नई दिल्ली: हिंदी में इतना सबकुछ लिखे जाने के बाद भी आज भी ऐसा लिखने वालों का टोटा है, जिन्हें यह पता हो कि उनका पाठक वर्ग क्या पढ़ना चाहता है. आज भी जब साहित्य के नाम पर कई पन्ने एलीट वर्ग के लिए स्याह से रंग दिए जाते हैं और उसी वर्ग के लिए आयोजित हुई गोष्ठियों में प्रशंसा के लड्डू खाकर सब घर को निकल चलते हैं.
इस चाल से अलग हटकर भी कुछ ऐसे लेखक थे, जो देश के करोड़ो लोगों के लिए लिख रहे थे और असल में पढ़े जा रहे थे. एलीट वर्ग ने ऐसे साहित्य को 'सस्ता साहित्य' और 'लुग्दी साहित्य' जैसे नामों से शुमार किया. लुग्दी के मायने खराब हो चुके कागज को फिर से रिसाइकिल करके उस पर उपन्यास की प्रतियां छापकर बेची गईं, तो इसे लुग्दी साहित्य कहा गया.
इस साहित्य के मास्टर आदमी थे, वेद प्रकाश शर्मा. जिनके लिखे हुए उपन्यासों की आज करोड़ो प्रतियां बिक चुकी हैं और उनके उपन्यासों पर आधारित फिल्में भी बन चुकी हैं.
वर्दी वाला गुंडा, दुल्हन मांगे दहेज और दहेज में रिवॉल्वर जैसे लोकप्रिय उपन्यास लिखने वाले वेद प्रकाश शर्मा के लिए लेखन की डगर आसान नहीं थी. शर्मा का जन्म 10 जून, 1955 को उत्तर प्रदेश के मेरठ में हुआ था. वेद एक बहन और सात भाइयों में सबसे छोटे थे. साल 1972 में जब उन्हें हाईस्कूल की पढ़ाई के बाद उनके पैतृक गांव बिहारा भेजा गया. वे गर्मी की छुट्टियों में दर्जनों उपन्यास अपने साथ लेकर गए. खेलने-कूदने की उम्र में वेद हर दो घंटों में एक नॉवेल पढ़कर खत्म कर दे रहे थे. यहां पढ़ने के साथ-साथ उन्हें लिखने का भी चस्का लग गया. यह बात जब घर पर पिता ज़ी को पता चली, तो शाबाशी मिलने के बजाय पिटाई मिली. लेकिन इस बीच एक वाकया अच्छा हुआ कि पिता ने जब उनका लिखा हुआ उपन्यास पढ़ा, तो वे दंग रह गए.
वे उस उपन्यास को छपवाने के लिए प्रिंटिंग प्रेस में लेकर गए. वहां उनकी मुलाकात नामी उपन्यासकारों के नाम पर नकली उपन्यास छापने वाले जंग बहादुर से हुई. जंग बहादुर ने वेद का पहला उपन्यास नामचीन लेखक 'वेद प्रकाश कंबोज' के नाम से छापा.
ओमप्रकाश शर्मा, वेद प्रकाश कंबोज और गुलशन नंदा उस दौर में सस्ते साहित्य की दुनिया के बड़े नाम थे. शर्मा कंबोज को अपना गुरु मानते थे.
यह भी पढ़िए: रूमी: जो इश्क करने वालों की मंजिल भी हैं और रास्ता भी
साल 1973 में शर्मा का पहला उपन्यास उनके नाम से छापा गया. शर्मा ने अपने जीवन में लगभग 173 उपन्यास लिखें. उनके 100वें उपन्यास 'कैदी नं 100' की ढाई लाख प्रतियां बिकी थीं.
शर्मा के उपन्यास ऐसे विषयों पर केंद्रित होते थे, जो कि हमारे आस-पास ज्वलंत मुद्दों के तौर पर मौजूद होते थे. शर्मा के उपन्यासों में आम जनता से उठकर आया आदमी सुपरहीरो की भूमिका में निखरकर बाहर आता है. यही वजह है कि वे निम्न मजदूर वर्ग से लेकर कुलीन वर्ग तक में हर जगह पूरी शिद्धत से पढ़े गए. साल 1985 में शर्मा ने 'तुलसी पॉकेट बुक्स' के नाम से अपना खुद का पब्लिशिंग हाउस शुरू किया.
शर्मा ने साल 1993 में अपना सबसे लोकप्रिय उपन्यास 'वर्दी वाला गुंडा' लिखा. इस उपन्यास को लिखने की प्रेरणा उन्हें सड़क किनारे एक नशे में धुत दरोगा के लोगों को पीटते हुए देखकर मिली. उसी वक्त देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या भी हो गई. शर्मा ने इस वाकये को भी अपने उपन्यास में जगह दी. उनके इस उपन्यास ने देश के करोड़ो पाठकों के बीच अपनी जगह बनाई.
शर्मा के उपन्यासों के आधार पर बॉलीवुड में कुछ फिल्में भी बन चुकी हैं. साल 1995 में आई अक्षय कुमार और ममता कुलकर्णी की फिल्म 'सबसे बड़ा खिलाड़ी' शर्मा के उपन्यास लल्लू पर आधारित थी. उनके उपन्यास पर आधारित 'केशव पंडित' नाम से सीरियल का भी बन चुका है.
शर्मा ने हिंदी पाठकों को सुपरहीरोज दिए, जो हॉलीवुड के अवेंजेर्स की तरह अनूठी शक्तियों के मालिक तो नहीं थे. लेकिन उनमें इतनी कुव्वत थी कि वे दुनिया में बदलाव लाने का माद्दा रखते थे.
यह भी पढ़िए: शौक बहराइची: तंज जिनका शौक था और मुफलिसी जिनकी किस्मत
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.