Farmers Protest: 'दिल्ली दंगा ब्रिगेड' की खिचड़ी फिर पक रही है!

अब किसान आंदोलन में भी टुकड़े-टुकड़े गैंग के वही गिरोहबाज नजर आ रहे हैं, जो तब उमर खालिद और शऱजील इमाम की सोच को सही ठहराने में जुटे थे.  

Written by - raghunath saran | Last Updated : Jan 10, 2021, 02:57 PM IST
  • बहाना अन्नदाता के समर्थन का है लेकिन निशाना आंदोलन में आग लगाने का है
  • किसान आंदोलन में घुसपैठियों की वजह से दिनोंदिन अराजकता बढ़ रही है
Farmers Protest: 'दिल्ली दंगा ब्रिगेड' की खिचड़ी फिर पक रही है!

नई दिल्ली: उनकी जुबां पर संविधान की कसमें हैं और दिमाग में अराजकता की साजिश. उनके लिये हर आंदोलन बस बहाना है. उन्हें तो हिन्दुस्तान में 'आग' लगाना है. इस बार उनके निशाने पर अन्नदाता आंदोलन (Farmer Protest) है. जी हां, बात हो रही है उसी टुकड़े-टुकड़े गैंग की. मुद्दा कोई भी हो, मंच कोई भी हो. उसमें बेहद शातिराना अंदाज में एंट्री लेना उन्हें खूब आता है. जगह कोई भी हो, मुहिम किसी का भी हो, मांग कुछ भी हो.उन्हें आंदोलन हाईजैक करना खूब आता है.

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देश में अराजकता को हवा देने के लिये वो जनता को उकसाते हैं. लेकिन अपना एजेंडा चमकाने की कोशिश में अपनी पोलपट्टी भी वो खुद खोल जाते हैं. टुकड़े-टुकड़े गैंग की इस खासियत को तो अब तक आप भी अच्छे से समझ चुके होंगे.

2020 की जनवरी' 2021 में भी दोहराने की तैयारी?

साल भर पहले की बात है. 2020 का जनवरी का ही महीना था. जब शाहीनबाग (Shaheen Bhagh) की आड़ में दिल्ली को खाक करने की साजिश हुई थी. कानून-व्यवस्था को निशाने पर लेकर पत्थर बरसाने शुरू किये गए थे. और फिर बेहद शातिराना अंदाज में दिल्ली को दंगे की आग में झोंक दिया गया था.

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तब 53 जानें गई थीं. 150 से ज्यादा जख्मी हुए थे. न जाने कितनों की बसी-बसाई दुनिया को वहशियाना अंदाज में आग में झोंक दिया गया था. जिसके जख्म अब ताउम्र नहीं भरने वाले. दिल्ली दंगों (Delhi Riots) का वो बेइंतहा दर्द बेगुनाहों के हिस्से आया और उसकी साजिश को हवा देने वाले चेहरे पीठ पीछे वहशियाना हंसी हंसते रहे.

तब भी अपना एजेंडा चमकाने के लिये दिल्ली की सड़कों पर संविधान की कसमें उछाली गई थीं. उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे चेहरों के जरिये भीड़ को ललकारा गया था.

समर्थन बहाना, नीयत आंदोलन में आग लगाना!

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अब किसान आंदोलन (Farmer Protest)  में भी टुकड़े-टुकड़े गैंग के वही गिरोहबाज नजर आ रहे हैं, जो तब उमर खालिद और शऱजील इमाम की सोच को सही ठहराने में जुटे थे. शरजील इमाम तो तब भीड़ को ये कहकर उकसा रहा था कि 'असम को हिन्दुस्तान से काटना हमारी जिम्मेदारी है, तभी ये हमारी बात सुनेंगे' .

शरजील तब मुस्लिम आबादी को ये कहकर भड़का रहा था कि क्या आपकी इतनी हैसियत भी नहीं कि उत्तर भारत के शहरों को ठप कर सकते हैं.उस उकसावे के जवाब में हामी भरने वाली आवाजें गूंज रही थी. टुकड़े-टुकड़े गैंग (Tukde Tukde Gang) के गिरोहबाज ऐसे देशविरोधी बयानों को संविधान का हवाला देकर प्रजातांत्रिक ठहरा रहे थे.

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दिल्ली को 'जलाने' की बुनियाद न बने अन्नदाता आंदोलन!

इस बार उनका बहाना अन्नदाता आंदोलन के समर्थन का है, लेकिन निशाना आंदोलन में आग लगाने का है. उनकी आवाज डफली पर फिर थाप देकर दोहरा रही है- 'है मोदी का वही जवाब, इंकलाब-इंकलाब, है अमित शाह का वही जवाब- इंकलाब-इंकलाब.' अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अराजकता का होहल्ला और फिर उसकी आड़ में हिन्दुस्तान को आग में झोंकने की साजिश का ये सिलसिला बेहद खतरनाक है.

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किसान आंदोलन में जिस तरह दिनोंदिन अराजकता बढ़ रही है. देशविरोधी चेहरों की तस्वीरें लहरा रही हैं. और खुफिया एजेंसियों को जिस तरह के इनपुट मिल रहे हैं, उससे ये सवाल गहरा रहा है कि अन्नदाता आंदोलन में घुसपैठ कर चुका टुकड़े-टुकड़े गैंग दिल्ली दंगे के देशविरोधी एक्सपेरिमेंट को क्या फिर दोहराना चाहता है? किसान आंदोलन के घुसपैठिये क्या फिर दिल्ली को आग में झोंकने की खतरनाक खिचड़ी पका रहे हैं?

'आग' लगाने के लिये वो अन्नदाता की दुहाई देते हैं!

किसान आंदोलन (Kisan Andolan) में कानून के विरोध वाली आवाजों को असली किसान ठहराने वाले और कानून का समर्थन करने वाले किसानों को फर्जी बताने वालों की पोल भी खुलने लगी है. कुछ चेहरे तो अपनी नाक बचाने के लिये अब दुहाई देने पर उतर आए हैं.

स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव सोशल मीडिया पर दिल्ली एनएनसीआर-हरियाणा -राजस्थान के किसानों से अपील करते नजर आ रहे हैं. उनके शब्द सुन लीजिए. वो वीडियो में कह रहे हैं- 'सारे देश के किसान यहां हैं. लेकिन अपने नजदीक के इलाके के किसान कम दिखाई दे रहे हैं. हमें तो मेजबान होना चाहिए ना. अगर हनुमानगढ़ गंगा नगर से दस किसान आए, तो अलवर से सौ आने चाहिए ना. रेवाड़ी से हजार आने चाहिए. वैसी स्थिति नहीं बन रही है.'

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देश के अन्नदाता के साथ राष्ट्रवाद भी कदम से कदम मिलाकर खड़ा है और हर उस कोशिश का समर्थन करता है, जो हमारे किसानों की जिंदगी को बेहतर बनाने की बुनियाद बन रहा है. लेकिन अन्नदाता के बीच किसानों के वेश में शातिर घुसपैठ करने वाले अराजक तत्वों को बेनकाब करने में हम हरगिज पीछे नहीं हटेंगे.आखिर किसान आंदोलन को दिल्ली को फिर से जलाने की बुनियाद बनाने की इजाजत कैसे दी जा सकती है?

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