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DNA on Mass Shooting in Texas USA: अमेरिका में मंगलवार को हुई मास शूटिंग की एक घटना में 18 स्टूडेंट्स और 3 टीचर्स की गोली मारकर हत्या कर दी गई. पिछले एक दशक में हुई मास शूटिंग की ये सबसे बड़ी घटना बताई जा रही है. इससे पहले वर्ष 2012 में भी अमेरिका के Connecticut राज्य के एक स्कूल में इसी तरह की घटना हुई थी. उस समय 19 साल के एक हमलावर ने 20 छात्रों को जान से मार दिया था. इसके अलावा अमेरिका के किसी स्कूल में Mass Shooting की पहली घटना वर्ष 1998 में हुई थी, जिसमें पांच लोग मारे गए थे. लेकिन अमेरिका ने इन घटनाओं को कभी गम्भीरता से नहीं लिया.
अमेरिका में बन्दूक की संस्कृति उस जमाने से है, जब वहां ब्रिटिश सरकार का राज था. तब अमेरिका में पुलिस और कोई स्थाई सुरक्षा बल नहीं था और लोगों को अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा खुद करनी होती थी, इसलिए उन्हें हथियार रखने के अधिकार दिए गए. इसके लिए वर्ष 1791 में अमेरिका में कानून बनाया गया और वहां के नागरिकों के लिए हथियार रखना संविधान के दायरे में आ गया. हालांकि 19वीं शताब्दी तक अमेरिका को समझ आ गया था कि वहां गन कल्चर कभी शांति को स्थापित नहीं होने देगा. लेकिन Gun Lobby और कुछ नेताओं के दबाव की वजह से कभी इसके खिलाफ कोई सख्त कानून नहीं बन सका. आज अमेरिका में हर दिन औसतन 100 लोग इसकी वजह से मारे जाते हैं.
आप अक्सर ये बात सुनते होंगे कि भारत में अंग्रेजों के ज़माने के कानून आज भी चल रहे हैं और इन्हें धीरे धीरे समाप्त करने की कोशिशें की जा रही है. लेकिन अमेरिका दुनिया का शायद इकलौता ऐसा देश है, जिसने इस कानून को समाप्त करने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए.
आज पूरी दुनिया में चार देश ही ऐसे हैं, जहां के नागरिकों को हथियार रखने का संवैधानिक अधिकार हासिल है. ये देश हैं अमेरिका, Mexico, Haiti और Guatemala. सोचिए, ये कितना बड़ा विरोधाभास है कि अमेरिका एक तरफ मानव अधिकारों और शांति की बड़ी बड़ी बातें करता है. इसके नाम पर दुनियाभर में पुरस्कार और सर्टिफिकेट बांटने की दुकान चलाता है लेकिन दूसरी तरफ वहां लोगों को हथियार रखने का संवैधानिक अधिकार हासिल है.
जबकि हमारे देश में ऐसा नहीं है. भारत में अगर कोई नागरिक बन्दूक खरीदना चाहता है तो ये उसके संवैधानिक अधिकारों के दायरे में नहीं आता. बल्कि इसके लिए हमारे देश में परमिट की व्यवस्था है, जिसके लिए कड़े नियमों का पालन होता है. भारत के अलावा जापान, जर्मनी और रशिया जैसे देशों में भी इसी तरह की व्यवस्था है. इसके अलावा सिंगापुर, चीन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को Anti Gun Countries माना जाता है. यानी इन देशों में नागरिकों के लिए बन्दूक खरीदना काफी मुश्किल है. वहां इसके लिए कड़े कानून बनाए गए हैं जबकि अमेरिका में ऐसा नहीं है. जिसकी वजह से अमेरिका का गणतंत्र, गनतंत्र में तब्दील हो चुका है. इसे आप कुछ आंकड़ों से भी समझ सकते हैं.
#DNA : अमेरिका में गन कल्चर खत्म क्यों नहीं होता?@sudhirchaudhary
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— Zee News (@ZeeNews) May 25, 2022
वर्ष 2002 से 2011 के बीच अमेरिका में हर साल आंकवादी हमलों में औसतन 31 लोग मारे गए. जबकि गन कल्चर की वजह से वहां हर साल औसतन 11 हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई. लेकिन अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ तो निर्णायक लड़ाई का ऐलान किया लेकिन गन कल्चर को रोकने के लिए वो कभी कुछ नहीं कर पाया.
अमेरिका में 58 प्रतिशत लोगों ने कभी ना कभी Gun Terror का सामना किया है. वहां हर दिन औसतन 100 लोग बन्दूक से होने वाली हिंसा में मारे जाते हैं. 30 लाख बच्चे हर साल मास शूटिंग या गन कल्चर से संघर्ष करते हैं. 2018 में अमेरिका में Mass Shooting की 27 बड़ी घटनाएं हुई थीं.
