नई दिल्ली: चीन बुरी तरह बौखलाया हुआ है. कोरोना वायरस(CoronaVirus)फैलाने के लिए पूरी दुनिया उसे गुनहगार मान रही है. लेकिन वह अपनी गलती मानने की बजाए भारतीय सीमा पर जमावड़ा बढ़ा रहा है. ताजा समाचार मिलने तक चीन ने भारतीय सीमा के नजदीक नगरी गुंशा(Ngari Gunsa)एयरबेस के पास अपने अत्याधुनिक फायटर जेट की तैनाती शुरु कर दी है.
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show a large area parallel to the runway at #Ngari Gunsa dual use airbase being rapidly developed since April 2020, as tensions between #India & #China continue to rise pic.twitter.com/1S2XQKHjZS— d-atis☠️ (@detresfa_) May 23, 2020
यही नहीं चीन ने अपने नागरिकों को भारत छोड़ने के लिए एडवायजरी भी जारी की है. जो कि चीन की तरफ से किसी दुस्साहसिक कदम का संकेत दे रहा है. दरअसल पिछले कुछ सालों में भारत का कद पूरी दुनिया में बढ़ता जा रहा है, वहीं चीन बुरी तरह बदनाम होता जा रहा है. भारतीय सीमा पर चीन की इस बढ़ती आक्रामकता के पीछे 5 प्रमुख कारण है.
1.चीन की बौखलाहट का पहला कारण POK पर भारत का बढ़ता दबाव है
भारत ने जम्मू कश्मीर से पाकिस्तान परस्त आतंकियों का लगभग सफाया कर दिया है और गुलाम कश्मीर को हासिल करने के लिए दबाव बढ़ा दिया है. वैसे तो ये पाकिस्तान और चीन दोनों की परेशानी का बड़ा कारण है. लेकिन यदि भारत गुलाम कश्मीर को पाकिस्तान से छुडाकर अपने साथ शामिल कर लेता है तो पाकिस्तान से भी ज्यादा दिक्कत चीन को होने वाली हैं.
क्योंकि पाकिस्तान ने PoK का अहम हिस्सा ‘अक्साई चीन’ अवैध रुप से चीन को सौंप रखा है. पीओके में गिलगिट-बाल्टिस्तान सहित एक बड़े हिस्से का नियंत्रण काफी हद तक चीनी अधिकारियों के हाथों में हैं. ये इलाका वास्तव में धरती का स्वर्ग कहा जा सकता है. लेकिन इस स्वर्ग में हजारों चीनी सैनिकों की आवाजाही देखने को मिलती हैं.
क्योंकि चीन को इस इलाके से कोई भावनात्मक लगाव नहीं है बल्कि उसके लिए इसका सामरिक महत्व है. चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के जरिए पेट्रोलियम हासिल करने की योजना बनाई है. जिसका रास्ता POK से गुजरता है.
इस क्षेत्र में बारह महीने चलने वाला एकमात्र राजमार्ग का नाम काराकोरम राजमार्ग है. कभी ‘सिल्क रूट’ का हिस्सा रहे इस राजमार्ग की चौड़ाई अभी 10 मीटर हैं. चीन उसे 30 मीटर का करना चाहता है.
चीन का पश्चिम राजमार्ग ‘ल्हासा-काशगर या शिनजियांग राजमार्ग’ हैं. जो कि आगे जाकर काराकोरम राजमार्ग से मिलता हैं. ये इलाका इसलिए भी बहुत अहम है क्योंकि यहां 250 किलोमीटर के दायरे में चीन, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, पाकिस्तान और भारत जैसे 5 देशों की सीमाएं मिलती हैं.
चीन की यह महत्वाकांक्षी परियोजना हैं, जो CPEC (China–Pakistan Economic Corridor) या OBOR (One Belt One Road) कहलाती हैं. तीन हजार किलोमीटर की इस परियोजना पर चीन 46 बिलियन अमेरिकन डॉलर खर्च कर चुका है.
अगर भारत POK पर कब्जा कर लेता है तो चीन का अभी तक का किया हुआ खर्च बर्बाद हो जाएगा. इसलिए POK पर भारत के बढ़ते दबाव से चीन चिंतित है और भारत के खिलाफ आक्रामक नीति अपना कर उसे धमकाना चाहता है.
2. सीमा पर भारत के सड़क निर्माण से बौखला रहा है चीन
भारत ने पिछले दिनों चीन से जुड़ी लद्दाख और अरुणाचल की सीमा पर तेजी से सड़कें बनानी शुरु कर दी हैं. बेहद विषम परिस्थितियों में भी बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन जैसी भारतीय संस्थाओं ने बहुत कम समय में सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण सड़कों के निर्माण का काम पूरा कर लिया है. पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय सेना ने अपनी ताकत मजबूत कर ली है.
