ब्रिटिश संग्रहालय ने जलियांवाला बाग जनसंहार पर शुरू की प्रदर्शनी
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ब्रिटिश संग्रहालय ने जलियांवाला बाग जनसंहार पर शुरू की प्रदर्शनी

मैनचेस्टर संग्रहालय ने ‘जलियांवाला बाग 1919 : पंजाब अंडर सीज’ नाम से प्रदर्शनी शुरू की है.

इस प्रदर्शनी में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग जनसंहार से जुड़ी कहानियों को प्रदर्शित किया जा रहा है. यह कहानियां जनसंहार पीड़ितों के वंशजों और समुदायों के साथ मिलकर किए गए काम पर आधारित हैं.  (फोटो साभार @McrMuseum)

लंदन: ब्रिटेन में एक संग्रहालय ने अमृतसर के ‘विभाजन संग्रहालय’ के साथ मिलकर जलियांवाला बाग जनसंहार पर एक प्रदर्शनी शुरू की है. ब्रिटिश औपनिवेशक काल में हुए इस जनसंहार के 100 साल पूरे होने के मौके पर प्रदर्शनी शुरू की गई है. मैनचेस्टर संग्रहालय ने ‘जलियांवाला बाग 1919 : पंजाब अंडर सीज’ नाम से प्रदर्शनी शुरू की है.

इस प्रदर्शनी में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग जनसंहार से जुड़ी कहानियों को प्रदर्शित किया जा रहा है. यह कहानियां जनसंहार पीड़ितों के वंशजों और समुदायों के साथ मिलकर किए गए काम पर आधारित हैं. 

मैनचेस्टर संग्रहालय ने एक बयान में कहा,'फिर से घटना, इसके कारणों और परिणामों को याद करते हुए इस प्रदर्शनी में यह तलाशा जा रहा है कि हमें क्या याद है, हम इसे कैसे याद करते हैं और भारत एवं ब्रिटेन में हम क्या भूल चुके हैं.' 

जेबीसीसीसी ने किया प्रदर्शन का समर्थन
जलियांवाला बाग शताब्दी स्मारक समिति (जेबीसीसीसी) द्वारा इस प्रदर्शनी का समर्थन किया जा रहा है. जेबीसीसीसी में जानेमाने भारतीय और अनिवासी भारतीय सदस्य हैं. जेबीसीसीसी के प्रमुख संरक्षक मनजीत सिंह जीके ने कहा, 'ब्रिटिश सरकार के लिए उचित अवसर है कि वह भारत से माफी मांगे.' 

जेबीसीसीसी के संरक्षक विक्रमजीत एस साहनी ने कहा,'उस वक्त युद्ध मंत्री सर विंस्टन चर्चिल और पूर्व प्रधानमंत्री एच एच एसक्विथ ने खुलकर हमले की निंदा की थी, इसे हमारे संपूर्ण इतिहास में सबसे भयावह और बदतरीन बताया था.'

गौरतलब है कि बड़े पैमाने पर मांग की जा रही है कि ब्रिटिश सरकार जलियांवाला बाग के 100 साल पूरे होने के मौके पर इस जनसंहार के लिए माफी मांगे.

ब्रिटिश पीएम ने दिया हाउस ऑफ कॉमंस में बयान
ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरेसा मे ने इस हफ्ते की शुरुआत में हाउस ऑफ कॉमंस में बयान दिया था कि ब्रिटेन इस त्रासदी पर 'गहरा खेद' प्रकट करता है. उन्होंने इसे ब्रिटिश भारतीय इतिहास का 'शर्मनाक धब्बा'  करार दिया था. हालांकि, टेरेसा के बयान की निंदा की गई. विपक्षी लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कॉरबिन ने कहा कि टेरेसा को ‘‘पूर्ण और स्पष्ट माफी’’ मांगनी चाहिए.

 

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