जातक कथा: जानिए क्या था चार अक्षरों वाली विचित्र चीख और उसका रहस्य

कौसल देश के धर्मात्मा राजा ने सोते समय ऐसी चीखें सुनीं कि वह घबरा गया. काफी खोजबीन के बाद भी वह इस रहस्य को नहीं समझ पाया था. आखिर क्या था रहस्य. 

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : May 31, 2021, 10:14 AM IST
  • राजा ने सुनीं चार अक्षर की चीखें
  • तथागत ने समझाया राजा को रहस्य
जातक कथा: जानिए क्या था चार अक्षरों वाली विचित्र चीख और उसका रहस्य

नई दिल्लीः महात्मा बुद्ध (Lord Buddha) के पूर्व जन्म की कथा कहने वाली जातक कथा (Jatak Tales) संग्रह नीति और उदारता सिखाने वाले दस्तावेज हैं. इनमें से एक कथा सामने आती है, जो अपने आप में रहस्यमय तो हैं हीं लेकिन जब इनका रहस्य खुलता है तो जीवन का मर्म भी समझ आता है.

राजा को सुनाई चीख
प्राचीन काल में कौसल नाम का एक देश था. इस देश के बड़े धर्मात्मा राजा जब एक रात अपने भवन में सो रहे थे तो जोर-जोर की चीखों से उनकी नींद खुल गई. चीख बहुत ही भयानक लेकिन करुण थी.

राजा ने कान लगाकर सुना तो यह न किसी से रक्षा करने की, न ही किसी को पुकारने की चीख थी. बल्कि यह बड़ी ही अजीब आवाज वाली चीख चार अलग अक्षरों से बनी थी. 

राजा ने सुना तो बहुत जोर से उन्हें सुनाई दिया कि कोई सिर्फ इतना बोलता है- नि हा भ ए. 

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हर दिशा में गुप्तचर भेजे गए 
परेशान राजा ने अगले दिन विद्वानों-ब्राह्मणों की सभा बुलवाई और इस तरह की चीख का अर्थ पूछा, इसके साथ ही सैनिक और गुप्तचर चारों दिशाओ में लगा दिए गए ताकि कोई पीड़ित हो तो उसे खोजा जा सके. 


 
विद्वानों ने कहा कि नि हा भ ए वाली चीख का अर्थ है कि हर योनी के प्राणियों में से चार-चार की बलि देनी होगी. राजा ने गुप्तचरों का इंतजार किया और जब कोई नहीं मिला तब अगले पक्ष में बलि देने की बात मान ली गई. 

बलि की होने लगी तैयारी
तय तिथि के दिन गाजे-बाजे के साथ हर योनि के चार-चार प्राणी लाए गए. पूरा राज्य बलि के जीवों से पट गया. रानी ने यह दृश्य देखा और उन्हें पता चला कि राज्य में इतना रक्तपात होने वाला है तो वह दौड़ते हुए राजा के पास पहुंचीं. अपनी चिंता छिपाते हुए और हंसी का भाव लाते हुए उन्होंने राजा से इस बलि का कारण पूछा तो राजा ने नि हा भ ए वाली चीख के बारे में बताया. 

तब रानी ने कहा- इस बलि को एक बार और रोककर तथागत के पास चलिए. हो सकता है वह चार अक्षर वाली चीख का अर्थ बता सकें. 

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तथागत के पास पहुंचे राजा
राजा तथागत के पास पहुंचे और अपनी पीड़ा सुनाई. तब तथागत ने कहा- बहुत प्राचीन काल में काशी के राजा को भी ऐसी ही चीख सुनाई दी थी. उसने भी बलि की व्यवस्था की थी. तब यह जीव (तथागत कभी मैं नहीं कहते) बोधिसत्व था.

उसने काशीराज से कहा-राजन, इन चीखों का अर्थ बता सकता हूं. फिर बोधिसत्व ने जो कथा उस राजा को सुनाई वही तुम्हें सुनाता हूं. 
 
नर्क की लौहकुंभि यातना
नर्क में प्राणियों को लौहकुंभि नामकी यातना दी जाती है. लोहे के एक बड़े लेकिन पतले मुंह वाले घड़े में तेल खौलता रहता है. पापियों को उसमें डाल दिया जाता है. इस कष्ट में उन्हें आभास होता है कि वह धरती पर कितने पाप कर रहे थे और बाकी अन्य भी उसे दोहरा रहे हैं. 

हजार साल में उबलते-उबलते जब वह घड़े के मुंह के ऊपर आते हैं तब चिल्लाकर संसार को बताने की कोशिश करते हैं कि असल सच क्या है. लेकिन उनके पास इतना समय नहीं होता कि वह सब कुछ बता पाएं. इसलिए जो कहना चाहते हैं कि जल्दी-जल्दी उसका एक अक्षर ही बोल पाते हैं.

यही चार अक्षर की चीख उनकी चार बातें हैं.
नि- निज संपत्ति का उचित भाग दान नहीं कर पाया. बुरे कर्म और पाप ही किए. इस लौहकुंभि में कष्ट पाया
हा- हाय रे, दुखियों के कष्ट मैंने अब पहचाने, कोई सुने मेरी बाते, नरक के कष्ट नहीं होते कभी पुराने
भा- भाग्य भी कर्मों के अनुसार चलता जाता, जैसा विष बोया धरा पर वही जहर फल अब खाता
ए- एक बार इस लौहकुंभि से पा जाऊं छुटकारा, मिले अगर तो सत्कर्मों में लगा दूं जीवन सारा 

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