Farmers Protest: आंदोलनजीवियों ने छीनी हजारों गरीबों की रोजी-रोटी
दिल्ली बॉर्डर पर 3 महीने से सड़क पर कब्जा कर बैठे आंदोलनकारियों की वजह से हजारों गरीबों की रोजी रोटी छिन गई है. इसके चलते करीब 7 हजार दुकानें बंद हैं. साथ ही सैकड़ों फैक्ट्रियों पर ताला लगा है.
नई दिल्ली: दिल्ली की पश्चिमी सीमा को हरियाणा के बहादुरगढ़ से मिलाता है टिकरी बॉर्डर. जहां पिछले 3 महीने से किसान आंदोलन के नाम पर आंदोलनजीवी रास्ता रोककर बैठे थे. अब वहां सन्नाटा पसरा हुआ है. अब वहां ढूंढने से भी कोई नजर नहीं आ रहा है.
अब आंदोलनजीवियों के मंच से लेकर उसके सामने 100 मीटर तक बिछे मैट पर एक भी किसान नजर नहीं आ रहा. सवाल है कि टिकरी बॉर्डर के टेंटों में इतना सन्नाटा क्यों है?
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टिकरी बॉर्डर पर आंदोलनजीवियों के प्रोपेगैंडा पर यकीन कर जो भोले भाले किसान अपनी खेती, अपने मवेशी, अपना परिवार और अपना गांव छोड़कर किसान आंदोलन के नाम पर किसानों की आवाज बुलंद करने टिकरी बॉर्डर पहुंचे थे, अब 3 महीनों में उन्हें समझ आ गया कि किसान आंदोलन के नाम पर उन्हें बरगलाया जा रहा है.
उन्हें पता चल गया कि असली किसानों के चेहरों की आड़ में आंदोलनजीवी अपनी रोटी सेंक रहे हैं और केंद्र सरकार को ब्लैकमेल करने की साजिश रच रहे हैं. लिहाजा, अब असली किसान अपने गांव को लौट गया है और आंदोलनजीवियों का मंच सूना पड़ गया है.
इस आंदोलन से असली किसान का भरोसा तो उसी दिन उठ गया था. जिस दिन टिकरी बॉर्डर के हिंसाजीवियों ने लाल किले पर पहुंचकर देश का अपमान कर दिया था.
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खत्म हो रहा पैसा
आंदोलनजीवियों ने गांवों से किसानों को ले आकर यहां रोके रखने के लिए पूरा इंतजाम किया था. सुबह, दोपहर, शाम फ्री की चाय बंटती थी. तीनों पहर फ्री में भोजन मिलता था. मनोरंजन का पूरा इंतजाम था.
रही सही कसर दिल्ली सरकार ने फ्री वाई फाई लगाकर पूरी कर दी थी लेकिन मेहनतकश किसान बैठकर रोटी नहीं तोड़ सकता. उसे तो करके खाने की आदत है, सो भला फ्री के इंतजामों के बूते उन्हें टिकरी बॉर्डर पर कितने दिन रोककर रखा जा सकता था.
टिकरी बॉर्डर पर अब न ढपली बजाने वाले बचे हैं, न मंच सजाने वाले बचे हैं, न किसानों को बरगलाने वाले बचे हैं, न चाय पानी पिलाने वाले बचे है. टिकरी बॉर्डर पर कथित किसान आंदोलन की अगुआई कर रहे पंजाब के किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां भी इन दिनों टिकरी बॉर्डर से गायब हैं.
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दरअसल, 90 दिनों में आंदोलनजीवियों की जेब खाली हो गई है और जब जेब खाली हुई तो मंच खाली हो गया. भीड़ को जुटाने के लिए पैसा चाहिए, भीड़ को रोककर रखने के लिए पैसा चाहिए, जो अब आंदोलनजीवियों के पास बचा नहीं है.
हजारों मजदूर बेरोजगार
टिकरी बॉर्डर पर अब कुछ बचा है तो वो है तिरपाल से ढके ट्रैक्टर. जिनकी संख्या दिखाकर आंदोलनजीवी आंदोलन को जिंदा रखने का प्रोपेगैंडा कर रहे हैं. टिकरी बॉर्डर पर फंड जुटाने के लिए अब आंदोलनजीवियों ने दुकानें खोल ली हैं. हुक्का पानी की दुकान, राशन की दुकान, टायर पंचर, चाय, और कंस्ट्रक्शन मैटेरियल की दुकान.
स्थानीय लोगों का कहना है कि टिकरी बॉर्डर पर जमा हुए 80 फीसदी किसान अपने गांवों को लौट चुके हैं. अब वो जल्द ही अपने अपने ट्रैक्टर भी यहां से ले जाएंगे, जिसके बाद आंदोलनजीवी अकेले पड़ जाएंगे. फिर उनकी हालत भी ऐसी हो जाएगी कि न माया मिली न राम.
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यही नहीं दिल्ली बॉर्डर पर 3 महीने से सड़क कब्जा कर बैठे आंदोलनकारियों की वजह से हजारों गरीबों की रोजी रोटी छिन गई है. टिकरी बॉर्डर पर 3 महीने से करीब 7 हजार दुकानें बंद हैं, सैकडों फैक्ट्रियां बंद हैं, जिसकी वजह से फैक्ट्री मालिक और दुकानदार दिवालिया होने के कगार पर आ गए हैं और प्रवासी मजदूर अपने गांवों को पलायन करने के लिए मजबूर हो गए हैं.