अमेरिका की कुल आबादी तो साढ़े 33 करोड़ है लेकिन वहां लोगों के पास लगभग 40 करोड़ बन्दूकें हैं. जबकि भारत इस मामले में 7 करोड़ बन्दूकों के साथ दूसरे और चीन पांच करोड़ बन्दूकों के साथ तीसरे स्थान पर है. अमेरिका में हर 100 लोगों पर 120 बन्दूकें हैं, जबकि इस सूची में दूसरे स्थान पर यमन है. वहां हर 100 लोगों पर 52 बन्दूकें हैं. जबकि भारत में हर 100 लोगों पर केवल पांच बन्दूकें हैं.
ये स्थिति भी तब है, जब अमेरिका में लगभग 60 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि गन कल्चर को रोकने के लिए सख्त कानून होना चाहिए. अमेरिका दुनिया का इकलौता देश है, जहां गन कल्चर की वजह से लोगों के लिए आत्महत्या करना काफी आसान हैं. 2019 में वहां लगभग 24 हजार लोगों ने बन्दूक से गोली मार कर आत्महत्या की थी. अमेरिका में लोगों के लिए बन्दूक खरीदना मुश्किल नहीं है. इसके लिए सिर्फ तीन चीज़ें चाहिए..पहला- बन्दूक खरीदने वाले की उम्र 21 या उससे ज्यादा होनी चाहिए. कुछ मामलों में ये उम्र 18 वर्ष भी है. दूसरा- उस व्यक्ति की Criminal History ना हो और तीसरा- वो व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार ना हो.
आज अगर आप भारत में अपने मोबाइल फोन के लिए कोई सिम कार्ड खरीदने जाते हैं तो आपको इससे ज्यादा जानकारी देनी पड़ती है. आपका Background Verification भी होता है. जबकि अमेरिका में बन्दूक खरीदने के लिए मामूली शर्तें ही रखी गई हैं.
पिछले 230 साल में अमेरिका गन कल्चर को इसलिए ख़त्म नहीं कर पाया क्योंकि वहां के पूर्व राष्ट्रपति खुद इससे प्रभावित थे. जैसे अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति Theodore Roosevelt को गन के साथ तस्वीर खींचवाना बेहत पसन्द था. वो 1901 से 1909 तक अमेरिका के राष्ट्रपति थे. इसी तरह Franklin D Roosevelt, Jimmy Carter, George Bush Senior और George W Bush ने भी राष्ट्रपति रहते हुए गन कल्चर को Glorify यानी उसका महिमामंडन किया. वो भी तब जब अमेरिका के 4 पूर्व राष्ट्रपतियों की हत्या के पीछे कहीं ना कहीं गन कल्चर सबसे बड़ी वजह था.
अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति Abraham Lincoln और 20वें राष्ट्रपति James A. Garfield की हत्या बन्दूक़ से ही की गई थी. अमेरिका में गन कल्चर इसलिए भी समाप्त नहीं हो पाया क्योंकि वहां इसके पीछे गन लॉबी काम करती है. इनमें भी अमेरिका की National Rifle Association काफी मजबूत है.
इस संस्था की जड़े अमेरिका की राजनीति में कितनी गहरी हैं, इसका अन्दाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति George Bush Senior इसके सदस्य रह चुके हैं. इसी हफ्ते इस संस्था का एक सेमिनार होने वाला है, जिसमें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति Donald Trump और Texas के मौजूदा Governor बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे.
सोचिए, जिस Texas में ये घटना हुई है, वहां के गवर्नर खुद इस संस्था के सेमिनार में जाने वाले हैं. इससे पता चलता है कि अमेरिका में गन लॉबी कितनी मजबूत है. ये लॉबी कभी नहीं चाहेगी कि अमेरिका के लोग बन्दूकें खरीदना बन्द कर दें या वहां की सरकार उन्हें ऐसा करने से रोके. इसके लिए अमेरिका की National Rifle Association अकेले हर साल दो हजार करोड़ रुपये Gun Lobbying पर खर्च करती है. हालांकि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बुधवार को गन लॉबी को लेकर चिंता जताई और कहा है कि वो जल्द ही इस पर बड़े कदम उठाएंगे.
जो बाइडेन भले अमेरिका की Gun Lobby के खिलाफ़ बड़ा कदम उठाने की बात कह रहे हैं. लेकिन सच ये है कि इस गन लॉबी के सामने अमेरिका के बड़े बड़े राष्ट्रपति कमजोर साबित हुए हैं. इनमें बराक ओबामा का भी नाम है. जो वर्ष 2016 में गन कल्चर पर बात करते हुए काफी भावुक हो गए थे लेकिन इसे रोकने के लिए कुछ कर नहीं पाए थे.