13 साल की उम्र में इंडियन शूटिंग टीम में हुईं सिलेक्ट, लंबी है संघर्ष की दास्तान
Advertisement
trendingNow1496843

13 साल की उम्र में इंडियन शूटिंग टीम में हुईं सिलेक्ट, लंबी है संघर्ष की दास्तान

10वीं की छात्रा यशस्वी दिसंबर 2018 में दिल्ली में हुए राष्ट्रीय चयन ट्रायल में 10 मीटर एयर पिस्टल में तीसरे स्थान पर रही थीं.

यशस्वी जोशी ने भारतीय टीम में जगह बनाकर साबित कर दिया है कि जहां चाह होती है, वहां राह भी बन ही जाती है. (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: सीमा से सटे पिथौरागढ जिले में सुविधाओं के अभाव और लंबी यात्राओं की दिक्कतों के बावजूद तेरह बरस की निशानेबाज यशस्वी जोशी ने भारतीय टीम में जगह बनाकर साबित कर दिया है कि जहां चाह होती है, वहां राह भी बन ही जाती है. चीन और नेपाल की सीमा से सटे पिथौरागढ जिले में अपने घर पर ही बनी निशानेबाजी रेंज में राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज रह चुके अपने पिता के मार्गदर्शन में पिछले चार साल से मेहनत कर रही दसवीं की छात्रा यशस्वी दिसंबर 2018 में दिल्ली में हुए राष्ट्रीय चयन ट्रायल में 10 मीटर एयर पिस्टल में तीसरे स्थान पर रही. इसी स्पर्धा में उनकी आदर्श मनु भाकर अव्वल रही थी.

यशस्वी ने बताया,‘‘ मेरा बचपन से लक्ष्य था कि भारतीय टीम में जगह बनानी है. वह पूरा हो गया और अब मैं देश के लिये ओलंपिक पदक जीतना चाहती हूं.’’

देश के एक कोने पर रहने वाली यशस्वी ने राष्ट्रीय स्तर पर चार कांस्य पदक जीते और राज्य स्तर पर छह स्वर्ण, दो रजत ओर एक कांस्य जीत चुकी है. अब अप्रैल में होने वाले अगले चयन ट्रायल के बाद उसे उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदार्पण का मौका मिलेगा.

यशस्वी ने कहा ,‘‘ हर वर्ग के लिये छह चयन ट्रायल होते हैं जिनमें से दो हो गए हैं और दो अप्रैल में होंगे. उसके बाद राष्ट्रीय शिविर और उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका मिलेगा.’’

जसपाल राणा, हीना सिद्धू और मनु को अपना आदर्श मानने वाली यशस्वी की दिनचर्या आम बच्चों से अलग है और पढाई के अलावा उसका पूरा समय अभ्यास को समर्पित है . उसने कहा ,‘‘ सुबह चार बजे उठकर मैं अभ्यास करती हूं और स्कूल से लौटने के बाद रात को भी तीन घंटा अभ्यास में बीतता है. कभी कभार बैडमिंटन खेल लेती हूं.’’

खुद राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज रह चुके यशस्वी के पिता मनोज जोशी आईटी इंजीनियर है और उसकी सफलता के पीछे उनके संघर्ष की लंबी दास्तान है. वह अपनी छोटी सी निशानेबाजी अकादमी चलाते हैं जिसमें यशस्वी समेत नौ बच्चे हैं.

मनोज ने कहा ,‘‘ निशानेबाजी महंगा खेल है और आर्थिक दिक्कतें कई बार आती हैं. राज्य सरकार का रवैया भी उदासीन है. हमारे पास संसाधन के नाम पर अपनी छोटी सी जमीन है और अकादमी के लिये लाइसेंस ले रखा है. उपकरण और कारतूस की उपलब्धता भी बड़ा मसला है.’’

उन्होंने कहा ,‘‘ इस इलाके में काफी होनहार निशानेबाज हैं जो भविष्य में भारत के लिये पदक जीत सकते हैं. अगर यहां एक सर्वसुविधायुक्त अकादमी खोल ली जाये तो भारतीय निशानेबाजी को फायदा ही होगा.’’

(इनपुट-भाषा)

 

 

Trending news