नई दिल्ली: एक नज़र में ये पंक्ति बुरी लग सकती है, पूछा जा सकता है ग़द्दार कौन? और कश्मीर (Kashmir) में नया क्या है? लेकिन बदलते कश्मीर में अभी बहुत कुछ बदलना है, जिसका आधार तैयार हुआ धारा 370 के ख़ात्मे के साथ, पूरे जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) को भारत (India) की मुख्य धारा में मिलाकर. इस आधार का भी बहुत विरोध किया गया, कहा गया कि ऐसा करना आत्मघाती है और कश्मीर के लोगों की भावनाओं के विपरीत है. पर पिछले साल 5 अगस्त को हुए इस बड़े बदलाव के बाद कश्मीर में हुए पहले बड़े चुनाव और उसके परिणामों ने सारे 'इफ एंड बट' का मुंहतोड़ जवाब दे दिया है.
जम्मू कश्मीर में हुए जिला परिषद काउंसिल (DDC) के चुनाव और परिणामों ने जम्मू कश्मीर ही नहीं पूरे भारत को नई उम्मीदों से भर दिया है. साथ ही बुरी नज़र वालों का मुंह भी काला कर दिया है.
‘गद्दार’ हुए बेनक़ाब.. घाटी में ‘इंकलाब’
ये एक राष्ट्र के रूप में भारत की, सरकार की, पीएम मोदी की नीति और नीयत की जीत है जो लंबे संघर्ष का परिणाम है. इसके मायने कितने बड़े हैं, अब इसे समझिए...जम्मू कश्मीर के लोगों को लेकर 'ग़ुमराह गैंग' की तरफ़ से जो भ्रम फैलाया गया था खुद कश्मीर की अवाम ने उसे करारा जवाब दिया और जनता ने अपने विकास की राह चुनी. डीडीसी चुनाव ना सिर्फ सफलता से संपन्न हुआ बल्कि इसके परिणामों ने राष्ट्रवाद की जड़ों को मज़बूत किया. दरअसल, Article 370 निरस्त किए जाने से पहले जम्मू-कश्मीर में त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली नहीं थी. यानी पहले जन कल्याण के अनेक क़ानून भारत में होकर भी जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होते थे.
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पंचायती राज की वो लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था भी कश्मीर में लागू नहीं थी जो शासन के दरवाजे सामान्य जनता के लिए खोलती है. लोकतंत्र की संकल्पना को ज्यादा यथार्थ वाला अस्तित्व देती है. ताकि स्थानीय समस्याओं और विकास योजनाओं का समाधान स्थानीय पद्धति से किया जा सके.
क्या है DDC?
जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म होने के बाद जम्मू और कश्मीर केन्द्र शासित प्रदेश बने. भारत सरकार ने अक्टूबर 2020 में एक नोटिफिकेशन के ज़रिए जम्मू कश्मीर पंचायती राज अधिनियम 1989 में संशोधन किया. इससे पहले यहां ज़िला योजना और विकास बोर्ड था. जिसके अध्यक्ष राज्य के मंत्री होते थे, ज़िले से आने वाले सांसद, विधायक, विधान पार्षद बोर्ड के सदस्य होते थे. एक एडिशनल डिप्टी कमिश्नर रैंक का अधिकारी इसका सदस्य सचिव होता था. ये बोर्ड, ग्राम पंचायत ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल (BDC) और जिला पंचायत के काम की मॉनिटरिंग करता था.
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मोदी सरकार के नोटिफिकेशन से इस बोर्ड की जगह DDC को दे दी गई. पहले जहां ज़िला योजना और विकास बोर्ड में मनोनीत और पदेन सदस्य होते थे वहीं अब नई परिषद में निर्वाचित सदस्य होंगे, इस उम्मीद के साथ कि 7 दशकों से कश्मीर की अवाम का चल रहा शोषण अब रुकेगा. इस दिशा में भारत सरकार की प्रतिबद्धता को आप इस बात से समझ सकते हैं कि जब मोदी सरकार ने अक्टूबर 2020 में जम्मू कश्मीर पंचायती राज क़ानून को मंजूरी दी तो साथ में 12 लाख टन सेब की सरकारी खरीद पर भी कैबिनेट ने मुहर लगाई थी. यहां तक कि केन्द्र सरकार ने नेफेड को 2500 करोड़ रुपए के गारंटी कोष को इस्तेमाल करने की भी इजाज़त दी थी.
प्रयोग का पहला चरण सफल: DDC चुनाव क्यों ख़ास हैं?
