम का कोई भी बल्लेबाज उठी हुई गेंद को छूने से बाज नहीं आया. हो सकता है कि यह भी वन-डे और टी-20 ज्यादा खेलने से पड़ी आदत हो जिसे उन फॉर्मेट में अच्छा माना जाता है. चौथी पारी में भारतीय खिलाड़ियों के आउट होने के कारणों का तथ्यपरक विश्लेषण करें तो यह बात निकलकर आती है कि हमारे ज्यादातर खिलाड़ी असमान उछाल के रोग के शिकार हुए ही नहीं. पांचवें दिन तो सभी रन बनाने की जल्दी में आउट होते दिखे. और फिर पांचवें दिन के पहले सेशन में जिस तरह से हमारे खिलाड़ियों ने आश्चर्यजनक रूप से सौ रन से ज्यादा खड़े कर दिए वह आंकड़ा ही बता रहा है कि हम तेजी से लक्ष्य हासिल करने की रणनीति बनाए रहे. इस चक्कर में विकेट गंवाते रहे और आखिर आधे रास्ते पर ही पूरी टीम आउट हो गई. यानी लगातार दो टेस्ट मैच, हम खेल के दौरान जरूरत के मुताबिक बनने वाली अपनी रणनीतियों के कारण हारे.
(लेखिका, प्रबंधन प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और सोशल ऑन्त्रेप्रेनोर हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं)