जिंदगी छोटी, सियासत बड़ी... 121 लोग मर गए, फिर भी 'भोले बाबा' पर खामोश क्यों हैं नेता?

Bhole Baba Political Influence: हाथरस में मची भगदड़ में 121 लोगों की जान जा चुकी है, लेकिन जिस बाबा के सत्संग में ये भगदड़ मची उस पर FIR नहीं हुई है. सियासी दलों के नेता भी बाबा पर चुप्पी साधे हुए हैं. इसके पीछे का कारण बाबा का सियासी रसूख माना जा रहा है.  

Written by - Ronak Bhaira | Last Updated : Jul 5, 2024, 09:56 PM IST
  • हाथरस की भगदड़ में 121 मरे
  • भोले बाबा पर नहीं हुई FIR
जिंदगी छोटी, सियासत बड़ी... 121 लोग मर गए, फिर भी 'भोले बाबा' पर खामोश क्यों हैं नेता?

नई दिल्ली: Bhole Baba Political Influence: यूपी के हाथरस में मची भगदड़ में 120 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. ये भगदड़ भोले बाबा उर्फ सूरजपाल के सत्संग में मची थी. नेताओं ने घटना पर शोक जताया. विपक्ष ने प्रशासन और आयोजकों को लापरवाही का जिम्मेदार बताया. लेकिन पक्ष-विपक्ष भोले बाबा पर खामोश है, उनको लेकर सूबे के बड़े नेताओं ने बयान नहीं दिया है. आखिर ऐसा क्या है कि सतापक्ष और विपक्ष के नेताओं ने भोले बाबा पर चुप्पी साध रखी है?

जब अखिलेश ने की बाबा के कार्यक्रम में शिरकत
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने जनवरी 2023 में भोले बाबा के कार्यक्रम में शिरकत की थी. इतना ही नहीं, उन्होंने तो मंच के नीचे लगे माइक पर भोले बाबा की जय-जयकार भी की थी. फिर अपने भाषण में बाबा के कसीदे भी पढ़े. अखिलेश ने इस कार्यक्रम की तस्वीर एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर डाली थी, साथ ही लिखा- नारायण साकार हरि की सम्पूर्ण ब्रह्मांड में सदा - सदा के लिए जय जयकार हो.

10 सीटों पर उपचुनाव, 20 जिलों में बाबा का प्रभाव
दरअसल, इसके पीछे नेताओं की सियासी मजबूरी है. साल खत्म होने से पहले यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. ऐसे में कोई भी दल बाबा की खिलाफत मोल नहीं लेना चाहता. भोले बाबा के अनुयायी यूपी के 20 से अधिक जिलों में हैं. यदि बाबा पर की गई टिप्पणी से उनके अनुयायी नाराज होते हैं, तो सियासी दलों को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है. 

बाबा के 80% अनुयायी दलित
इसके अलावा, भोले बाबा खुद जाटव समाज (दलित) से आते हैं. उनके 80% अनुयायी भी इसी समाज से आते हैं. दलित वोटर्स को सपा और भाजपा, दोनों ही नाराज नहीं कर सकते. चुनाव के दौरान संविधान में बदलाव और आरक्षण को खत्म कर देने वाला मुद्दा दलित समुदाय को भाजपा के खिलाफ में ले आया. भाजपा से दलित वोटर पहले से ही खफा हैं, अब वह उनकी और खीझ नहीं उठा सकती. दूसरी ओर, सपा ने इस बार बसपा से जुड़े दलित वोटर्स को अपने पक्ष में किया, अब पार्टी इन्हें फिर से दूर नहीं करना चाहती.

करहल सीट दलित वोटर निर्णायक
भाजपा और सपा का करहल सीट पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव पर फोकस है. ये सीट सपा का गढ़ रही है, भाजपा इसमें सेंध लगाना चाहती है. जबकि सपा अपना किला बचाना चाहती है. यहां से सपा प्रमुख अखिलेश यादव विधायक थे, जिनके सांसद बनने के बाद सीट खाली हुई है. इस सीट पर दलित वोट 50 हजार के करीब हैं, जो निर्णायक भूमिका में हैं. पार्टियों को डर है कि भोले बाबा के खिलाफ बोलने से 

OBC की जातियों पर भी बाबा का प्रभाव
भोले बाबा का प्रभाव दलित समुदाय के अलावा OBC (अति पिछड़ा वर्ग) की यादव, शाक्य, लोध और पाल जैसी जातियों में भी है. OBC की जातियां यूपी में भाजपा और सपा दोनों के लिए वोट करती हैं. दोनों ही दलों ने अपने वोटर्स को खुश रखने की लिए भोले बाबा पर चुप्पी साध ली है.

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