चीन छोड़कर भारत आ रही हैं कंपनियां, बौखला रहा है ड्रैगन

पूरी दुनिया चीन पर कोरोना फैलाने का आरोप जड़ रही हैं. चीन को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है.   

Written by - Brijesh Gopinath | Last Updated : May 20, 2020, 07:32 PM IST
    • चीन से विदेशी कंपनियों का पलायन
    • विदेशी कंपनियों के पलायन से भड़का चीन
    • चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स में भारत के खिलाफ भड़ास
    • भारत में विदेशी कंपनियों को न्यौता
    • कॉर्पोरेट टैक्स को घटाकर 25.17% किया गया, नई फैक्ट्रियां लगाने वालों के लिए ये टैक्स घटकर 17%
    • मिनिमम अल्टरनेट टैक्स यानी MAT 18.5% के बजाय 15% MAT
    • भारत में सस्ती ज़मीन और स्किल्ड लेबर, अमेरिका जापान से कहीं सस्ता होगा
    • श्रम कानूनों में बदलाव का आश्वासन, ई कॉमर्स कंपनियों की मांग पर आश्वासन
    • डिजिटल पेमेंट पर लिए जाने वाले टैक्स की माफी
    • 1000 कंपनियां भारत आने को तैयार
    • मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल डिवाइसेज, टेक्सटाइल्स, लेदर, ऑटो पार्ट्स, सिंथेटिक फैब्रिक्स
    • कई क्षेत्रों के 550 प्रोडक्ट के लिए लगाएंगी फैक्ट्री
चीन छोड़कर भारत आ रही हैं कंपनियां, बौखला रहा है ड्रैगन

नई दिल्ली: मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों का चीन छोड़ने से उसका मैन्युफैक्चरिंग हब का तमगा छिन सकता है. ये चीन के लिए ये बहुत बड़ा झटका साबित होने वाला है और भारत के लिए बड़ा फायदा.


ये कंपनियां छोड़ रही हैं चीन
चीन से भारत आने की शुरुआत जर्मनी की फुटवियर कंपनी 'कासा एवर्ज़ गंभ' के साथ हो चुकी है. वॉन वेल्क्स ब्रांड से फुटवियर बनाने वाली ये कंपनी भारत में शुरुआती 110 करोड़ का निवेश कर रही है. ये कंपनी चीन में सालाना 30 लाख फुटवियर का उत्पादन कर रही थी. जो कि अब उत्तर प्रदेश में लगाई गई यूनिट से किया जाएगा. कंपनी मानती है कि भारत दुनिया का अगला मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस होगा. 
इसके अलावा  भारत की फार्मा कंपनियां चीन के विकल्प के तौर पर उभरने के लिए तैयार हो चुकी हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि केमिकल्स और फार्मा दो सेक्टर हैं जहां भारत बड़ी भूमिका निभा सकता है. 
फिलहाल दुनिया की 750 बिलियन डॉलर की केमिकल इंडस्ट्री में भारत का हिस्सा 3 फीसदी है जिसके बढ़ने की पूरी संभावना है.भारत में जिन वैश्विक फर्मों ने रुचि दिखाई है, उनमें अमेरिका के मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों टेलिडेने और एम्फेनोल के निर्माता हैं, और जॉनसन एंड जॉनसन जैसे मेडिकल उपकरण निर्माता हैं. मेडट्रोनिक पीएलसी और एबट लेबोरेटरीज़ भी भारत में यूनिट लगाने के लिए बात कर रही है.
सूत्रों के मुताबिक कम से कम 300 कंपनियां मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल डिवाइसेज, टेक्सटाइल्स, लेदर, ऑटो पार्ट्स और सिंथेटिक फैब्रिक्स सहित कई क्षेत्रों के 550 प्रोडक्ट के लिए भारत में फैक्ट्रियां लगाने के लिए सरकार के संपर्क में हैं. 


मोदी सरकार कर रही है तैयारी
फार्मा सेक्टर में आ रहे मौके को देखते हुए ही मोदी सरकार ने मार्च में 1.3 बिलियन डॉलर के इन्सेंटिव पैकेज की घोषणा की थी ताकि दवाओं के उत्पादन के साथ साथ मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर भी इसे उभारा जा सके. जापान ने कोरोनोवायरस महामारी के बाद अपनी कंपनियों को चीन से बाहर उत्पादन में मदद करने के लिए 2.2 बिलियन डॉलर का निवेश किया है. 
उधर यूरोपीय संघ ने चीन पर अपनी निर्भरता कम करने की शुरुआत कर दी है. इनमें से ज़्यादातर देशों की कंपनियों की दिलचस्पी भारत में यूनिट लगाने में है और यही बात ड्रैगन को खाए जा रही है.
चीन में सबसे अहम चीज थी लेबर और इंफ्रास्ट्रक्चर. एक तो वहां सस्ती लेबर है, आसानी से मिल जाती है और ऊपर से चीन की कम्युनिस्ट सरकार लेबरों के लिए जो नियम बना देती है, उसे सब मानते हैं. ऐसे में कंपनियों को लेबर की तरफ से या लेबर के लिए कोई दिक्कत नहीं होती है. इसके अलावा चीन ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर खूब काम किया है. चीन में पोर्ट्स को हाईवे के ज़रिए तमाम औद्योगिक शहरों से जोड़ा गया है. यही वजह है कि कंपनियां चीन में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने में दिलचस्पी दिखाती थीं. लेकिन कोरोना संकट के बाद स्थिति बदल गई है.
बेचैन हो रहा है चीन
कई कंपनियों के चीन छोड़ भारत में मैन्यफैक्चरिंग यूनिट लगाने की खबर आने के बाद चीन  भड़क गया है. चीन की कम्युनिस्ट सरकार के माउथपीस  चाइनीज डेली ग्लोबल टाइम्स ने बौखलाते हुए लिखना शुरु कर दिया है कि भारत कभी भी चीन का विकल्प नहीं बन सकेगा. वह लिखता है कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उत्तर प्रदेश ने चीन में मैन्युफैक्चरिंग करने वाली उन कंपनियों को अपने यहां शिफ्ट करने के लिए एक इकोनॉमिक टास्क फोर्स का गठन किया है. लेकिन ये केवल एक सपना है कि कोरोना के कारण आर्थिक दबाव झेल रहे चीन को पछाड़ कर भारत दुनिया का अगली फैक्टरी बन सकता है. ये केवल राष्ट्रवादी सोच और शेखी बघारने से ज़्यादा कुछ नहीं.


