क्रिप्टोकरंसी से सुप्रीम कोर्ट ने रोक हटाई, जानिए इससे जुड़ी जरूरी बातें

2018 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI ) ने क्रिप्टोकरंसी प्रतिबंध लगा दिया था. भारत में क्रिप्टोकरंसी का कारोबार करने वालों की संस्था इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने इस प्रतिबंध को चुनौती देते हुए कहा था कि भारत सरकार ने क्रिप्टोकरंसी पर रोक नहीं लगाई है, लिहाजा उन्हें इसमें व्यापार करने की अनुमति दी जाए. उन्होंने कहा कि बिना सरकार के कहे या निर्णय लिए हुए रिजर्व बैंक को अपनी ओर से ऐसा आदेश देने का अधिकार नहीं था.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Mar 4, 2020, 03:23 PM IST
    • सरकार ने कभी इस पर रोक नहीं लगाई, लेकिन इसे लेकर ऊहापोह की स्थिति के बीच आगाह करती रही थी.
    • क्रिप्टोकरंसी की शुरुआत साल 2009 में बताई जाती है. इसकी शुरुआत बिटकॉइन से ही मानी जाती है.
क्रिप्टोकरंसी से सुप्रीम कोर्ट ने रोक हटाई, जानिए इससे जुड़ी जरूरी बातें

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने आभासी करंसी (क्रिप्टो करंसी) पर RBI (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) की ओर से लगी रोक हटा दिया है. इस तरह से भारत में अब क्रिप्टोकरंसी में व्यापार करने की अनुमति मिल गई है.  सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने इस मामले में फैसला सुनाया. इस बेंच में जस्टिस रोहिंगटन फली नरीमन, जस्टिस आर रवींद्र भट्ट, जस्टिस वी सुब्रह्मण्यन शामिल रहे. रिजर्व बैंक ने इस तरह की करंसी जिन्हें आभासी कहा जाता है उस पर रोक लगा दी थी. क्या है क्रिप्टोकरंसी, इसे ब्यौरेवार समझते हैं.

2018 में RBI ने लगाया था प्रतिबंध
2018 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI ) ने क्रिप्टोकरंसी प्रतिबंध लगा दिया था. भारत में क्रिप्टोकरंसी का कारोबार करने वालों की संस्था इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने इस प्रतिबंध को चुनौती देते हुए कहा था कि भारत सरकार ने क्रिप्टोकरंसी पर रोक नहीं लगाई है, लिहाजा उन्हें इसमें व्यापार करने की अनुमति दी जाए. उन्होंने कहा कि बिना सरकार के कहे या निर्णय लिए हुए रिजर्व बैंक को अपनी ओर से ऐसा आदेश देने का अधिकार नहीं था.

रिज़र्व बैंक की दलील थी कि यह कदम बैंकिंग व्यवस्था को किसी संभावित नुकसान से बचाने के लिए उठाया गया था.

हालांकि जेटली के भाषण से सरकार का रुख समझा जा सकता था
सरकार ने कभी इस पर रोक नहीं लगाई, लेकिन इसे लेकर ऊहापोह की स्थिति के बीच आगाह करती रही थी. मोदी सरकार में जब वित्त मंत्री अरुण जेटली हुआ करते थे तब अपने एक बजट भाषण में उन्होंने क्रिप्टो करंसी का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि सरकार क्रिप्टो करेंसी लीगल टेंडर या क्वाइन पर विचार नहीं करती है. अवैध गतिविधियों को धन उपलब्ध कराने अथवा भुगतान प्रणाली के एक भाग के रूप में इन क्रिप्टो परिसंपत्तियों के प्रयोग को समाप्त करने के लिए सभी प्रकार का कदम उठाएगी.

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सरकार इसके खतरों के प्रति आगाह करती रही है
वित्त मंत्रालय ने पहले भी बिटक्वॉयन समेत तमाम वर्चुअल करेंसी के खतरे के प्रति लोगों को आगाह किया था. साथ ही इसे एक तरह का पोंजी स्कीम भी माना है जिसमें भारी मुनाफे के लालच में लोग पैसा लगाते हैं, लेकिन बाद में मूल के भी लाले पड़ जाते है. दरअसल इस करेंसी को सरकार जारी नहीं करती है, तो इसे नियंत्रित या रेगुलेट भी नहीं कर सकती हैं. भले ही इसके नाम में करेंसी या क्वाइन क्यों न जुड़ा हो, लेकिन दुनिया के किसी भी केंद्रीय बैंक (चाहे वह भारतीय रिजर्व बैंक ही क्यों न हो) ने इसे जारी नहीं किया है.

