नई दिल्ली: भारत में जब से कोरोना महामारी (Covid 19) का प्रकोप बढ़ा है तब से लगातार महामारी अधिनियम का प्रयोग कहीं न कहीं पर किया जा रहा है. कई बार विपक्षी पार्टियों ने सरकार पर इसका दुरुपयोग करने का भी आरोप लगाया है. महामारी अधिनियम के तहत सरकार ने कई कार्यों को कानून जामा पहनाया है. ये कानून 100 साल से भी पहले अस्तित्व में आया था.
संसदीय समिति ने की सिफारिश की समीक्षा
आपको बता दें कि संसद की एक समिति ने करीब सवा सौ वर्ष पुराने महामारी अधिनियम 1897 की समीक्षा और संशोधित करने की सिफारिश की है. कहा गया है कि इस कानून को भविष्य में महामारियों के अप्रत्याशित हमले से उत्पन्न चुनौतियों का मुकाबला करने में पूर्ण रूप से समर्थ बनाना चाहिए.
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संसद के दोनों सदनों में पेश ‘कोविड -19 महामारी का प्रबंधन और संबंधित मुद्दे’ पर गृह मंत्रालय संबंधी संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है,‘‘यद्यपि महामारी अधिनियम 1997 के उपबंधों से कोविड -19 के प्रबंधन में सहायता मिली परंतु यह अधिनियम पुराना पड़ चुका है क्योंकि यह 1918 की स्पैनिश फ्लू से भी काफी पहले अंग्रेजों के काल में बनाया गया था.
सभी महामारियों से लड़ने में हो सक्षम- संसदीय समिति
संसदीय समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि भविष्य में भी महामारी आने की आशंका है. ऐसे में महामारी कानून ऐसा होना चाहिये जो सभी पहलुओं पर खरा उतरता हो. समिति ने यह भी कहा कि Covid 19 महामारी का प्रकोप लंबे समय तक रह सकता है और इस महामारी से निपटने के बारे में परिसंकल्पना तैयार कर ली गई है.
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इसे आपदा प्रबंधन अधिनियम (एनडीएमए) 2005 और महामारी अधिनियम 1897 के उपबंधों के अधीन निर्देशित किया जा रहा है. समिति ने कहा कि महामारी या संक्रमण रोग मूल रूप से आपदा से अलग होते हैं क्योंकि आपदाएं कुछ समय के लिए हर साल आती हैं जबकि महामारियां दशकों बाद या सदी में एक बार ही आती हैं.
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