विदेशी मीडिया पर भी बरस रहा है चीन 
ग्लोबल टाइम्स ने भारत का हौसला बढ़ने के पीछे पश्चिमी मीडिया को भी दोष दिया है. ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि पश्चिमी मीडिया ने भी इस समय चीन की बाजार क्षमता की तुलना करके भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने में उत्साह बढ़ाया है. जिसकी वजह से भारतीयों को भी भ्रम हो गया है.  ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि भारत के चीन को पछाड़ने का सपना दिखाने में पश्चिमी मीडिया की भी भूमिका रही है. उन्होंने चीन की बाज़ार क्षमता का मुकाबला करने योग्य बताकर भारत को भ्रमित किया है. भारत के लिए मौजूदा समय में चीन को पछाड़ने का कोई मौका नहीं है. भारत को चीन और अमेरिका के बीच तनाव का फायदा भी नहीं मिलने वाला. मौजूदा परिस्थिति में चीन में काम कर रहीं विदेशी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को आकर्षित करने का कोई मौका नहीं क्योंकि उसके पास इंफ्रास्ट्रक्चर, स्किल्ड लेबर और विदेशी निवेश के कड़े कानून बड़ा रोड़ा है. 
वाजिब है चीन की बौखलाहट
चीन की ये बौखलाहट बेवजह नहीं है. चीन चाहे लाख दावे करे कि भारत उसकी जगह नहीं ले सकता लेकिन सच ये है कि तमाम विदेशी कंपनियों ने चीन को छोड़ने का मन बना लिया है. इसकी वजह से चीन को बड़ा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ेगा.
दरअसल चीन जानता है कि दुनिया में अगर उसे कोई टक्कर दे सकता है तो वो है भारत. यही वजह है कि चीन से विदेशी कंपनियों के एक्ज़िट से वो घबरा गया है. ग्लोबल टाइम्स ने भारत के मेक इन इंडिया कार्यक्रम पर सवाल उठाकर. आर्थिक सुधारों को लागू न करने की बात कहकर ये साबित करने की कोशिश की है कि भारत चीन की जगह नहीं ले सकता. 
लेकिन सच ये है कि मोदी सरकार ने लगातार आर्थिक सुधार और कारोबार आसान बनाने के लिए कानून बनाए हैं. मोदी सरकार लगातार विदेशी निवेशकों को लुभाने में जुटी है. इसके लिए सरकार ने कई बड़े ऐलान भी किए हैं.
मोदी सरकार ने उठाए हैं ये कदम
-बीते साल कॉर्पोरेट टैक्स को घटाकर 25.17 फीसदी कर दिया था.
-वहीं नई फैक्ट्रियां लगाने वालों के लिए ये टैक्स घटकर 17 फीसदी पर ला दिया गया है. ये टैक्स दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे कम है. 
-सरकार ने मिनिमम अल्टरनेट टैक्स यानी MAT में राहत दी है. कंपनियों को अब 18.5 फीसदी की बजाय 15 फीसदी की दर से मैट देना होता है. MAT उन कंपनियों पर लगाया जाता है जो मुनाफा तो कमाती हैं लेकिन रियायतों की वजह से इन पर टैक्‍स की देनदारी कम होती है.
-भारत ने अमेरिकी और जापान की कंपनियों को बताया है कि उन्हें वापस अपने देश जाने के बजाय भारत आना चाहिए जहां उन्हें सस्ती ज़मीन और स्किल्ड लेबर मिल सकता है जो उनके अपने देश से कहीं सस्ता होगा.
-भारत ने इन कंपनियों को श्रम कानूनों में बदलाव का आश्वासन भी दिया है जो विदेशी कंपनियों के भारत आने में बड़ा रोड़ा रहा है.
-सरकार ई कॉमर्स कंपनियों की डिजिटल पेमेंट पर लिए जाने वाले टैक्स को माफ करने पर भी विचार कर रही है...

जाहिर है मोदी सरकार कोरोना संकट काल में आए इस मौके को छोड़ना नहीं चाहती. वो भी तब जब दुनियाभर के देश चीन से खफा हैं और उसे सबक सिखाने के मूड में हैं. और यही चीन की बौखलाहट का कारण है.

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