Israel-Gaza War: इस्लाम, ईसाई और यहूदी इन तीनों ही धर्मों के लिए यरुशलम एक पवित्र शहर है. जिस जमीन को अरब देश फिलिस्तीन कहते हैं, उसी को यहूदी समुदाय इजरायल कहता है. हालांकि ऐतिहासिक रूप से देखें तों यहूदी मान्यता के अनुसार आज से 3 हजार वर्ष पहले यहूदियों ने यरुशलम में अपना SOLOMAN TEMPLE बनाया था.
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Al-Aqsa Mosque: फिलिस्तीन और इजरायल के बीच विवाद करीब 75 वर्षों से चल रहा है. ये विवाद ना सिर्फ जमीन को लेकर है, बल्कि ये दो विचारधाराओं, दो धर्मों और दो संस्कृतियों से जुड़ा हुआ है. आज भले ही आप फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास और इजरायल के बीच बड़ी जंग देख रहे हों. लेकिन आपका ये समझना जरूरी है, कि ये विवाद केवल अल-अक्सा या जमीन पर कब्जे जैसे मसले को लेकर नहीं है. बल्कि ये दो समुदायों के बीच होने वाला ऐतिहासिक विचार युद्ध है, जिसमें पिछले कई दशकों से हथियारों का इस्तेमाल हो रहा है.
यहूदियों ने बनाया था अपना मंदिर
इस्लाम, ईसाई और यहूदी इन तीनों ही धर्मों के लिए यरुशलम एक पवित्र शहर है. जिस जमीन को अरब देश फिलिस्तीन कहते हैं, उसी को यहूदी समुदाय इजरायल कहता है. हालांकि ऐतिहासिक रूप से देखें तों यहूदी मान्यता के अनुसार आज से 3 हजार वर्ष पहले यहूदियों ने यरुशलम में अपना SOLOMAN TEMPLE बनाया था. ये वही जगह जहां आज के वक्त में 'अल-अक्सा मस्जिद' है.
करीब 2 हजार वर्ष पहले ईसाई धर्म अस्तित्व में आया और धीरे-धीरे पूरा क्षेत्र रोमन साम्राज्य के अधीन हो गया. ईसा मसीह के जन्म के 135 वर्ष बाद रोमन शासक Hadrian ने इजरायल पर हमला किया था, उसने यहूदियों को वहां से भगा दिया था. इस युद्ध के करीब 500 वर्ष बाद अरब में इस्लाम धर्म अस्तित्व में आया था.
इस्लाम के अस्तित्व में आने के अगले 50 वर्षों के अंदर पूरे इजरायल पर 'उमय्यद ख़िलाफ़त' का शासन आ गया. फिर इसके बाद 16वीं से 20वीं शताब्दी तक ये क्षेत्र 'ओस्मानिया सल्तनत' के अधीन रहा.
ऐतिहासिक तथ्यों में ये बात पता चलती है कि जिस क्षेत्र को अरब देश, फिलिस्तीन बताते हैं, दरअसल वो क्षेत्र, इस्लाम के अस्तित्व में आने के पहले से यहूदी और ईसाई धर्म से जुड़े लोगों का रहा है. हालांकि समय बदला तो युद्ध के बाद इस क्षेत्र पर अधिकार की स्थिति भी बदलती गई. यहूदी से ईसाई, ईसाई से इस्लाम धर्म के लोग इस क्षेत्र पर अपना कब्जा बताते रहे हैं.
पहले विश्व युद्ध के बाद बदली स्थिति
लेकिन आधुनिक इतिहास को खंगालने पर पता चलता है कि पहले विश्व युद्ध के बाद, इस क्षेत्र पर कब्जे की स्थिति फिर बदल गई थी. यानी जिस क्षेत्र में ओस्मानिया सल्तनत चलती थी, याकि तुर्किए का शासन चलता था, वो पहले विश्व युद्ध के बाद बदल दिया गया था.
दरअसल साल 1914 में पहले विश्वयुद्ध में तुर्किये हार गया था. इस युद्ध के बाद वर्ष 1918 से ये पूरा इलाका, ब्रिटेन के प्रभाव में आ गया था.
