नई दिल्ली: प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात में कोरोना की वैक्सीन को लेकर बड़े संकेत दिए हैं. मोदी ने कहा कि कोरोना वैक्सीन पर भारत में हो रहे काम पर दुनिया की नजर है. इससे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी कह चुके हैं कि भारत और अमेरिका मिलकर कोरोना वायरस का टीका विकसित करने में जुटे हुए हैं. इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत और अमेरिका मिलकर कोविड-19 की वैक्सीन बनाने में काफी आगे बढ़ चुके हैं. जिसके नतीजे जल्द सामने आ सकते हैं.
कोरोना की वैक्सीन का शुभ मुहूर्त अब दूर नहीं !
पीएम मोदी ने मन की बात में कोरोना की वैक्सीन को लेकर सिर्फ 25 शब्दों में अपनी बात रखी लेकिन इससे बड़े संकेत मिल रहे हैं. आपको एक-एक कर उसके बारे में बताएंगे. उससे पहले पीएम मोदी ने इस पर क्या कहा ये जान लीजिए.
प्रधानमंत्री ने कहा - "कोरोना की वैक्सीन पर हमारी labs में जो काम हो रहा है उस पर तो दुनियाभर की नज़र है और हम सबकी आशा भी." इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने 14 अप्रैल को वैक्सीन को लेकर देश के युवा वैज्ञानिकों से बड़ी अपील की थी. तब प्रधानमंत्री ने कहा था, "आज भारत के पास भले सीमित संसाधन हों लेकिन मेरा भारत के युवा वैज्ञानिकों से विशेष आग्रह है कि विश्व कल्याण के लिए, मानव कल्याण के लिए आगे आएं, कोरोना की वैक्सीन बनाने का बीड़ा उठाएं."
पीएम मोदी ने 47 दिन बाद फिर से वैक्सीन पर कुछ कहा है तो इससे साफ तौर पर अहम संदेश मिलता है. पीएम ने बात तब कही है जबकि भारत के कई लैब्स वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया में काफी आगे बढ़ चुके हैं. तो क्या ये कदम कामयाबी की ओर हैं? इस सवाल का जवाब अभी भले नहीं मिल रहा हो लेकिन आनेवाले दिनों में जल्द ही इस पर ख़ुशख़बरी आ सकती है.
प्री क्लीनिकल स्टेज में है भारत की 6 वैक्सीन
WHO की तरफ से 30 मई को जारी 'DRAFT landscape of COVID-19 candidate vaccines' के मुताबिक, दुनिया भर में 121 वैक्सीन प्री क्लीनिकल स्टेज में हैं. जिनमें भारत की 6 वैक्सीन शामिल हैं. ये भारत की अलग-अलग दवा कंपनियों की वैक्सीन हैं.
ज़ाइडस कैडिला हेल्थकेयर की दो वैक्सीन, भारत बायोटेक ग्रुप की थॉमस जेफरसन यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोन्सिन –मैडिसन और फ्लूजेन दवा कंपनी के साथ मिलकर बनाई जा रही दो अलग-अलग वैक्सीन भी प्री क्लीनिकल स्टेज में पहुंच चुकी है.
इसके साथ ही इंडियन इम्युनोलॉजिकल्स लिमिटेड की ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी की साझेदारी में एक वैक्सीन और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोडेजेनिक्स के साथ मिलकर बनाई जा रही वैक्सीन प्री क्लीनिकल स्टेज में है. भारतीय वैज्ञानिकों की कोशिश साल भर के अंदर कोविड-19 का टीका तैयार कर लेने की है.
अलग-अलग तकनीक से बनाई जा रही है भारतीय वैक्सीन
ज़ाइडस कैडिला ग्रुप की दोनों वैक्सीन अलग-अलग तकनीक से बनाई जा रही है. इसे Replicating Viral Vector और DNA तकनीक से तैयार किया जा रहा है. जबकि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की वैक्सीन Live Attenuated Virus तकनीक से विकसित की जा रही है. इंडियन इम्युनोलॉजिकल्स लिमिटेड भी इसी तकनीक से अपनी वैक्सीन बनाने में जुटा है. जबकि भारत बायोटेक कंपनी NonReplicating Viral Vector और Replicating Viral Vector तकनीक से वैक्सीन बना रही है.
इससे पता चलता है कि भारतीय वैक्सीन कंपनियां जल्द से जल्द कोरोना वायरस का टीका बनाने में किस मुस्तैदी से मिशन मोड में हैं. जैसे ही प्री क्लीनिकल स्टेज में सफलता मिलेगी, दूसरे चरण में इन टीकों का ह्यूमन ट्रायल शुरू होने में देर नहीं लगेगी.
