BJP in South: दक्षिण भारत में पैर फैलाना भाजपा की मजबूरी

भारतीय जनता पार्टी के लिए दक्षिण भारत के राज्य बेहद अहम हो गए हैं. क्योंकि उसे अपनी चुनावी बढ़त बरकरार रखनी है तो दक्षिण पर विशेष ध्यान देना होगा. जिसके लिए  बड़ी रणनीति बनाई जा रही है. 

Written by - Anshuman Anand | Last Updated : Dec 9, 2020, 06:22 PM IST
  • भाजपा का दक्षिण भारत विजय का मिशन
  • दक्षिण में प्रसार के लिए भाजपा ने ताकत झोंकी
BJP in South: दक्षिण भारत में पैर फैलाना भाजपा की मजबूरी

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने उत्तर भारत (North India) के राज्यों में अपनी मजबूत पकड़ बना रखी है. पिछले दो चुनावों से उत्तर के राज्यों से उसे भारी जनसमर्थन मिल रहा है. जो कि अपनी अधिकतम सीमा पर पहुंच गया है. लेकिन स्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं रहती. आने वाले चुनाव (Election) में उत्तर में भाजपा को मिलने वाला समर्थन कम हो सकता है. इसलिए दक्षिण के राज्यों (South India) में पैर फैलाना भाजपा की मजबूरी है. उधर के प्रमुख राज्यों तमिलनाडु (Tamilnadu), केरल (Kerala) और पुदुचेरी में कुछ ही महीनों में चुनाव होने वाले हैं. 

नए सहयोगियों को जोड़ने की कवायद जारी
दक्षिण भारत के राज्यों में अच्छा चुनावी प्रदर्शन करने के लिए भाजपा को स्थानीय सहयोगियों की जरुरत है. कर्नाटक (Karnataka) में तो भाजपा की अपनी सरकार है. हैदराबाद (Hyderabad) में स्थानीय निकाय चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भाजपा के हौसले बुलंद हैं. 

तेलंगाना के मुख्यमंत्री और दक्षिण भारतीय राजनीति के बड़े चेहरे के. चंद्रशेखर राव (KCR) के संबंध भाजपा से मधुर होते दिख रहे हैं. उन्होंने पीएम मोदी को पत्र लिखकर नए संसद भवन के लिए केन्द्र सरकार को समर्थन दिया है. उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि 'मैं सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के शिलान्यास कार्यक्रम में गर्व के साथ खुद को आपसे जोड़ता हूं.  परियोजना लंबे समय से जारी थी, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी स्थित मौजूदा बुनियादी ढांचा अपर्याप्त है और साथ ही हमारे औपनिवेशिक अतीत से जुड़ा है. नया सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पुनरुत्थान, आत्मविश्वास और शक्तिशाली भारत के आत्मसम्मान, प्रतिष्ठा और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक होगा.  मैं इस महत्वपूर्ण परियोजना के शीघ्र पूरा होने की कामना करता हूं.'

के. चंद्रशेखर राव का केन्द्र सरकार को समर्थन ऐसे ही नहीं है. साल 2016 में तेलंगाना के गठन के बाद से वह लगातार कमजोर पड़ रहे हैं और भाजपा मजबूत हो रही है. 2016 से अब तक टीआरएल 40 फीसदी जनसमर्थन गंवा चुकी है. इसलिए तेलंगाना का अपना साम्राज्य सुरक्षित रखने के लिए केसीआर भाजपा के करीब आने की कोशिश कर रहे हैं. 

केसीआर की नजदीकी से भाजपा को भी कोई परहेज नहीं है. क्योंकि इससे दोनों के हित सधते हैं. 

दक्षिण की जनता के करीब जा रही है भाजपा
दक्षिण के राज्यों में अभी तक दिग्गज चेहरों के आधार पर राजनीति करने वाली भाजपा ने आम जनता के बीच अपनी मजबूत करनी शुरु कर दी है.  यही वजह है कि कर्नाटक के राज्यसभा चुनाव में मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने दो जाने माने नेताओं को प्रत्याशी बनाया था. लेकिन भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व ने यह फैसला बदल दिया और दो दो आम कार्यकर्ताओं को उच्च सदन में भेजने का फैसला किया गया. 

यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि इसकी वजह से आम जनता में उम्मीदें बढ़ेंगी और वह भाजपा से जुड़ेंगे. कर्नाटक का यह उदाहरण पड़ोस के केरल और तमिलनाडु दोनों राज्यों पर प्रभाव डाल सकता है. 

नामचीन चेहरों पर भरोसा
भारतीय जनता पार्टी आम लोगों को पार्टी के साथ जोड़ने के साथ नामचीन चेहरों पर भी दांव लगा रही है. आंध्र प्रदेश में पिछले दिनों वहां की बड़ी अभिनेत्री विजय शांति ने भाजपा का दामन थाम लिया. 

इसके अलावा तमिलनाडु में भाजपा रजनीकांत के संपर्क में हैं. जिन्होंने 31 दिसंबर को अपनी नई पार्टी बनाने का ऐलान किया  है.

तमिलनाडु की राजनीति में जयललिता और करुणानिधि दोनों के निधन के  बाद किसी बड़े चेहरे की कमी महसूस की जा रही है. ऐसे में रजनीकांत राजनीति में उतरते हैं तो बैक डोर से उनका समर्थन करके भाजपा राज्य में अपने पैर फैला सकती है. 

भाजपा के लिए दक्षिण विजय मजबूरी 
भारतीय जनता पार्टी केन्द्र में दो बार सत्ता हासिल कर चुकी है. 2024 में उसे तीसरा लोकसभा चुनाव लड़ना है. दो बार की भाजपा की जीत में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात जैसे प्रमुख राज्यों में भाजपा ने अधिकतम सीटें जीती हैं. यह प्रदर्शन बार बार दोहराया नहीं जा सकता. हो सकता है कि अगले लोकसभा चुनाव में इन राज्यो में मिला जनसमर्थन कम हो जाए. 

ऐसे में दक्षिणी राज्यों पर फोकस करना भाजपा की शातिर रणनीति का हिस्सा है. क्योंकि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में लोकसभा की 130 सीटें हैं. 
- कर्नाटक की 28 सीटों में से भाजपा के पास 17 सीटे हैं.

- तमिलनाडु की 39 सीटों में से भाजपा के पास मात्र 1 सीट है. 

- केरल की 20 लोकसभा सीटों में से भाजपा एक भी नहीं जीत पाई. 

- आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 सीटें हैं. जिसमें से भाजपा केवल दो जीत पाई. 

-तेलंगाना नें लोकसभा की 17 सीटें हैं. जिसमें से भाजपा 4 सीटों पर काबिज है. 

- दक्षिण भारत की 130 सीटों में से भाजपा के पास मात्र 24 सीटें ही हैं. 

ऐसे में भाजपा को अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में अगर कहीं से बढ़त मिल सकती है, तो वह दक्षिण भारत के ही राज्य हो सकते हैं. इसलिए भाजपा दक्षिण के राज्यों के लिए अपनी विशेष ताकत झोंक रही है.

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