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इसलिए कहते हैं क्रिप्टोकरंसी या आभासी मुद्रा
आभासी मुद्रा कहने के पीछे की ठोस वजह है कि यह मुद्रा कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर की तरह हैं. इसे हम बैंक, लॉकर, घर या जेब में नहीं रख सकते हैं. यह कोई कागज का टुकड़ा या धातु का सिक्का भी नहीं है. यह केवल इलेक्ट्रॉनिकली स्टोर होती है. अगर किसी के पास कोई भी क्रिप्टोकरंसी (जैसे बिटकॉइन) है तो वह आम मुद्रा की तरह ही खरीद-फरोख्त कर सकता है. सरकार या किसी भी नियामक ने किसी भी एजेंसी, संस्था, कंपनी या बाजार मध्यस्थ को बिटकॉइन या कोई भी क्रिप्टोकरंसी जारी करने का लाइसेंस नहीं दिया है.

यह भी जानना जरूरी है, कबसे हुई शुरुआत
क्रिप्टोकरंसी की शुरुआत साल 2009 में बताई जाती है. इसकी शुरुआत बिटकॉइन से ही मानी जाती है. यह एक जापानी करंसी है और इसे शुरू करने वाली इसको जापान के सतोषी नाकमोतो नाम के एक इंजीनियर ने बनाया था. शुरुआत में यह इतनी प्रचलित नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे इसके रेट ऊपर चढ़ने लगे. फिर यह सफल होती चली गई. देखा जाए तो 2009 से लेकर वर्तमान समय तक लगभग 1000 प्रकार की क्रिप्टो करेंसी बाजार में मौजूद हैं, जो पियर टू पियर इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम के रूप में कार्य करती हैं. 

RBI खुद भी लाने वाली थी क्रिप्टोकरंसी
अप्रैल 2018 में रिजर्व बैंक ने एक कमेटी बनाने का ऐलान किया था जो आरबीआई के वर्चुअल करेंसी लाने के बारे में सुझाव देगा. बैंक का कहना है कि ये मौजूदा कागजी मुद्रा के अतिरिक्त होगी. कागजी मुद्रा की छपाई वगैरह पर खर्च भी काफी होता है जबकि वर्चुअल करेंसी को लेकर इस तरह की परेशानी नहीं होगी. फिलहाल, अभी स्ष्पट नहीं है कि यह वर्चुअल करेंसी कब आएगी.

क्या है क्रिप्टो करेंसी से होने वाले नुकसान?
इंटरनेट करेंसी होने की वजह से इसे आसानी से हैक किया जा सकता है. इस करेंसी को किसी भी सेंट्रल एजेंसी द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता है इसलिए किसी ग्राहक का पैसा डूबने या विवाद को हल करने के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं है. बिटकॉइन के जरिए लेन-देन करने वालों को लीगल और फाइनेंशियल रिस्क उठाना पड़ता है. दरअसल, इस करेंसी को लेकर उठने वाली समस्याओं को हल करने की कोई उचित व्यवस्था नहीं है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो क्रिप्टोकरंसी का इस्तेमाल गैरकानूनी और आतंकवादी गतिविधियों के लिए भी किया जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट का आदेश तो ठीक, लेकिन विवादों का क्या
सुप्रीम कोर्ट ने भले ही रिजर्व बैंक के आदेश को निरस्त कर क्रिप्टोकरंसी को मंजूरी दे दी है, लेकिन अब इस तरह की अर्थव्यवस्था के सामने एक यक्ष प्रश्न उठ खड़ा हुआ है. दरअसल, आभासी मुद्रा होने के कारण सरकार इसे रेगुलेट नहीं कर सकती, रिजर्व बैंक इस पर नियंत्रण नहीं कर सकती. ऐसे में जहां साइबर फ्रॉड के रोज नए मामले सामने आ रहे हैं तो इस तरह के विवाद की स्थिति में ग्राहक कहां और किसके पास जाएगा? कानूनी और फाइनेंशियल रिस्क के तहत क्रिप्टोकरंसी पर भरोसा कर पाना कैसे और कितना आसान हो पाएगा यह बड़ा सवाल है.

 

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