पटना: आपको यह जानकर आश्चर्य के साथ दुख भी होगा कि बिहार की राजधानी पटना की गंगा में केवल 5 प्रतिशत हिस्सा ही गंगा जल बचा हुआ है.
पटना से गायब हो चुकी हैं गंगा मैया
ये सुनने में थोडा अजीब जरुर लगे लेकिन हकीकत है. पटना में रहने वाले हर शख्स के मन में सवाल जरुर उठेंगे की हर रोज गंगा के तट पर गंगा के दर्शन जो होते हैं क्या वो गंगा नहीं? उसका जवाब है नहीं. आप जिस गंगा को देखकर आते हैं वो गंगा का पानी नहीं बल्कि उनकी सहयोगी नदियों और नाले का पानी है. पटना में गंगा pr महज पांच फीसदी ही बची है. गंगा में आस्था रखनेवाले पटना के लाखों लोगों के लिए ये खबर झटका देने वाली है. लेकिन बिहार राज्य पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के इस दावे ने सबको चौंका दिया है.
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पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष ने किया खुलासा
गंगा अब गंगा नहीं रही. पवित्र मानी जाने वाली गंगा अब पटना में अपवित्र हो चुकी हैं. क्योंकि आप जिस गंगा को देख रहे हैं वो गोमुख से निकलनेवाली पवित्र गंगा नहीं. बल्कि गंगा की सहयोगी नदियों और नाले का मिश्रित पानी है. गंगा में प्रदूषण का हाल ऐसा है कि पटना में बहनेवाली गंगा में गंगाजल का अंश केवल पांच से दस फीसदी ही है. पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के चेयरमैन अशोक घोष का ये दावा गंगा में आस्था रखनेवालों के लिए बडा झटका है.
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हाल ही में हुई जांच से पता चला
दरअसल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से समय समय पर गंगा के पानी की गुणवत्ता की जांच की जाती रही है. हाल में गंगा के पानी की जो जांच की गयी उसमें चौंकानेवाले मामले सामने आए. गंगा का जल पीने लायक तो दूर नहाने लायक तक नहीं है. गंगा जल में बैक्ट्रोलॉजिकल प्राब्लम पाया गया है. ई कोलाई श्रेणी के टोटल कॉलीफोम और फिकल कॉलिफोम जीवाणु पाये गये हैं. इनकी संख्या तय मानक से कहीं अधिक पाया गया है. इसके अलावा पानी में माइक्रोप्लास्टिक के अंश भी पाये गये हैं.
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जीवाणुओं की बहुत ज्यादा संख्या
अब जरा गंगाजल के इस्तेमाल को लेकर मानक को भी जान लीजिए. मानक के मुताबिक सौ मिलीलीटर पानी में 500 टीसी( टोटल कॉलिफॉम) से ज्यादा जीवाणु नहीं होना चाहिए. जहां 500टीसी से ज्यादा जीवाणु हैं वहां स्नान करना सही नहीं है. जबकि पटना के गंगा जल में अलग अलग घाटों पर जो टीसी जीवाणु पाया गया है वो 6 हजार से 35 हजार तक है. पटना के अलावा बक्सर भोजपुर सारण लखीसराय मुंगेर भागलपुर में जो पानी की जांच की गयी है वो साफ और सुरक्षित नहीं है.
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डैम की वजह से स्थिति बिगड़ी
पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक नमामि गंगे की दोनों थीम अविरल गंगा और नमामी गंगा में प्रॉब्लम है. उत्तराखंड में अब कई डैम बन चुके हैं. इसलिए यहां से निकलनेवाली गंगा का फ्लो काफी कम हो चुका है. यूपी बिहार आते आते गंगा के पानी थोडा बहाव तेज जरुर होता है, लेकिन वह गंगा का पानी नहीं होता बल्कि गंगा की सहायक नदियों सोन गंडक जैसी नदियों और नाले का पानी होता है. पटना की गंगा में गंगा का पानी तो महज 5 से 10 प्रतिशत ही बचा है और ये पश्चिम बंगाल जाते जाते केवल 2 प्रतिशत ही बचती हैं.
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गंगाजल बन चुका है जहर
पटना के जाने माने फिजिशियन डाक्टर दिवाकर तेजस्वी कहते हैं कि आमतौर पर पीने के लिए जो पानी इस्तेमाल किया जाता है वो 50 एमपीएन प्रति 100 एमएल होता है. जिसे पीने योग्य माना जाता है लेकिन गंगा का पानी तय मानक से 30 गुणा ज्यादा प्रदूषित हो चुका है. अगर लोग इसका इस्तेमाल गलती से पीने में कर लें तो उन्हें टायफॉयड कॉलरा डिसेंट्री हेपेटायटिस पेचिश जैसी बीमारी हो सकती है. वहीं लोग प्रदूषित पानी का इस्तेमाल अगर स्नान करने में करते हैं तो उन्हें खुजली, माइटस इन्फेक्शन फंगल हो सकता है.