ZEE जानकारी: विदेशी मीडिया को बालाकोट लेकर गई पाक सेना
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ZEE जानकारी: विदेशी मीडिया को बालाकोट लेकर गई पाक सेना

पाकिस्तान की सेना, पहली बार बालाकोट के जाबा टॉप पर मौजूद, जैश ए मोहम्मद के मदरसे में विदेशी पत्रकारों और विदेशी अधिकारियों को लेकर गई.

ZEE जानकारी: विदेशी मीडिया को बालाकोट लेकर गई पाक सेना

जब से भारतीय वायुसेना ने Air Strikes की हैं, तब से हमारे अपने ही देश के अंदर सबूत वाली राजनीति हो रही है. जबकि दूसरी तरफ पाकिस्तान में सबूतों को नष्ट करके दुनिया को भ्रमित करने वाली यात्राओं की राजनीति हो रही है. 

कल पाकिस्तान की सेना, पहली बार बालाकोट के जाबा टॉप पर मौजूद, जैश ए मोहम्मद के मदरसे में विदेशी पत्रकारों और विदेशी अधिकारियों को लेकर गई. इस दौरे की मदद से पाकिस्तान ये साबित करना चाहता था, कि जिस जगह पर भारतीय वायुसेना ने हवाई हमले किए थे. वहां पर जैश या किसी दूसरे आतंकवादी संगठन का कोई कैम्प नहीं है. और ना ही हमले वाले दिन उस इलाके में कोई मारा गया था.हालांकि, ये अपने आप में एक मज़ाक है, कि ऐसा करते-करते पाकिस्तान को पूरे 43 दिन लग गए. इन 43 दिनों में सर्दी से गर्मी का मौसम आ गया, ऋतुएं बदल गईं. 26 फरवरी को बालाकोट का तापमान 8 डिग्री सेल्सियस था. जबकि आज बालाकोट का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस है. 

इन 43 दिनों के दौरान कई जगहों पर बर्फ पिघल गई. फसलें कट गईं. खेत खाली हो गए. लेकिन विदेशी पत्रकारों को बालाकोट के जाबा टॉप लेकर जाते-जाते पाकिस्तान को 43 दिन लग गए. क्या आपने कभी सोचा है, ऐसा क्यों हुआ ? आपने ध्यान दिया होगा, कि जब इंसान को कोई चोट लगती है या घाव हो जाता है, तो वो उसे अक्सर छिपाने की कोशिश करता है. बालाकोट का सच छिपाने के लिए पाकिस्तान भी पिछले 43 दिनों से यही कर रहा था. 

इस दौरान उसने जैश के कैम्प का नामों-निशान मिटा दिया. हवाई हमले के बाद हुई तबाही को ज़मीन में दफ्न कर दिया. और सारे सबूत नष्ट करने के बाद उसने फैसला किया, कि अब वो विदेशी पत्रकारों को उस मदरसे में लेकर जाएगा. लेकिन, ऐसा करते हुए पाकिस्तान ने खुद को ही Expose कर लिया है. हम ऐसा तथ्यों के आधार पर कह रहे हैं.

क्योंकि, जिस मदरसे में विदेशी पत्रकारों और दूतों को ले जाया गया, वहां उन्हें सिर्फ 20 मिनट ठहरने दिया गया. उस मदरसे को 27 फरवरी से 14 मार्च तक के लिए बंद कर दिया गया था. और कल भी वो मदरसा बंद ही था. लेकिन विदेशी पत्रकारों को उस वक्त ये बात खटकी, जब उन्होंने मदरसे के अंदर लगभग डेढ सौ बच्चों को देखा. जब पाकिस्तानी सेना से इस बारे में सवाल पूछा गया, तो किसी के पास कोई जवाब नहीं था. इसके अलावा, बालाकोट में विदेशी पत्रकारों पर निगरानी रखी जा रही थी. पाकिस्तानी सेना को विदेशी पत्रकारों से ये कहते हुए भी सुना गया...कि चलें जल्दी करें, निकलें यहां से आप.

यानी पाकिस्तान की सेना ने बालाकोट वाली 'फिल्मी यात्रा' पर कई तरह की पाबंदियां लगाई थीं. और पत्रकारों को वहां मौजूद सारे लोगों से बात नहीं करने दी गई. और जिनसे बात करने की इजाज़त मिली, उन्हें भी वहां से जल्दी ही हटा दिया गया. इसे आप बालाकोट में पाकिस्तान का 'Self Goal' भी कह सकते हैं. वैसे 'Self Goal' से याद आया, कि जाबा टॉप में अब जैश ए मोहम्मद के मदरसे में आतंकवादियों की जगह फुटबॉल के गोल पोस्ट ने ले ली है. 

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