नई दिल्ली: झारखंड चुनाव के नतीजों में भारतीय जनता पार्टी एक और राज्य में सत्ता से बाहर हो गई है. करीब-करीब बीते 12 महीनों में भाजपा ने 5 राज्यों में सत्ता गंवाई हैं. लेकिन केंद्र में भाजपा की छप्पड़ फाड़कर भाजपा के खाते में सीटें गई. तो ऐसे में सवाल ये है कि 'मोदी से बैर नहीं राज्यों में भाजपा की खैर नहीं', आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
12 महीने में BJP की 5 हार, कौन-कौन जिम्मेदार?
1. मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान
'व्यापम' घोटाले का मुद्दा इतना हावी हो गया कि इससे सरकार की खूब बदनामी हुई. इसके अलावा शिवराज सरकार के कामकाज पर सवाल उठे. शिवराज सिंह चौहान लगातार 3 बार मुख्यमंत्री रहे, ऐसे में जनता ने बदलाव के लिए वोट किया. राज्य के कई इलाकों में शिवराज सिंह चौहान सीएम रहते हुए गए ही नहीं, जो नाराजगी की बड़ी वजह साबित हुई. इसके अलावा आदिवासियों के हिंदूकरण से गलत संदेश गया.
2. राजस्थान में वसुंधरा राजे
वसुंधरा का 'महारानी' स्टाइल पार्टी पर भारी पड़ गया. पार्टी में कलह की ढेर सारी खबरें आती रही और कई बागियों की नाराजगी हार की बड़ी वजह बनी. मॉब लिंचिंग की घटनाओं से कानून व्यवस्था पर लगातार सवाल उठते रहे और इतना ही नहीं वसुंधरा राजे पर संगठन से दूर होने का आरोप भी लगा. सबसे बड़ी वजह ये रही कि जातीय समीकरण को हल करने में राजे पूरी तरह से नाकाम साबित हुईं.
3. छत्तीसगढ़ में रमन सिंह
छत्तीसगढ़ में भी लगातार 15 साल तक सत्ता पर काबिज रहने वाली भाजपा के खिलाफ लोगों की नाराजगी सामने आई थी. किसानों से बोनस को लेकर वादाखिलाफी की बात कही गई और भूपेश बधेल ने संगठन को काफी मजबूत किया. जिसका फायदा कांग्रेस को मिला. रमन सिंह अंतिम 5 साल में लगातार कमजोर पड़ते गए. उनकी अच्छे प्रशासक की तौर पर पहचान रही, लेकिन जननेता वाली छवि नहीं थी. राज्य स्तर पर कई नीतियों से गलत संदेश लोगों तक पहुंचा.
4. महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस
महाराष्ट्र में भाजपा ने अपनी मजबूत जमीन गंवा दी इसके पीछे भी कई बड़ी वजह है. शिवसेना और उद्धव ठाकरे को साधने में फडनवीस और भाजपा दोनों ही नाकाम रहे. शिवसेना को हमेशा खुद से कम आंकते रहे और शरद पवार और एनसीपी को हल्के में लेने की भी भूल कर दी. जिसके बाद पवार ने पावर पंच खेल दिया. फडणवीस लगातार ही उद्धव ठाकरे को गलत साबित करने में लगे रहे और अजित पवार को जरूरत से ज्यादा आंक लिया. जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा.
5. झारखंड में रघुवर दास
रघुवर दास के खिलाफ बाहरी का मुद्दा सबसे ज्यादा भुनाया गया और भाजपा ने सिर्फ राष्ट्रीय मुद्दे को लेकर प्रचार किया. इसके अलावा विपक्ष ने स्थानीय मुद्दों को तरजीह दी. खुद रघुवर दास आदिवासी समुदाय को नहीं साध पाए और सीएम रहते सहयोगियों को नहीं जोड़ पाए. पार्टी में उनके खिलाफ कई लोग बागी हो गए.
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