दुकानों में लग रहा ताला
बहादुरगढ़ में चलने वाली सैकड़ों फैक्ट्रियां बंद हैं. टिकरी बॉर्डर पर एक मोबाइल शॉप का किराया 12 हजार रुपये प्रति महीना है. 3 महीने से आंदोलनजीवियों की वजह से ये दुकान ठप है क्योंकि रास्ता जाम है इसलिए ग्राहक उसकी दुकान की तरफ नहीं आते. टिकरी बॉर्डर पर दुकानदार सचिन ने तो अपनी एक दुकान में ताला मार दिया है. दूसरी दुकान भी जल्द बंद करने वाले हैं.
यहां एक छोटा सा रेस्टोरेंट चला रहे राहुल का कहना है कि 2 महीने से रेस्टोरेंट घाटे में चल रहा है. उनका पूरा दिन ग्राहकों के इंतजार में गुजर जाता है. जनरल स्टोर के साथ साथ पनीर की ज्यादा बिक्री करने वाले मदन को भी आंदोलनजीवियों ने बर्बादी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है.
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मदन, 3 महीने से दुकान का किराया अपनी जमापूंजी से भर रहे हैं. आंदोलनजीवियों की वजह से टिकरी बॉर्डर पर सारा कारोबार ठप पड़ा हुआ है. होटल मालिक ग्राहकों के लिए तरस रहे हैं. पेट्रोल पंप पर कोई गाड़ी पेट्रोल भराने नहीं पहुंचती. फार्म हाउस में भी महफिल जमे 3 महीने बीत गए हैं.
हजारों घरों की रोजी रोटी छीनी
सोचिए जरा कि इन होटलों में, पेट्रोल पंप और फार्म हाउस से जितने घरों की रोजी रोटी चलती थी. आंदोलनजीवियों की वजह से उन सैकडों कर्मचारियों की रोजी रोटी छिन गई. सबसे बुरा हाल तो प्रवासी मजदूरों का हुआ है.
उनकी हालत देखकर मकान मालिकों को तरस आता है, स्थानीय लोगों को तरस आता है, पुलिसवालों को तरस आता है लेकिन आंदोलनजीवियों को कोई फर्क नहीं पड़ता. फर्क सिर्फ इतना है कि टिकरी बॉर्डर पर एक तरफ लंगर के चूल्हों में आग जल रही है. दूसरी तरफ प्रवासी मजदूरों के पेट में भूख की आग जल रही है.
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बिहार के गया से ममता का पति पूरे परिवार के साथ रोजी रोटी की तलाश में दिल्ली आया था. एक फर्नीचर फैक्ट्री में मजदूरी से घर का चूल्हा जल रहा था, बेटी स्कूल में पढ़ रही थी, अब घर का चूल्हा और बेटी की पढ़ाई दोनों को चलाना मुश्किल हो गया है.
प्रवासी मजदूर लौट चुके हैं गांव
ममता की तरह सोनी के पति भी बिहार के वैशाली से रोजगार की तलाश में दिल्ली आए थे, किसी फैक्ट्री में गाड़ी चलाने का काम मिला लेकिन आंदोलनजीवियों ने उन्हें भी घर पर बैठने के लिए मजबूर कर दिया है. यहां एक बिल्डिंग में रहने वाले सभी लोग प्रवासी मजदूर हैं जिनमें से ज्यादातर अपने गांव वापस लौट चुके हैं, जो अब तक नहीं गए वो भी गांव जाने की तैयारी करने लगे हैं.
जब से आंदोलनजीवियों ने टिकरी बॉर्डर पर कब्जा जमाया है, तब से बहादुरगढ़ से आने वाले पानी के टैंकरों की सप्लाई बंद हो गई है. ये प्रवासी मजदूर पानी की जरूरतों के लिए उन्हीं टैंकरों पर निर्भर रहते थे. अब टिकरी बॉर्डर पर तैनात पुलिसवाले इन प्रवासी मजदूरों को इतना पानी दे देते हैं कि इनकी जरूरत पूरी हो जाए.
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दिल्ली के सीएम केजरीवाल को आंदोलनजीवियों की सुख सुविधा का पूरा ख्याल है. धरनास्थल पर उन्होंने फ्री वाई फाई इनस्टॉल कराया है. लेकिन प्रवासी मजदूरों को पानी तक मुहैया नहीं कराया.
केजरीवाल कर रहे सियासत
सियासी फायदे के लिए आंदोलनजीवियों को भरपूर सपोर्ट कर रहे केजरीवाल को इन प्रवासी मजदूरों से भला क्या वास्ता. केजरीवाल तो इन्हें दिल्ली पर बोझ मानते हैं. उन्हें भला प्रवासी मजदूरों की फिक्र क्यों होगी.
केजरीवाल को तो फिक्र होगी उन आंदोलनजीवियों की, जिनकी जेबें अब खाली हो चुकी है, स्थिति डंवाडोल हो चुकी है, तंबू उखड़ने लगे हैं, इसीलिए केजरीवाल भी परेशान होने लगे हैं. हाल ही में टिकैत से मुलाकात का कारण भी दिल्ली को बंधक बनाए रखने की मियाद को आगे बढ़ाना था ताकि केजरीवाल इसका सियासी फायदा उठा सके.
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अगर केजरीवाल, आंदोलनजीवियों को सुविधाएं देना बंद कर दें तो दिल्ली के बॉर्डर हफ्ते में खाली हो जाएंगे इसलिए दिल्ली को बंधक बनाए रखने में केजरीवाल सरकार भी उतनी ही गुनहगार है, जितने कि आंदोवलनजीवी गैंग.
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