जम्मू कश्मीर में 8 चरणों में जिला विकास परिषद के चुनाव संपन्न हुए. 28 नवंबर को पहले चरण के बाद से 19 दिसंबर को अंतिम और आठवें चरण के मतदान, सबको मिलाकर औसत कुल 52 फीसदी मतदान हुए. अब इससे ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तरीय पंचायत प्रणाली विकसित होगी. सभी जीते हुए उम्मीदवारों ने जम्मू कश्मीर में विकास की नई इबारत लिखने का संकल्प दोहराया है. जम्मू के 10 और कश्मीर घाटी के 10 जिलों में चुनाव हुए, अब कुल 20 जिलों में 280 निर्वाचित सदस्य डीडीसी को नई शक्ल देंगे.
राष्ट्रवाद की जीत, अलगाववाद परास्त
'ये बात अलग है' कह कर भी कुछ लोग RSS की रोज़ाना की शाखा में खेले जाने वाले खेल 'कश्मीर हमारा है' को खारिज नहीं कर सकते, क्योंकि ये देश की भावना से जुड़ा मुद्दा है. जिस पर आज तक भारत माता के हज़ारों वीर सपूतों ने अपना लहू बहाया, अपनी जान न्यौछावर की है. जम्मू कश्मीर में 1947 के पाकिस्तानी (कबायली वेष में )आक्रमण के वक्त भारत के हजारों वीर सपूत शहीद हुए थे. 1990 से 2018 के बीच सिर्फ 28 सालों में 5123 जवान शहीद हुए. एक तरफ़ अलगाववाद की आतंकी आग और दूसरी तरफ़ उससे लोहा लेते हमारे वीर जवान. और इन सबके बीच स्थानीय स्वार्थी सियासत के वो 'ग़द्दार' जो पाकिस्तान समर्थित आतंक और अलगाववाद को लगातार हवा देकर भारत को ज़ख्म दे रहे थे. आज उन्हें खुद कश्मीर की अवाम ने पराजित कर दिया है.
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आतंकियों के 'अड्डे' पर भगवा विजय ग़ुमराह गैंग को तमाचा
देश के ग़द्दारों का गैंग ऐसे हालात बनाए रखना चाहता था जो भारत के टुकड़े-टुकड़े पर आमादा हो, लेकिन जम्मू कश्मीर के डीडीसी चुनाव परिणामों ने ग़ुमराह गैंग के मंसूबों पर पानी फेर दिया है. यहां तक कि आतंकवाद प्रभावित पुलवामा की काकापोरा सीट पर भी बीजेपी ने विजय पताका फहराई. जबकि इन चुनावों के लिए बमुश्किल तैयार हुए गुपकार गैंग (पीपल्स अलाएंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन) ने अपनी शुरुआती चुनौती में दावा किया था कि बीजेपी का खाता भी नहीं खुलेगा. जबकि बीजेपी इस डीडीसी चुनाव में 74 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है.
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कश्मीर में फेल हो गई गुपकार गैंग की साज़िश
जम्मू कश्मीर के जिला विकास परिषद चुनाव परिणामों ने अलगाववादियों पर करारा चोट की है. उन्हें जता दिया है कि जन्नत में ये जम्हूरियत की नई सुबह है, जहां राष्ट्रवाद को नकारने वालों के लिए कोई जगह नहीं. दरअसल कश्मीर ने अपनी बैलेट क्रांति से आतंकी बुलेट को जवाब दिया है. सरहद पार की खूनी साजिश को जवाब दिया है. कश्मीर पर नज़र गड़ाए 'पाकिस्तानी गिद्धों' को जवाब दिया है. अब देश कर रहा है कश्मीर पर झूठ फैलाने वालों से सवाल, कश्मीर के 'ग़ुमराह गैंग' देश को जवाब दो.
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'पाकिस्तान प्रेमी गैंग' को मिला क़रारा जवाब
भारत सरकार ने अपने संकल्प से जता दिया है कि घाटी में आतंकवाद का ख़ात्मा कर वो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को फिर से मज़बूत करने के लिए प्रतिबद्ध है. जिसका जम्मू कश्मीर की अवाम ने स्वागत किया है. इसके साथ ही आम कश्मीरियों ने पाकिस्तान के दावे और उसके झूठ को खारिज कर दिया है. स्वेच्छा से धारा 370 के खात्मे को स्वीकार किया है. विकास के लिए भारत के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलने का संकल्प दिखा दिया है. 'ग़ुमराह गैंग' की फैलाई अफवाह कि घाटी में सेना का नियंत्रण है. इसे झुठला कर बता दिया है घाटी में लोकतंत्र है और वो खुद अपने मुस्तक़बिल के मालिक हैं. ये नया कश्मीर है. ये कश्मीर की नई सुबह है.
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