जानिए कैसे हुई बैंकों के बैंक भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना और क्यों पड़ी इसकी आवश्यकता

साल 1935 में भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई थी, बाद में साल 1949 में इस बैंक का राष्ट्रीयकरण किया गया.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Apr 1, 2021, 07:58 AM IST
  • जानिए क्यों पड़ी आरबीआई की आवश्यकता
  • जानिए कैसे हुआ आरबीआई का राष्ट्रीयकरण
जानिए कैसे हुई बैंकों के बैंक भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना और क्यों पड़ी इसकी आवश्यकता

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना साल 1935 में 1 अप्रैल के दिन ही हुई थी. आरंभिक दौर में रिजर्व बैंक का केंद्रीय कार्यालय कोलकाता में स्थपित किया गया था. जिसे साल 1937 में मुंबई स्थानांतरित किया गया था. रिजर्व बैंक के गवर्नर केंद्रीय कार्यालय से ही मौद्रिक नीतियों का संचालन करते हैं.

रिजर्व बैंक की स्थापना के समय यह एक निजी संस्थान था. साल 1949 में इस बैंक का राष्ट्रीयकरण किया गया, जिसके बाद से यह पूरी तरह से भारत सरकार के स्वामित्व के तहत आती है.

कैसे हुई बैंक की स्थापना

साल 1926 में इंडियन करंसी एंड फाइनैंस से जुड़े हुए रॉयल कमीशन ने एक सेंट्रल बैंक बनाने का सुझाव दिया. इस कमीशन को हिल्टन यंग कमीशन के नाम से भी जाना जाता है.

इस सेंट्रल बैंक की स्थापना का मुद्रा और क्रेडिट को नियंत्रित करने के उद्देश्य से की गई थी. देशभर में काम कर रहे बैंकिंग सिस्टम को नियंत्रित करने के लिए भी इस सेंट्रल बैंक की स्थापना की गई थी

साल 1934 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट के तहत भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई थी. बाद में साल 1935 से इस बैंक ने कार्यान्वन शुरू किया था.

भविष्य में बैंकिंग सिस्टम में सुधार को ध्यान में रखते हुए रिजर्व बैंक की भूमिकाओं में बदलाव होता रहा.

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क्यों पड़ी सेंट्रल बैंक की आवश्यकता

रिजर्व बैंक की स्थापना से पहले भारत में कई तरह की मुद्राएं चलन में थीं. रिजर्व बैंक का उद्देश्य था कि भारत में एक मानक मुद्रा चलाई जाए, ताकि देशभर के लोग आपस में व्यापार कर सकें.

रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने उस काल में एक मानक मुद्रा चलन में लाने का प्रयास किया. मुर्शिदाबाद का सिक्का सैद्धांतिक रूप से कई वर्षों तक एक मानक मुद्रा के रूप में चलन में रहा.

उस दौर में चलने वाले सिक्के की उसके वजन के आधार पर उसकी मानकता तय की जाती थी. अगर सिक्के का वजन तय मानक वजन से कम होता था, तो सिक्काधारक को अलग से चार्ज देना पड़ता था और उस सिक्के को मानक सिक्के से बदल दिया जाता था.

वर्तमान दौर में भी अगर आप बैंकों में फटे-पुराने नोट बदलने जाते हैं, तो आपसे इन नोटों को बदलने के लिए कुछ शुल्क वसूल किया जाता है.

कैसे हुआ आरबीआई का राष्ट्रीयकरण

भारतीय रिजर्व बैंक के गठन से लगभग ढाई सौ वर्षों पहले एक सेंट्रल बैंक की मांग जोर पकड़ने लगी थी. साल 1773 में बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स ने 'जनरल बैंक ऑफ बंगाल एंड बिहार' का प्रस्ताव रखा था.

इस बैंक का उद्देश्य था कि यह एक सेंट्रल बैंक के रूप में विभिन्न जिलों से एकत्रित किए गए राजस्व के संकलन को एक जगह रखना. इसके अलावा इस बैंक का उद्देश्य था के मानक सिक्के को प्रचलन में लाना.

ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस बैंक को मंजूरी दे दी थी, लेकिन दो साल के भीतर ही यह बैंक बंद हो गया. हालांकि इस बैंक से ईस्ट इंडिया कंपनी को काफी मुनाफा हुआ.

इसके बाद आने वाले वर्षों में कई बैंक खुले. साल 1931 में संपन्न हुए गोलमेज सम्मलेन में पहली बार सेंट्रल बैंक की मांग उठी थी. इस सम्मलेन के बाद सेंट्रल बैंक की स्थापना के लिए एक समिति का गठन किया गया था.

काफी बैठकों के बाद साल 1935 में पांच करोड़ की नकद राशि के साथ भारतीय रिजर्व बैंक का गठन हुआ. इसमें मात्र दो लाख बीस हजार रुपये सरकार का निवेश था, अर्थात यह सेंट्रल बैंक पूरी तरह से एक प्राइवेट बैंक था, जिसपर बैंक ऑफ इंग्लैंड का नियंत्रण था.

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब कई बैंकों के राष्ट्रीयकरण का दौर शुरू हुआ, तब इसी दौरान साल 1945 में बैंक ऑफ इंग्लैंड का राष्ट्रीयकरण हुआ. इसके बाद साल 1949 में भारतीय रिजर्व बैंक का भी राष्ट्रीयकरण हुआ.

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