अखिलेश यादव का इस्तीफा यूपी में सपा के लिए बनेगा संजीवनी? ये हैं 3 मुख्य प्लान

Akhilesh Yadav New Plan for UP: उत्तर प्रदेश चुनाव में अखिलेश की सपा को मिली करारी हार का नतीजा ही है जो अखिलेश यादव ने इससे सबक लेकर विधायक रहने का ही फैसला लिया है. उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर ये संकेत दिया है कि कहीं न कहीं इसके पीछे उनके कुछ बड़े प्लान हैं. इस रिपोर्ट में समझिए..

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Mar 22, 2022, 03:47 PM IST
  • लोकसभा से इस्तीफे के पीछे क्या है अखिलेश का प्लान?
  • अखिलेश यादव ने क्यों लोकसभा छोड़ विधानसभा को चुना?
अखिलेश यादव का इस्तीफा यूपी में सपा के लिए बनेगा संजीवनी? ये हैं 3 मुख्य प्लान

नई दिल्ली: अखिलेश यादव ने लोकसभा से इस्तीफा देने के साथ-साथ सियासी महकमे को एक बड़ा संकेत दिया है. उत्तर प्रदेश चुनाव में जीत का दावा कर रहे अखिलेश के हाथों जब करारी शिकस्त लगी, तो कहीं न कहीं उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हुआ होगा. विधानसभा में रहने के इस फैसले के पीछे अखिलेश के कई सारे प्लान छिपे हैं.

अखिलेश ने क्यों चुना विधानसभा?

उत्तर प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी की करारी हार झेलनी पड़ी थी, जिसकी कई सारी वजहें हैं, लेकिन इनमें अखिलेश यादव की ही कुछ प्रमुख गलतियां शामिल थी. अब अखिलेश ने लोकसभा छोड़ विधानसभा को चुनने का फैसला लेकर अपनी गलतियों को सुधारने की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया है. आपको अखिलेश के उन 3 प्लान को समझाते हैं, जिसके चलते उन्होंने विधायकी को चुना.

1). विधानसभा में अब सीएम योगी से दो-दो हाथ करेंगे अखिलेश

समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में तगड़ा झटका लगा, कई सीटों पर सपा ने भाजपा को कांटे की टक्कर दी. मगर चुनावी परिणाम आया तो सपा गठबंधन 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सिर्फ 125 सीटों पर जीत हासिल कर पाई. चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, लेकिन इस बार के चुनाव में सीधे भाजपा बनाम सपा (BJP Vs SP) की फाइट देखने को मिली.

वैसे तो अखिलेश ने कई सारी गलतियां की, लेकिन अपनी गलतियों को सुधारने के लिए ही उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा देकर विधानसभा में रहने का निर्णय लिया. इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि अब तक अखिलेश यादव चुनावी मैदान में योगी आदित्यनाथ से दो-दो हाथ कर रहे थे, लेकिन अब वो अपनी पार्टी की तरफ से विधानसभा में भी योगी से दो-दो हाथ करेंगे.

अखिलेश विपक्ष में बैठकर अब सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे और कई सारे मुद्दों को उठाएंगे. जो आने वाले वक्त में उनके लिए फायदे का सौदा साबित होगा. अखिलेश बतौर विधायक पहली बार विधानसभा में नजर आएंगे. पार्टी के विधायकों को मजबूत करने में अखिलेश का ये फैसला कारगर साबित हो सकता है.

2). उत्तर प्रदेश में रहकर पार्टी को मजबूत करने की होगी रणनीति

वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद अखिलेश यादव ने 2019 में लोकसभा का चुनाव लड़ा था. 2019 के बाद अखिलेश यादव का डेरा दिल्ली हो गया था. अब अखिलेश यादव लखनऊ में ही ज्यादा वक्त बिता सकेंगे. उत्तर प्रदेश में रहकर वो अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए रणनीति अपना सकते हैं.

2 साल बाद ही देश में लोकसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में पार्टी कार्यकर्ताओं पर इस हार का बुरा असर पड़ सकता है. अखिलेश को अपनी हार से सबक लेकर उत्तर प्रदेश में रहकर बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं को हौसले को मजबूत करना होगा.

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आगामी लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव के लिए अब ज्यादा आसानी होगी कि वो यूपी में रहकर अपनी पार्टी को मजबूत बनाने की रणनीति पर काम करें. 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों से भाजपा की लहर को समझना आसान है, ऐसे में विपक्षी पार्टियों के लिए 2024 काफी अहम होगा. यूपी की 80 लोकसभा सीटों पर हर पार्टी की नजर होती है. ऐसे में सपा एक क्षेत्रीय पार्टी है और अखिलेश को इसका फायदा उठाने के लिए काम करना चाहिए.

3). दूरगामी सोच के साथ 5 साल एक्टिव रहकर करना होगा काम

अखिलेश यादव और उनके जैसे नेताओं की चुनावों में हार की सबसे बड़ी वजह जो होती है वो है उनका ढुलमुल रवैया.. आपको याद दिला दें, 2017 में अखिलेश यादव की सपा की करारी हार हुई थी, उसके बाद अखिलेश डिएक्टिवेट यानी उदासीन हो गए. अपने हार का ठीकरा कांग्रेस से हुए गठबंधन पर फोड़ दिए. 2019 में लोकसभा चुनाव आया तो उन्होंने नया गठबंधन बनाया. मायावती की हाथी पर साइकिल की सवारी करने वाले अखिलेश को लोकसभा चुनाव में भी हार का मुंह देखना पड़ा.

गठबंधन से मायावती को तो खूब फायदा हुआ, लेकिन अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव ही कन्नौज से चुनाव हार गईं. अबकी बार फिर से ठीकरा बसपा के माथे फूटा. अखिलेश की सपा ने आरोप लगाया कि सपा का वोट बसपा को मिला, लेकिन बसपा के लोगों ने सपा को वोट नहीं दिया. खींचतान की सियासत के बीच फिर से अखिलेश यादव साइलेंट हो गएं. 5 साल तक अखिलेश की पार्टी सोती रही और खुद अखिलेश यादव अपनी हार से उबर ही नहीं पाए. जब चुनाव नजदीक आया तो नई लहर दौड़ पड़ी या फिर यूं कहें कि अखिलेश ब्रिगेड की नींद उस वक्त खुली जब चुनाव नजदीक आया.

यदि अखिलेश यादव को अपनी पार्टी को उत्तर प्रदेश की सियासत में दोबारा जिंदा करना तो उन्हें 5 साल एक्टिव रहकर काम करना होगा. क्योंकि सिर्फ चुनाव में आकर रैलियों में भीड़ देखकर हार जीत नहीं तय होती है. कहीं न कहीं अखिलेश यादव को ये बाद विधानसभा चुनाव से जरूर समझ आ गई होगी.

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