मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने की 3 देशों की कोशिश, क्या चीन फिर बनेगा विलेन?
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मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने की 3 देशों की कोशिश, क्या चीन फिर बनेगा विलेन?

संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव पेश होने के बाद अब सबकी निगाहें चीन की ओर लगी हैं. 

 मसूद अजहर को तीन बार वैश्विक आंतकी घोषित करने के प्रस्ताव को चीन रोक चुका है. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के लिए एक बड़े और महत्वपूर्ण कदम के तहत राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव पेश किया गया है. इस कदम को भारत के लिए परिषद के तीन बड़े सदस्यों ने उठाया है. ये सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस हैं. पहले यह प्रस्ताव फ्रांस और ब्रिटेन ही पेश करने वाले थे. अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मंच पर यह एक बड़ी कामयाबी भले ही हो लेकिन इसमें पूरी सफलता भारत के लिए आसान नहीं है. आखिर ऐसा क्यों है. क्यों दुनिया की पांच सबसे बड़ी ताकतों में से तीन का खुला और पूरा समर्थन हासिल होने के बाद भी इस मामले में भारत की जीत सुनिश्चित नहीं है?

आतंकी हमले का निंदा प्रस्ताव, भारत की पहली सफलता
पुलवामा हमले की जैश-ए-मोहम्मद की जिम्मेदारी लेने के बाद ही इस दिशा में भारत की कोशिशें शुरू हो गईं थी. पाकिस्तान से भी कहा जाने लगा था कि वह जैश-ए-मोहम्मद और उसके सरगना मसूद अजहर पर कार्रवाई करे और उसे भारत को सौंप दे. इसके बाद से ही भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक गतिविधियां तेज कर दी थीं. पहले फ्रांस ने सुरक्षा परिषद में निंदा प्रस्ताव पेश किया जिसका चीन ने समर्थन किया और यह प्रस्ताव पास हो गया. यह भारत की संयुक्त राष्ट्र में बड़ी सफलता मानी गई.

मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव
निंदा प्रस्ताव के बाद भी भारत की कोशिशें कम नहीं हुईं.  इसका नतीजा यह हुआ कि अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस तीनों ने मिलकर अब सुरक्षा परिषद में अजहर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव पेश किया है. मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने के लिए पिछले 10 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र में यह चौथा ऐसा प्रयास है. इससे पहले 2009, 2016 और 2017 में ऐसा प्रस्ताव लाया गया था और तीनों बार यह पारित नहीं हो सका. 

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क्यों पारित नहीं हो सका यह प्रस्ताव
15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद के किसी प्रस्ताव के पारित होने के लिए वैसे तो बहुमत की जरूरत होती है, लेकिन परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में कोई एक सदस्य उस प्रस्ताव को खारिज करवा सकता है. इसकी वजह है इन पांच सदस्यों में निहित की गई वीटो शक्ति. पिछले तीन मौकों पर भारत का यह प्रस्ताव वीटो पावर के कारण ही पास नहीं हो पाया था और यह वीटो शक्ति का प्रयोग किसी और ने नहीं बल्कि भारत के सबसे पड़ोसी चीन ने किया था. दरअसल दुनिया भर के विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन अपनी ताकत को दक्षिण एशिया में बढ़ाना चाहता है और भारत को एक बढ़ती ताकत के तौर उभरता हुआ नहीं देखना चाहता. इसीलिए वह पाकिस्तान की झुका रहता है और जब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत पाकिस्तान के बीच कोई परस्पर विरोधी मामला उठता है तो वह पाकिस्तान का पक्ष लेता है. 

क्या इस बार भी चीन रुकावट डालेगा
बस यही सवाल अब भारत के सामने है. चीन के भारत विरोधी या पाकिस्तान समर्थित रुख में बदलाव आए इसी की संभावनाएं टटोली जा रही हैं. अगर विशेषज्ञों की माने तो यह बहुत मुश्किल है कि भारत चीन को इस प्रस्ताव को न रोकने के लिए मना पाएगा. भारत इस दिशा में बहुत ज्यादा प्रयास करे इसकी भी संभावना कम है. इसके बावजूद भी इस बार हालात कुछ अलग ही हैं. दुनिया भर में पुलवामा हमले की निंदा हो रही है और इसके साथ ही दुनिया के देश पाकिस्तान पर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कह रहे हैं. वहीं चीन यह दलील देता रहा है कि अभी तक मसूद अजहर संयुक्त राष्ट्र नियमों के मुताबिक वैश्विक आतंकी होने की शर्तो पर खरा नहीं उतरा है.

पिछली बार भी तो थे संगीन हालात
2009 का प्रस्ताव जब मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव पेश किया गया था उस समय 2008 के मुंबई हमलों को वजह बताया गया था. चीन ने इस मामले में विरोध करते हुए तकनीकी कारणों का हवाला दिया था. इसके बाद सितंबर 2016 पठानकोट हमले के बाद एक बार फिर मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव पेश किया गया. एक बार फिर यह प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में चीन की वीटो पॉवर के इस्तेमाल से पारित न हो सका था. इस बार भी यही चीन ने तकनीकी कारणों का हवाला दिया. इसके बाद नवंबर 2017 में भी इस प्रस्ताव का वही हश्र हुआ. इस बार चीन ने कहा कि इस मामले में ‘आम सहमति नहीं है’. 

कितने अलग हालात हैं इस बार
अगर इस बार चीन मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के खिलाफ पाकिस्तान के साथ खड़ा होता है तो उसे शर्मिदा होना पड़ा सकता है. दुनिया में यह संदेश जा सकता है कि चीन आतंकवाद के खिलाफ नहीं है. भारत की इस मामले में यही कोशिश है कि चीन और पाकिस्तान प्रस्ताव के विरोध में अकेले पड़ जाएं. इसके बाद भी हमारे अनुभव कह रहे हैं कि चीन अब भी मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने में रोड़ा अटका सकता है. लेकिन यह इतना सीधा मामला रहा नहीं है. अब देखना यही है कि क्या चीन को उसी तरह इस प्रस्ताव को समर्थन करने के लिए मजबूर हो पाएगा जैसे उसने पुलवामा हमले के निंदा प्रस्ताव का समर्थन किया था. 

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