आम तौर पर एक वैक्सीन के पूरी तरह विकसित होने में सालों लगते हैं. लेकिन भारतीय दवा कंपनियों को बायोटेक्नॉलोजी में महारत हासिल है. जिसके दम पर वो जल्द वैक्सीन बनाने का करिश्मा करके दिखा सकती हैं. केंद्र सरकार के मुताबिक देश के कुल 30 अलग-अलग ग्रुप कोरोना की वैक्सीन बनाने में जुटे हैं. आनेवाले दिनों में इनमें से भी कुछ कंपनियों की वैक्सीन प्री क्लीनिकल स्टेज की लिस्ट में शामिल हो सकती हैं.
वैक्सीन बनाने में भारत-अमेरिका के बीच बड़ी साझेदारी
16 मई को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बड़ा बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि भारत और अमेरिका वैक्सीन बनाने में सहयोग कर रहे हैं और हम दोनों देश मिलकर अदृश्य दुश्मन को हरा देंगे.
I am proud to announce that the United States will donate ventilators to our friends in India. We stand with India and @narendramodi during this pandemic. We’re also cooperating on vaccine development. Together we will beat the invisible enemy!
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) May 15, 2020
इससे ये बात साफ हो गई थी कि वैक्सीन को विकसित करने और इसके उत्पादन में भारत और अमेरिका के बीच बड़ी साझेदारी हो चुकी है. थॉमस जेफरसन यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कोन्सिन –मैडिसन की लैब्स की पार्टनरशिप इसे साबित करने को काफी है. यही नहीं अमेरिका की दिग्गज दवा कंपनियां भी भारतीय वैक्सीन कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं. इनमें कोडेजेनिक्स और फ्लूजेन प्रमुख हैं.
वैक्सीन के बड़े पैमाने पर उत्पादन में भारत को महारत
अमेरिका की बड़ी दवा कंपनियां हों या फिर रिसर्च लैब्स. ऑस्ट्रेलिया की ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी हो या वैक्सीन के ट्रायल में जुटी ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, भारत सबकी बड़ी जरूरत है. क्योंकि अगर वैक्सीन का ट्रायल कामयाब रहा तो इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन करना होगा. दुनिया भर के लिए टीके के करोड़ों डोज की जरूरत होगी. इतनी बड़ी तादाद में वैक्सीन का उत्पादन किसी अकेले देश या कंपनी के बस की बात नहीं. जबकि भारत को इसमें महारत है.
भारत दुनिया के टॉप देशों में शामिल है जहां बड़े पैमाने पर टीकों का उत्पादन होता है. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया जैसी वैक्सीन कंपनी इनमें सबसे आगे है. जिसके साथ अभी से ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सटी ने अपनी आनेवाली वैक्सीन को लेकर करार कर लिया है. इसलिए उम्मीद की जा रही है कि भारत उन गिने-चुने देशों में होगा जहां वैक्सीन बनने पर सबसे पहले पहुंचेगी और इसकी कीमत भी दूसरे देशों से सस्ती होगी.
WHO के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉक्टर मिशेल रेयान ने पिछले दिनों कहा था कि हम भारत पर भरोसा करते हैं. भारत के पास विशाल स्तर पर वैक्सीन के उत्पादन की क्षमता है. भारत उच्च गुणवत्ता के टीकों का उत्पादन कर पूरी दुनिया में इसकी आपूर्ति करता है. इससे समझा जा सकता है कि कोरोना के संकट काल में भारत पूरी दुनिया के लिए उम्मीद का कितना बड़ा केंद्र है.
भारत की वैक्सीन दुनिया में सबसे सस्ती होगी
प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात में यूं ही नहीं कहा कि भारत की लैब्स पर दुनिया की नज़र है. दरअसल विकसित देशों के लिए सबसे पहले वैक्सीन बनाकर उसे बेचना एक बड़ा व्यापारिक मिशन होता है. लेकिन भारत के लिए वैक्सीन बनाना मानव कल्याण और गरीब देशों की मदद का एक बड़ा जरिया होता है. सस्ती जेनेरिक दवाओं और वैक्सीन बनाने में भारत विश्व का नंबर वन देश है.
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इसलिए अगर हिन्दुस्तान सबसे पहले वैक्सीन बनाने का करिश्मा कर दिखाता है तो इसे खरीदना दुनिया भर के गरीब देशों की पहुंच में होगा. उन्हें ये संजीवनी बूटी मिलने में देर नहीं लगेगी . इससे भारत का डंका विश्व भर में बजेगा और पूरी मानवता हिन्दुस्तान को सलाम करेगी.
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