इसके बाद से चीन बौखलाया हुआ है. भारत के निर्माण को रोकने के लिए ही चीनी सैनिक पांच मई को भारतीय क्षेत्र में घुस आए थे. तब भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हाथापाई भी हुई. इसके बाद चीनी हेलीकॉप्टरों के भी भारतीय सीमा में घुसने की खबर आई. परिणाम स्वरुप भारतीय सेना ने अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी. इससे चीन परेशान हो उठा है.
चीनी फौज ने गैलवान घाटी में 80 टेंट गाड़ दिए हैं. वो उस सामरिक महत्व की सड़क के निर्माण को रोकना चाहते हैं लद्दाख के दुरबुक से श्योक होते हुए दौलत बेग ओल्डी तक जाती है. ये करीब 255 किलोमीटर लंबी 'डीएसडीबीओ' सड़क है. जिसका उदघाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले साल अक्टूबर में किया था.
ये डीएसडीबीओ रोड गैलवान घाटी के करीब से गुजरती है. इस डीएसडीबीओ रोड के बनने से डीबीओ और काराकोरम दर्रा लद्दाख के प्रशासनिक-मुख्यालय लेह से जुड़ गया है जहां पर सेना की 14वीं कोर का मुख्यालय है. सड़क निर्माण के साथ ही भारतीय सेना ने यहां बंकर, बैरक और किलेबंदी का काम भी पूरा कर लिया है. चीन के लिए ये भारी चिंता का विषय है.
इसके अलावा भारत नेपाल और चीन के ट्राई-जंक्शन पर पिथौरागढ़ के धारचूला से लिपूलेख तक बनी सड़क भी चीन की आंखों में खटक रही है.
इसलिए भी चीन भारत को संघर्ष में उलझाकर उसकी सड़क परियोजनाओं को तबाह करने की मंशा रखता है.
3. लद्दाख के प्राकृतिक संसाधनों पर नजर
चीन ने इस बार भारत से संघर्ष की शुरुआत लद्दाख से की है. पहले चीन की निगाहें अरुणाचल प्रदेश की तरफ होती थीं. लेकिन इस बार चीन ने लद्दाख को झगड़ा बढ़ाने के लिए चुना है. क्योंकि लद्दाख की पहाड़ियों में यूरेनियम और सोने का अकूत भंडार छिपा हुआ है.
लद्दाख के पर्वतों में यूरेनियम, ग्रेनाइट, सोने और रेअर अर्थ जैसी बहुमूल्य धातुएं भरी पड़ी हैं. चीन की सेना ने लद्दाख के जिस गैलवान इलाके के पास अपने टेंट गाड़ रखे हैं. उसके ठीक बगल में स्थित गोगरा पोस्ट के पास 'गोल्डेन माउंटेन' है. यहां सोने समेत कई बहुमूल्य धातुएं छिपी हुई हैं. लद्दाख के कई इलाकों में उच्च गुणवत्ता वाले यूरेनियम के भंडार मिले हैं. इससे न केवल परमाणु बिजली बनाई जा सकती है, बल्कि परमाणु बम भी बनाए जा सकते हैं.
चीन की कम्युनिस्ट सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स पहले ही लिख चुका है कि अमेरिका के साथ जंग में उतरने से पहले चीन को अपने परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ानी पडेगी. इसके लिए चीन को ज्यादा से ज्यादा यूरेनियम की जरुरत पड़ने वाली है. इसलिए भी चीन लद्दाख के यूरेनियम भंडार पर अपनी निगाहें गड़ाए हुए है.
साल 2007 में जर्मनी की प्रयोगशाला में लद्दाख चट्टानों के नमूनों की जांच से पता चला था कि यहां 5.36 प्रतिशत यूरेनियम मौजूद है. जो कि किसी भी दूसरी यूरेनियम खदान से बहुत ज्यादा है.
ये चीन के लालच का कारण है. यही वजह है कि भारत और चीन (India vs China) के बीच लद्दाख (Ladakh) के सामने वाले इलाके में चीनी सैनिक भारतीय इलाके में लंबे समय रुकने की रणनीति बनाकर आए हैं. वे बंकर बना रहे हैं और हथियारों की तैनाती कर रहे हैं.
4. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए नाक का सवाल है
चीन में माओत्से तुंग के बाद शी जिनपिंग को सबसे ज्यादा अधिकारों से सुसज्जित किया गया है. पूरे चीन को उम्मीद है कि शी जिनपिंग चीन को दुनिया के शिखर पर लेकर जाएंगे. इसके लिए चीन की पोलित ब्यूरो ने शी जिनपिंग को असीमित अधिकारों के साथ आजीवन राष्ट्रपति बने रहने का अधिकार दिया है.
अमेरिका को नीचा दिखाना और सदियों पुराने सिल्क रुट को जिंदा करके चीन के लिए निष्कंटक पेट्रोलियम हासिल करने का रास्ता तैयार करना चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए इज्जत का सवाल है.