ब्रिटेन इस पूरे क्षेत्र की प्रशासनिक व्यवस्था देखता था. वर्ष 1917 में ब्रिटेन की ओर से एक पत्र लिखा गया था, जिसे The Belfour Declaration बोला जाता है. ये पत्र ब्रिटेन के विदेश सचिव आर्थर बेलफोर ने यहूदियों के Zionist Federation के एक नेता Leonal Walter Rothschild को लिखा था. इस पत्र में लिखा गया था कि ब्रिटिश सरकार फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक नया देश बनाने का समर्थन करती है, और इसके लिए हर संभव प्रयास करेगी.
विभिन्न देशों में चले गए यहूदी
दरअसल हजारों साल पहले अपने देश से निकाले गए यहूदी, यूरोप के अलग-अलग देशों में चले गए. जहां उनके साथ भेदभाव और कत्लेआम हुआ, इसकी वजह से 19वीं शताब्दी में यूरोप के यहूदियों में एक आंदोलन शुरू हुआ, जिसके तहत यहूदियों ने वापस इजरायल लौटना शुरू कर दिया था. इसी को Zionist Movement कहा जाता है, जिसे Zionist Federation जैसी संस्थाएं आज भी चला रही हैं.
वर्ष 1930 के दशक में जब जर्मनी के अंदर हिटलर और नाजी पार्टी का शासन आया तो, जर्मनी और यूरोप के देशों में यहूदियों का दमन चरम पर पहुंच गया था.
इसलिए यूरोप के बड़े पैमाने पर यहूदियों ने Zionist Movement के तहत ही, इजरायल का तेजी से रुख करना शुरू कर दिया था.
यहूदियों को लगा कि जब तक उनका खुद का देश नहीं होगा, तब तक उनका दमन चलता रहेगा. इसलिए वो जल्दी से जल्दी अपनी ऐतिहासिक धरती इजरायल आना चाहते थे. जब दुनियाभर के यहूदी, इजरायल लौटने लगे, तब इस क्षेत्र में मौजूद फिलिस्तीनी नागरिकों में इसको लेकर नाराजगी तो थी, लेकिन वो उनके यहां आने के विरोध में नहीं थे.
दरअसल उस दौर में जो यहूदी यहां लौटे, वो यहां के फिलिस्तीनी नागरिकों से जमीनें खरीदकर बस रहे थे. जो फिलिस्तीनी नागरिक, यहूदियों को जमीन बेच रहे थे, वो आमतौर पर यहूदियों के यहां आने विरोध नहीं करते थे.
पूरी दुनिया में बढ़ी यहूदियों के लिए सहानुभूति
दूसरे विश्वयुद्ध में जब यहूदियों का बड़े पैमाने पर नरसंहार शुरू हुआ, हिटलर की नाजी सेना ने 6 लाख से ज्यादा यहूदियों का कत्लेआम कर दिया, तब दुनिया के अन्य देशों में यहूदियों को लेकर सहानुभूति पैदा होने लगी. जिसकी वजह से 1945 में दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद, यहूदियों के लिए अलग देश की मांग उठने लगी. उस वक्त फिलिस्तीन में बड़ी संख्या में यहूदी रहते थे, ऐतिहासिक तौर पर ये जमीन यहूदी समुदाय से जुड़ी हुई थी, तो संयुक्त राष्ट्र ने इस पूरे क्षेत्र को फिलिस्तीन और इजरायल नाम के दो देशों में बांट दिया.
ब्रिटेन और फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र में इसका प्रस्ताव रखा था. ये प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में पारित भी हो गया, जिसके साथ ही वर्ष 1948 में इजरायल अस्तित्व में आ गया.
यहूदी समुदाय ने संयुक्त राष्ट का ये प्रस्ताव मान लिया था. लेकिन यहां एक नए विवाद का दौर शुरू हो गया जो आजतक जारी है. यहूदियों ने संयुक्त राष्ट्र की बात मान ली थी, लेकिन अरब देशों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया.
कई देशों ने इजरायल पर बोला हमला
14 मई 1948 को यहूदी नेताओं ने इजरायल की घोषणा की थी. इजरायल बनने के अगले ही दिन मिस्र,जॉर्डन,सीरिया और ईराक ने इजरायल पर हमला बोल दिया था.
वर्ष 1948 से 1949 तक चले इस युद्ध में इजरायल ने सभी अरब देशों को हरा दिया था. इस युद्ध में इजरायल ने जीत के बाद फिलिस्तीन की कुछ जमीन पर भी कब्जा कर लिया था. इस कब्जे के साथ करीब 7 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनियों को पड़ोसी देशों में जाना पड़ा.
