चार्टर सिटी नहीं, 'कस्बा सिटी'

“चार्टर सिटी“ की यह अवधारणा कुछ बिन्दुओं को छोड़कर कई मायनों में भारत में बन रही स्मार्ट सटी से मिलती-जुलती है.

Written by - Vijay Agarwal | Last Updated : Dec 3, 2018, 10:38 PM IST
चार्टर सिटी नहीं, 'कस्बा सिटी'

पिछले दिनों जैसे ही ‘मोहल्ला अस्सी’ फिल्म का आखिरी दृश्य आंखों के सामने आया, वैसे ही अर्थशास्त्र के नोबल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री पॉल होमर की अचानक ही याद आ गई. दरअसल, फिल्म के आखिरी दृश्य में दिखाया गया है कि पतलून-कोट पहनकर टाई लगाए हुए कुछ विदेशी काशी के अस्सी घाट पर गंगा नदी की ओर मुंह किए खड़े हैं. वे इस घाट को आधुनिक रूप से विकसित किए जाने का जायजा लेने आए हुए हैं. कुल-मिलाकर यह फिल्म काशी की मान्यताओं, परंपराओं और जकड़न पर पड़ने वाले आर्थिक दबाव एवं वैश्विक संस्कृति के कारण धीरे-धीरे हो रहे बदलाव की कहानी कहती है.

यहां होमर याद इसलिए आए, क्योंकि उन्होंने चार्टर सिटी जैसे नए शहरों के निर्माण की बात कही है. उनका मानना है कि इस तरह के नए शहरों के निर्माण से नवोन्मेषिता बढ़ेगी. साथ ही आर्थिक विकास में तेजी भी आएगी. फिल्म को देखते हुए मेरे दिमाग में यही बात आई थी कि क्या काशी के घाट को भी ‘चार्टर सिटी के पैमाने’ ‘चार्टर घाट’ के रूप में तब्दील किया जा सकता है. वैसे यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के बाद से वाराणसी शहर के आधुनिकीकरण के काम में काफी तेजी आई है. स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद गंगा के घाटों तक पहुँचने के रास्ते को चौड़ा करने, उनकी साफ-सफाई और घाटों के पुनर्निर्माण के काम को प्राथमिकता दी जा रही है. इससे निश्चित तौर पर विश्व प्रसिद्ध यह घाट, जो दुनिया में ‘मोक्षदायिनी नगर’’ के नाम से प्रसिद्ध होकर हर साल लाखों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है, अपने सत्य स्वरूप को प्राप्त कर सकेगा.

अब थोड़ी-सी चर्चा चार्टर सिटी के बारे में करना बेहतर होगा. इसके तहत होमर का प्रस्ताव है कि यह शहर बिल्कुल नया विकसित होगा, क्योंकि देश के किसी भी पहले से स्थापित शहर को इस रूप में बदल पाना व्यावहारिक नहीं है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नये सिरे से बनाये गये इस शहर के सभी नियम और इनकी संस्थाएं भी नई होंगी. इस नए शहर के लिए नया कानून बनाना होगा. फिर ये कानून और संस्थाएं निवेषकों और निवासियों को अपनी ओर आकर्षित करेंगे. मेजबान देश यदि चाहे तो प्रशासन के अपने कुछ दायित्व विकसित देशों को सौंप सकता है.

“चार्टर सिटी“ की यह अवधारणा कुछ बिन्दुओं को छोड़कर कई मायनों में भारत में बन रही स्मार्ट सटी से मिलती-जुलती है. दोनों में मुख्य फर्क यह है कि जहाँ स्मार्ट सिटी स्थापित शहरों के अन्दर या उससे सटे हुए क्षेत्रों में बनाये जा रहे हैं, वहीं चार्टर सिटी इन सबसे बिल्कुल हटकर अलग ही रूप में बनाये जायेंगे.

यदि हम भारत के सन्दर्भ में चार्टर सिटी या यहां तक की स्मार्ट सिटी की प्रासंगिकता की बात करें, तो वे बहुत ज्यादा प्रासंगिक मालूम नहीं पड़ते. अभी तक देश को “इंडिया” और “भारत” नाम से दो भागों में विभाजित किया जाता है. इस तरह के विशेष शहरों के अस्तित्व में आने के बाद इसके लिए एक अलग ही नाम खोजने की जरूरत होगी और शायद उसके लिए “न्यू इंडिया“ जैसे नाम का ईजाद करना पड़े.

वैसे भी मौजूदा शहर प्रदूषण, भीड़-भाड़ और यातायात के जिन भयावह संकटों से जूझ रहे हैं, उन्हें देखते हुए देश को नगरीय विकास से नए मॉडल के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए. यह नया मॉडल कस्बों या उससे थोड़े से बड़े तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के उन छोटे नगरों को विकसित करने का हो सकता है, जिनकी आबादी दस हजार से एक लाख के बीच में है. यदि इन नगरों को शहरी सुविधाएं उपलब्ध करा दी जाएं, जिसे स्वर्गीय राष्ट्रपति कलाम साहब ने ‘अरबन एमेनेटिस’ कहा था, तो निश्चित तौर पर भारत जैसे ग्रामीण बहुल आबादी वाले देश के लिए यह बहुत व्यावहारिक सिद्ध हो सकता है. शहरों की तरफ केवल गांव की आबादी ही नहीं आ रही है, बल्कि इन छोटे नगरों के लोग भी उस ओर तेजी से जा  रहे हैं. यदि इन कस्बों को विकसित किया जाता है, तो वह अपनी आबादी को वहीं रोक सकेगा. साथ ही वह आसपास के गांव की आबादी को भी सम्हाल लेगा. ऐसी स्थिति में जहाँ एक ओर बड़े शहरों की तेजी से बढ़ती हुई आबादी की रफ्तार कम होगी, वहीं इन छोटे शहरों के विकास की रफ्तार में तेजी आयेगी. फलस्वरूप क्षेत्रीय आर्थिक संतुलन लाने में भी मदद मिलेगी.

जहाँ तक इसके लिए धन जुटाने की बात है, चूँकि इनके विकास में बहुत ज्यादा लागत की जरूरत नहीं होगी, इसलिए हमें विदेशियों का भी मुँह नहीं देखना होगा. निजी निवेषकों के लिए एक आकर्षक व्यावसायिक मॉडल तैयार किया जा सकता है. कुल-मिलाकर यह कि काशी के अस्सी घाट के विकास के लिए हम खुद में ही सक्षम हो सकते हैं.

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