OBOR के लिए चीन की पोलित ब्यूरो ने शी जिनपिंग को असीमित अधिकार दिए हैं. चीन इस परियोजना पर 46 बिलियन अमेरिकी डॉलर की रकम खर्च कर चुका है. भारत के विरोध से उसकी ये पूरी पूंजी नष्ट हो जाएगी. इसकी वजह से चीन दिवालिया हो जाएगा. चीन इतना बड़ा आर्थिक नुकसान बर्दाश्त नहीं कर सकता है.
चीन इस रास्ते के लिए लंबे समय से तैयारी कर रहा है. तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के जुलाई 2010 के चीन दौरे के समय चीन की ‘चाइना रोड एंड ब्रिज कारपोरेशन’ (CRBC) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. इसके तहत ‘काराकोरम हाईवे प्रोजेक्ट फेज-2’ को क्लियर किया गया.
इन रास्तों के साथ ही तीन वर्ष पहले, चीन की स्टेट काउंसिल ने गिलगिट-बाल्टिस्तान होते हुए लगभग छह सौ किलोमीटर के रेल लाइन की परियोजना घोषित की हैं. इस रेल लाइन के द्वारा पाकिस्तान के खैबर पख्तुनवाला क्षेत्र के एबोटाबाद जिले का हवेलियां शहर‘खुन्जेरर्ब पास’ से जुड़ जाएगा.
इसके अलावा चायना गेझौबा ग्रुप कंपनी (CGGC) यह चीन के वुहान की कंपनी हैं. इनफ्रास्ट्रक्चर और हाइड्रोपावर के क्षेत्र में विशालतम परियोजनाओं को पूर्ण करना यह इस कंपनी की विशेषता हैं. पाक के कब्जे वाले काश्मीर के मुजफ्फराबाद से ४२ किलोमीटर दूरी पर इस कंपनी ने एक बड़ा ‘नीलम-झेलम हाइड्रोपावर प्लांट’ (NJHP) लगाया हैं. इसकी क्षमता 969 मेगा वाट की हैं. इसकी पूरी मिल्कियत, इसका पूरा स्वामित्व, चीन की CGGC इस कंपनी के पास हैं.
पाक के कब्जे वाले काश्मीर में चीन इस भारी निवेश के साथ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की साख भी दांव पर लगी हुई है. यही वजह है कि चीन किसी भी कीमत पर ये इलाका भारत के हाथों में नहीं जाने देना चाहता है. इसीलिए वह युद्ध तक छेड़ने की तैयारी में जुट गया है.
5. अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के चीन छोड़कर जाने से बेचैन हो रहा है चीन
कोरोना संक्रमण फैलने का दोषी पूरी दुनिया चीन को मान रही है. यही वजह है कि दुनिया भर की कंपनियां चीन छोड़कर भारत में अपनी फैक्ट्रियां लगाना चाहती हैं. चीन इसे अपने अस्तित्व के संकट के तौर पर देख रहा है.
अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के चीन से भारत आने की शुरुआत जर्मनी की फुटवियर कंपनी 'कासा एवर्ज़ गंभ' के साथ हो चुकी है. वॉन वेल्क्स ब्रांड से फुटवियर बनाने वाली ये कंपनी भारत में शुरुआती 110 करोड़ का निवेश कर रही है. ये कंपनी चीन में सालाना 30 लाख फुटवियर का उत्पादन कर रही थी. जो कि अब उत्तर प्रदेश में लगाई गई यूनिट से किया जाएगा.
सूत्रों के मुताबिक कम से कम 300 कंपनियां मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल डिवाइसेज, टेक्सटाइल्स, लेदर, ऑटो पार्ट्स और सिंथेटिक फैब्रिक्स सहित कई क्षेत्रों के 550 प्रोडक्ट के लिए भारत में फैक्ट्रियां लगाने के लिए सरकार के संपर्क में हैं.
कई कंपनियों के चीन छोड़ भारत में मैन्यफैक्चरिंग यूनिट लगाने की खबर आने के बाद चीन भड़क गया है. चीन की कम्युनिस्ट सरकार के माउथपीस चाइनीज डेली ग्लोबल टाइम्स ने बौखलाते हुए कई आलेख लिखे हैं.
दरअसल चीन जानता है कि दुनिया में अगर उसे कोई टक्कर दे सकता है तो वो है भारत. यही वजह है कि चीन विदेशी कंपनियों के एक्ज़िट से वो घबरा गया है. इससे जुड़ी पूरी खबर आप यहां पढ़ सकते हैं
ये भी एक बड़ी वजह है कि चीन भारत को संघर्ष में उलझाकर अपने यहां के उद्योगों को भारत जाने से रोकना चाहता है.
लेकिन चीन ये भूल चुका है कि ये 1962 का भारत नहीं है. यहां नरेन्द्र मोदी की मजबूत सरकार है. जो किसी तरह की विदेशी साजिश को नाकाम करने की क्षमता रखती है.
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