नई दिल्लीः Web series तांडव को लेकर विरोध-प्रदर्शन जारी है. लोग सीरीज को बैन करने की मांग कर रहे हैं. इसे धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला बताया गया है. यह भी कहा गया कि OTT प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो रहा अधिकतर कंटेंट Hinduphobia से ग्रसित है. यानी कि थोड़ा सा दलित लिया, थोड़े किसान मिलाए, इसमें मुस्लिम विक्टिम कार्ड का नमक डाला, छात्र राजनीति का तड़का दिया और राजनीति की आंच पर गर्म कर दिया, एक वेब सीरीज तैयार हो गई. तांडव कुछ ऐसा ही कंटेंट लेकर हमारे सामने हाजिर होती है.
महिला किरदारों के लिए गर्व न सहानुभूति
तमाम विरोधों और सीरीज को नकारने के बीच एक बड़ी बात आश्चर्य में डालती है और सालती भी है. यह है वेब सीरीज में महिला किरदारों की स्थिति और उनके ऊपर फिल्माए गए दृष्य. कमाल की बात है कि के चरम वाले इस दौर में नारीवाद का झंडा बुलंद करने वालों की इस मुद्दे पर एक चूं भी नहीं सुनाई देती है. पूरी सीरीज में हर एक महिला किरदार को करीब से देखें तो वह या तो खुद 'सीढ़ी' बन रही है या फिर आगे बढ़ने के लिए 'सीढ़ी' का प्रयोग कर रही है.
फिर चाहें अनुराधा किशोर का Role Play करने वाली डिंपल कपाड़िया हों, उनकी सेक्रेटरी मैथिली, समर की पत्नी आयशा, उसकी कथित गर्लफ्रैंड अदिति, VNU की छात्रा सना और VNU के ही प्रोफेसर जिगर की पत्नी संध्या. ये सारे महिला किरदार सशक्त हो सकते थे, लेकिन सीरिज लिखने वाले गौरव सोलंकी ने न तो इन महिला किरदारों के लिए गर्व का अहसास ही बचाया और न ही इनके हिस्से सहानुभूति ही आने दी.
पुरुष किरदारों के सहारे महिला किरदार
ये सारी महिलाएं एक तरह से पॉवर पाने के लिए पुरुष किरदार के इर्द-गिर्द बेल की तरह लिपटीं नजर आती हैं. प्रधानमंत्री बनने वाली अनुराधा किशोर 25 साल तक PM देवकी नंदन के साथ सिर्फ इसलिए हैं ताकि उन्हें कोई बड़ा ओहदा मिल सके. इसके लिए वह जिंदगी भर सामने से प्रेरणा कहलाना और पीठ पीछे देवकी की रखैल कहलाना तक स्वीकार कर लेती हैं. अगर फिल्मी पर्दा नारीवाद का समर्थन करता है और यह मानता है कि यह बदले दौर का सिनेमा है जहां महिला और पुरुष बराबर हैं तो अनुराधा कम से कम अपनी इस स्थिति के खिलाफ झंडा बुलंद तो कर ही सकती थीं.
यह वही नारीवाद है जो खुलेआम कहता है कि भारतीय स्त्रियां स्थिति के साथ समझौता कर लेती हैं. लेकिन अनुराधा किशोर जैसा बर्ताव क्या समझौता नहीं है? क्या वह महिलाओं की परिस्थितियों का सामान्यीकरण नहीं कर रहा है. अदिति का किरदार अपने आप में शुरुआती तौर पर सशक्त लगता है, लेकिन धीरे-धीरे समर के प्रति उसके रिश्ते की परत खुलते जाती है. इसके साथ ही खुलते जाते हैं उसके कपड़े और नारीवाद भी वही कहीं उधड़ा सा पड़ा दिखाई देती है.
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किसी भी स्थिति का कोई विरोध नहीं
संध्या का किरदार भी उसे कहीं का नहीं छोड़ने वाला बना देता है. अपने पति से तलाक के बीच वह एक दलित नेता के संपर्क में आती है, दलित नेता उससे अपना रिश्ता छिपाता है. वह दलित नेता से गर्भवती हो जाती है. पहला पति उसकी प्रेग्नेंसी की खबर मीडिया में आउट कर देता है. 'बेचारी' संध्या को पिछले दरवाजे से घर से निकलना पड़ता है.
अजीब बात है कि उस औरत की जिंदगी में दो मर्द हैं और दोनों ही बिना किसी भावना के I Love You ऐसे बोल देते हैं कि जैसे ये माना गया Concept हो कि कुछ भी बुरा करके इमोशनल होकर I Love You बोल दो लड़की मान जाएगी. संध्या के साथ जैसा किया गया वह परंपरावादी समाज के उसे घिसे पिटे भाव को उभार रहा है कि बिना मर्द के औरत की जिंदगी कुछ भी नहीं.... नारीवाद ये सब देखकर दम तोड़ गया.
सना के किरदार की तो बात ही क्या करें, कॉलेज की छात्र नेता बनने का गट्स रखने वाली जिंदगी में तीन बार मर्दों के हाथ कठपुतली बन रही है और अंत में फंदा लगाना उसका नसीब बनता है. यह सना की आत्महत्या का सीन नहीं बल्कि नारीवाद की खुलेआम हत्या थी.
सीरीज को सामने आए 5 दिन हो चुके हैं, लगा था कि इतने दिन में तो किसी का नारीवाद खौलेगा, लेकिन शायद नारीवाद रजाइयों में है. दिल्ली की सर्दी में जम चुका है. RIP पिंजरा तोड़. RIP नारीवाद
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