भक्त हनुमान को क्यों आ गया प्रभु श्रीराम पर क्रोध, पढ़िए रामायण की यह रोचक कथा

लंका विजय से पहले श्रीराम ने सागर तट पर महादेव की पूजा का निश्चय किया. इसके लिए उन्होंने हनुमान जी से शिवलिंग मंगवाया, लेकिन उनके आने से पहले ही पूजा संपन्न कर ली. आखिर, ऐसा क्यों किया श्रीराम ने? 

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : May 21, 2021, 09:50 AM IST
  • अपने तेज उड़ने की गति पर हनुमानजी को हुआ अभिमान
  • श्रीराम द्वारा पहले ही पूजा कर लेने पर क्रोधित हुए पवनपुत्र
भक्त हनुमान को क्यों आ गया प्रभु श्रीराम पर क्रोध, पढ़िए रामायण की यह रोचक कथा

नई दिल्लीः रामायण और मानस में राम चरित्र वर्णन के अलावा प्रसंगों से जुड़ी कई दंतकथाएं प्रचलित हैं. यह कथाएं शिक्षाप्रद भी हैं जीवन में जरूरी छोटी-छोटी बातें भी सिखाती हैं. ऐसी ही एक कथा भक्ति शिरोमणि वीर हनुमान को लेकर भी है. 

श्रीराम करना चाहते थे शिवलिंग स्थापित
हुआ यूं कि प्रभु श्रीराम ने निश्चय किया कि जब तक नल-नील सागर पर पुल बांध रहे हैं, तब तक मैं अपने आराध्य महादेव का विधिवत पूजन कर लूं और युद्ध के लिए विजय का आशीर्वाद मांगू. इसके साथ ही वह उस स्थान पर एक शिवलिंग स्थापना भी करना चाहते थे, जिसमें प्रभु के साक्षात दर्शन हों और आने वाले युगों में भी श्रद्धालुओं का कल्याण हो. 

इसी विचार से उन्होंने गणेशजी की स्थापना कर नवग्रहों की नौ प्रतिमाएं नल के हाथों स्थापित कराईं. इसके बाद उन्होंने वीर हनुमानजी को बुलाकर कहा “मुहूर्त के भीतर काशी जाकर महादेव शिव से लिंग मांगकर लाओ. पर देखना, मुहूर्त न टलने पाए.” 

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काशी पहुंच गए वीर हनुमान
हनुमानजी क्षणभर में काशी पहुंच गए. भगवान शंकर ने कहा- “मैं पहले ही दक्षिण जाने के विचार में था, क्योंकि अगस्त्यजी विन्ध्याचल को नीचा करने के लिए यहां से चले तो गए, पर उन्हें मेरे वियोग का बड़ा दुख है. वे अभी भी मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं. इसके बाद महादेव शिव ने हनुमान की प्रशंसा करने के लिए कहा तुम न होते तो यह धाम वैसे भी नहीं बन पाता. इतनी तेज गति से आता ही कौन? 

हनुमान को हो गया अभिमान
इसके बाद वीर हनुमान शिवलिंग ले तो चले, लेकिन इस बार उनकी उड़ान में भक्ति नहीं बल्कि गर्व था. जिस मुख से जय श्रीराम के अलावा कुछ निकलता नहीं था, माया के प्रभाव से यह भी निकल गया कि मुहूर्त से पहले तो मैं पहुंच ही जाऊंगा, और नहीं तो मुहूर्त ही रोक दूंगा. 

इधर, श्रीराम के अन्तर्मन में भक्त की इस स्थिति की जानकारी हो गई. उन्होंने ऋषियों से कहा कि अब तो मुहूर्त बीतने वाला है, क्या करूं. तब ऋषियों ने कहा कि सागर के जल से भीगी रेत को शिवलिंग का आकार देकर पूजन कीजिए. तब उन्होंने सैकत (बालुकामय) लिंग की ही स्थापना कर दी.  

उन्हें श्रीराम पर आ गया क्रोध
पूजन के बाद श्रीराम ने ऋषियों का भी पूजन किया और उन्हें दिव्य दक्षिणा देकर विदा किया. अब हनुमान जी सागर तट पहुंचे तो देखा कि स्थापना और पूजन हो चुका है. वे सोचने लगे-‘देखो! श्रीराम ने व्यर्थ का श्रम कराकर मेरे साथ यह कैसा व्यवहार किया है.’ 
उन्होंने श्रीराम के पास पहुंच कर उनपर क्रोध दिखाया और कहने लगे कि काशी भेजकर लिंग मंगाकर मेरा उपहास किया जा रहा है ? यदि आपके मन में यही बात थी तो व्यर्थ ही मुझसे श्रम क्यों कराया. 

श्रीराम ने दिया शिवलिंग बदल देने का आदेश
तब श्रीराम ने कहा- मुहूर्त बीत जाने की वजह से ऐसा करना पड़ा, अब बस कुछ पलों में मुहूर्त बीत ही जाएगा. तुम ऐसा करो, कि जल्दी से वह बालू का लिंग तोड़कर अपना लाया शिवलिंग स्थापित कर दो. पूजन तो हो ही चुका है. हनुमान जी पर गर्व ऐसा कि उन्हें शिवलिंग उखाड़ देना अनुचित ही नहीं लगा. 

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ऐसे टूटा हनुमान जी का गर्व
ठीक है कि कहकर अपनी पूंछ में लपेटकर हनुमानजी ने उस लिंग को बड़े जोर से खींचा. लेकिन यह क्या- लिंग का उखड़ना या हिलना-डुलना तो दूर की बात रही, वह टस-से-मस तक न हुआ, बल्कि हनुमान जी को ही झटका लगा गया और वह मूर्छित होकर गिर पड़े. सब वानर जोर से हंस पड़े.

स्वस्थ होने पर हनुमानजी का घमंड टूट गया, वह सब कुछ समझ गए. उन्होंने कहा- जिनके नाम लिखे पत्थर सागर में तैर रहे हैं उनके हाथ से बनाया बालू का पिंड क्या टूट सकता था. मेरे अभिमान को क्षमा करो प्रभु. भक्त को फिर से शुद्ध मन में बदलता हुए देख श्रीराम ने उन्हें क्षमा कर दिया. 

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