इस युद्ध के बाद फिलिस्तीन एक तरह से पहले के मुकाबले और ज्यादा छोटे दो हिस्सों गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में बंट गया.
अब यहां से येरुशलम पर अधिकार की जंग शुरू हुई. वैसे तो ये यहूदी, ईसाई और इस्लाम, तीनों धर्मों के लिए पवित्र स्थान है. लेकिन 1948 के युद्ध के बाद यरुशलम दो हिस्सों में बंट गया, जिसमें पश्चिमी हिस्सा इजरायल के कब्जे में था और पूर्वी हिस्सा जॉर्डन के कब्जे में था.
6 दिन चला युद्ध, बढ़ता गया इजरायल
वर्ष 1967 में एक बार फिर इजरायल के विरोध और जमीन पर कब्जे की जंग शुरू हुई, इस बार मिस्र, सीरिया, लेबनान और जॉर्डन ने इजरायल से युद्ध किया. इजरायल ने एक बार फिर इन्हें हराया, और एक बार फिर से उसने फिलिस्तीन की और ज्यादा जमीन पर कब्जा कर लिया. 6 दिन चले इस युद्ध में इजरायल ने गाजी पट्टी, वेस्ट बैंक, यरुशलम, मिस्र के शिनाई रेगिस्तान और सीरिया के गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया था.
अरब देश एक के बाद एक युद्ध हारते गए और इजरायल जीत के इनाम के तौर पर ज्यादा जमीन कब्जा करता गया. अरब देशों को ये बात समझ में आ गई कि इजरायल से सीधे युद्ध में नहीं जीता जा सकता.
ऐसे में वर्ष 1970 के दशक में फिलिस्तीन के लोगों के हक में एक बार फिर आवाजें उठीं. इस बार यासिर अराफात की अगुवाई में फतह जैसे संगठनों ने PLO यानी फिलिस्तीन लिब्रेशन ऑर्गनाइजेशन बनाया. पीएलओ ने इजरायल पर कई हमले किए. इस संगठन ने इजरायल के दूतावासों, हवाई जहाजों और खिलाड़ियों को निशाने पर लिया. करीब 2 दशक तक ये हमले चलते रहे.
ओस्लो शांति समझौते पर हुए दस्तखत
हालांकि 1993 में पीएलओ के नेता यासिर अराफात और इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री यित्जाक राबिन ने ओस्लो शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते के बाद पीएलओ ने हिंसा और कट्टरपंथ का रास्ता छोड़ दिया.
लेकिन फिलिस्तीन के ऐसे ही एक और कट्टरपंथी संगठन को ये समझौता मंजूर नहीं था. इस संगठन का नाम था 'हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया' जिसे 'हमास' कहा जाता है.
हमास को वर्ष 1987 में 'मौलवी शेख अहमद यासीन' ने बनाया था. अपने स्थापना के एक साल बाद आतंकी संगठन हमास ने वर्ष 1988 में अपना एक चार्टर जारी किया, जिसमें उन्होंने इजरायल को पूरी तरह से खत्म कर देने और फिलिस्तीन में इस्लाम की स्थापना की कसम खाई थी. यासीन को इजरायल ने वर्ष 2004 में मार गिराया था.
जिस दौरान Oslo शांति समझौते के प्रयास चल रहे थे, उस दौरान हमास के आतंकियों ने आत्मघाती हमला किया था. हमास ने इस हमले के साथ ही शांति समझौते का विरोध किया था. वर्ष 1997 में अमेरिका ने हमास को एक विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया.
38 साल तक रहा इजरायल का कब्जा
1967 के बाद से करीब 38 वर्षों तक गाजा पट्टी पर इजरायल का कब्जा रहा. लेकिन इजरायल ने शांति प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए, ये तय किया, कि वो गाजा पट्टी से अपने सैनिक बुला लेगा और यहूदियों की बस्तियां भी खत्म करेगा.
वर्ष 2005 में इजरायल ने गाजा पट्टी को पूरी तरह से छोड़ दिया. इसी के साथ गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक का प्रशासन PLO के पास चला गया था.
हालांकि इसी के अगले साल गाजा पट्टी में चुनाव हुए, जिसमें आतंकी संगठन हमास ने PLO को हरा दिया. तब से लेकर अब तक गाजा पट्टी पर हमास का नियंत्रण बना हुआ है. जबकि वेस्ट बैंक वाले हिस्से पर PLO का ही नियंत्रण है.