नई दिल्ली: हनुमान जयंती पर यूपी में जमकर लहराया भगवा, भव्य शोभायात्राएं निकलीं. अलीगढ़ से लेकर कई शहरों में हनुमान चालीसा पाठ की होड़ लगी रही और हनुमानजी की पूजा करने सीएम योगी भी खासतौर से गोरखपुर पहुंचे. लेकिन चुनावी मौसम में खुद को सबसे बड़ा हनुमान भक्त बताने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव बस एक ट्वीट कर हनुमान जयंती से फारिग हो लिये. हनुमान चालीसा की चौपाई लिखी भी तो आधी अधूरी.
"श्रीगुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधार, बरनऊं रघुवर विमल जस जो दायक फल चार, श्री हनुमान जन्मोत्सव की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं"
अटकलें तेज हैं कि इस चौपाई की बाकी की दो लाइनें - " बुद्धिहीन तनु जानि के सुमिरौ पवन कुमार.. बल-बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहुं कलेश विकार" - अखिलेश ने क्यों नहीं लिखी? क्या इसलिये नहीं लिखीं कि इन लाइनों में 'क्लेश-विकार' का जिक्र है?
योगी का बजा डंका,'कुनबे' की लगी 'लंका'!
अखिलेश और उनकी पार्टी इन दिनों किस 'क्लेश-विकार' से गुजर रही हैं, ये तो दुनिया समझ रही है. शिवपाल और आजम खान का जिक्र होते ही अखिलेश और उनके समर्थक सुलग जाते हैं. खासतौर से समाजवादी अध्यक्ष को लगता है- जैसे वो 'विभीषण' संग्राम में फंस गए हैं, जहां घर के कई भेदी लंका ढाने पर उतारू है.यानी पार्टी की लुटिया डुबाने की जुगत में हैं.
अखिलेश शायद इसलिये भी जल-भुन रहे हैं, क्योंकि उन्हें ओमप्रकाश राजभर की चुनावी बोली समाजवादी पार्टी में मचे घमासान में बदलती दिख रही है. राजभर बीजेपी की लंका लगाने की गोली देकर समाजवादी गठबंधन में आए थे और अपनी चुनावी रैलियों कई दफा इसे दोहराते सुने गए कि 'हम हनुमानजी के बिरादर हैं, हनुमान जी लंका गए तो सबसे पहले अशोक वाटिका उजाड़ी.. फिर लंका भी जलाई.'
राजभर ने जब खुद को हनुमानजी की बिरादरी का बताया था, तब अखिलेश ये सोचकर मुस्कुराते थे कि राजभर के निशाने पर बीजेपी के साथ शिवपाल चच्चा हैं. लेकिन यहां तो खेला ही पलट गया. समाजवादी कुनबे की ही लंका लग गई.
चच्चा शिवपाल बनेंगे किसके 'हनुमान'?
वैसे बड़ा सवाल तो ये है कि अखिलेश जिन्हें 'विभीषण' समझ रहे हैं, वो अब किसके 'हनुमान' बनने वाले हैं? कहने को शिवपाल 'भगवा रंग' में रंगने की तैयारी में हैं. तो उधर आजम खान समर्थक खेमा भी 'लाल टोपी' उतारने के लिये बेचैन हो रहा है. इसी खेला में समाजवादी पार्टी में दनादन इस्तीफे हो रहे हैं.
हाल ये है कि बयासी के हो चुके मुलायम सिंह कुनबे का क्लेश दूर करने के लिये 'संजीवनी बूटी' ढूंढ रहे हैं. और इधर अखिलेश को संकट में संकट छिपा नजर आ रहा है, फिर भी वो समाजवादी कुनबे को तार-तार कर रहे 'क्लेश-विकार' को दूर करने के लिये हनुमानजी से प्रार्थना की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं.
अखिलेश को जरूर याद आ रहा होगा कि इसी फरवरी में उन्होंने अयोध्या में हनुमानगढ़ी का चुनावी चक्कर लगाया था. और अपने लक्जरी वाले चुनावी रथ से अयोध्या की जनता को हनुमानजी की मूर्ति दिखा-दिखाकर वोट मांगा था. तब हिंदू वोटों को अपने पाले में लाने के लिये सॉफ्ट हिंदुत्व का मैसेज देना था.
'भगवा' से सांसत में समाजवादी सियासत!
अब अखिलेश की मुश्किल ये है कि हनुमान जयंती ऐसे मौके पर आई है, जब देश में 'अजान बनाम हनुमान' का बवंडर मचा है. महाराष्ट्र से शुरू हुआ 'लाउड' हंगामा यूपी में भी बवाल मचा रहा है.
इसीलिये पसोपेश में फंसे हैं बबुआ. पसोपेश ये है कि हनुमानजी की तरफदारी करें या अजान की ? क्योंकि दोनों सूरत में नुकसान तगड़ा है. एक तरफ हनुमान भक्त होने का दावा टूटेगा, तो दूसरी तरफ मुस्लिम वोटबैंक हाथ से छूटेगा?
अखिलेश तो योगी के डिप्टी सीएम केशव मौर्य की तरह ये भी नहीं कह सकते कि 'हिन्दुस्तान में हनुमान चालीसा पढ़ना मेरा धार्मिक अधिकार है.' ना ही वो बीजेपी सांसद सुब्रत पाठक की तरह कह सकते हैं कि 'हनुमान चालीसा हिन्दुस्तान में नहीं पढ़ा जाएगा तो कहां पढ़ा जाएगा?'
हनुमान जयंती पर आधी चौपाई, इफ्तार को फुल सपोर्ट!
तुष्टिकरण के वोटों के चक्कर में अखिलेश खुलकर हनुमान जयंती की बधाई तो नहीं दे पाए, लेकिन शाम ढलते-ढलते इफ्तार पार्टी में शामिल होने का अपना फोटो सोशल मीडिया पर बतौर सबूत जरूर डाल दिया. इसके बाद ही खबरें चलने लगीं कि हनुमान जयंती के दिन लखनऊ के ईदगाह में 14वें रमजान पर आयोजित इफ्तार में अखिलेश शरीक हुए.
कुल मिलाकर समाजवादी अध्यक्ष समझ चुके हैं कि मुस्लिम वोट बैंक के खिसकने का खतरा उठाने की हालत में अभी वो नहीं हैं. और जैसे भी हो ऐसा होने से रोकना है. लेकिन वो सीएम योगी का क्या करेंगे, जो चुनावी दंगल के दौर से ही ये कहकर चुटकी ले रहे हैं कि "हनुमान चालीसा तो एक दिन ओवैसी को भी पढ़ना पड़ेगा."
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