नई दिल्ली: आजादी के बाद से भारत देश पर सबसे ज्यादा वक्त तक हुकूमत करने वाली पार्टी कांग्रेस (Congress) ने अपनी छवि सुधारने के लिए राष्ट्रवाद को सहारा बनाया है. कांग्रेस ने अपने 136वें स्थापना दिवस के मौके पर तिरंगा यात्रा निकाल रही है, पार्टी का सोशल मीडिया विभाग ‘सेल्फी विद तिरंगा’ अभियान चला रहा है.
कांग्रेस के पास राष्ट्रवाद ही एकमात्र विकल्प?
इससे पहले वर्ष 2018 में जब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थे, तब उन्होंने 'संविधान बचाओ' नाम से एक अभियान की शुरुआत की थी. लेकिन कांग्रेस की वो चाल बेहाल हो गई थी और पार्टी को एक के बाद एक करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. जब कांग्रेस पार्टी चारो खाने चित हो गई है, तब उसे सिर्फ राष्ट्रवाद ही एकमात्र विकल्प नज़र आ रहा है. लेकिन कांग्रेसी नेताओं की देशविरोधी बयानबाजी को देश इतनी आसानी से नहीं भूलेगा. इसलिए कांग्रेस का ये प्लान भी कारगर साबित होगा या नहीं इसके बारे में कुछ भी कह पाना थोड़ा मुश्किल होगा.
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कांग्रेस के भीतर नेतृत्व का संकट लगातार विवादों का कारण बना हुआ है, ऐसे में नेताओं और कार्यकर्ताओं में लगातार गिरते मनोबल के बीच राष्ट्रवाद का सहारा लेकर नया जोश फूंकने की तैयारी है. पूरे देश में जिस तरीके से स्थापना दिवस मनाया जा रहा है, उसके केंद्र में राष्ट्रवाद को रखा गया है.
क्या है ‘सेल्फी विद तिरंगा’ अभियान?
कांग्रेस ने अपनी डूबती नैया को पार लगाने के लिए ‘सेल्फी विद तिरंगा’ अभियान की शुरुआत की है. आपको बता देते हैं कि आखिरकार ये अभियान क्या है? इस अभियान के तहत कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता सऊी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म.. जैसे फेसबुक (Facebook), ट्विटर (Tweitter) और इंस्टाग्राम (Instagram) पर राष्ट्रीय ध्वज (National Flag) के साथ अपनी तस्वीरें या वीडियो पोस्ट करेंगे.
इन करतूतों को कैसे भूल पाएगा देश?
भले ही कांग्रेस ने राष्ट्रवाद को सहारा बनाने की रणनीति बनाई हो, लेकिन कांग्रेस अपने मैले चरित्र को कैसे साफ कर पाएगी? क्योंकि कभी हिन्दुओं के खिलाफ प्रोपेगेंडा, तो कभी संविधान और न्यायपालिका के खिलाफ सियासी रणनीति, कभी सेना पर सवाल तो कभी हिन्दुस्तान से बगावत और पाकिस्तान से गठबंधन जैसी करतूत को अंजाम देकर कांग्रेसी नेताओं ने कई बार अपनी पार्टी की फजीहत कराई है.
कांग्रेस नेताओं का 'पाकिस्तान प्रेम'
कांग्रेस नेताओं में सबसे पहले राहुल गांधी की करतूत को समझिए.. राहुल बाबा ने आतंकी मसूद अजहर को 'मसूद अजहर जी' कहा था. इसके अलावा उनके चहेते नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने पाकिस्तान के पीएम इमरान खान को 'फरिश्ता' बता दिया था. दिग्विजय सिंह ने तो आतंकी हाफिज को 'हाफिज साहब' तक कह दिया था. कांग्रेस नेता बी के हरिप्रसाद ने ये आरोप लगाया था कि 'पुलवामा हमला मोदी और पाकिस्तान के बीच 'मैच फिक्सिंग' है.' वहीं मणिशंकर अय्यर ने कहा था कि भारत-पाक के बीच बातचीत तभी आगे बढ़ेगी जब मोदी 'पीएम पद से हटेंगे'.
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इतना ही नहीं पूरी दुनिया को पता है कि मुंबई हमले में पाकिस्तान का हाथ है, लेकिन कांग्रेस के नेताओं को पाकिस्तान का गुनाह नज़र नहीं आता. तभी तो आतंकी संगठन ने खुद माना था कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान का गहरा कनेक्शन है, लेकिन फिर भी दिग्विजय सिंह ने कहा था कि 'मुंबई हमले में RSS का हाथ है.'
कांग्रेस ने भले ही आज राष्ट्रवाद को राजनीतिक हथियार बनाने की कोशिश की हो, लेकिन राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने सेना और मोदी सरकार से बालाकोट एयर स्ट्राइक के सबूत मांगे थे, इसके अलावा कांग्रेस के संजय निरुपम ने सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जीकल स्ट्राइक कह दिया था. अब भला राष्ट्रवाद को सहारा बनाने से क्या ये सारे पाप धुल जाएंगे?
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जिन्ना को प्रेमियों को पसंद करती है कांग्रेस
हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर ये बताने साबित किया कि इस पार्टी को जिन्ना प्रेमियों से बहुत प्रेम है, तभी तो जिन्ना प्रेमी गैंग के नेता मशकूर अहमद उस्मानी को उम्मीदवार बनाया था. ये वही मशकूर था, जिसने 2018 में अपने जिन्ना प्रेम का खुलेआम AMU में प्रदर्शन किया था.
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इतना ही नहीं.. कांग्रेस पार्टी (Congress party) को हिंदुओं की भावनाओं की कतई चिंता नहीं है. इसीलिए तो कभी कांग्रेसी नेता उदित राज ने कुंभ पर सवाल खड़ा कर दिया, तो कभी मणिशंकर अय्यर और शशि थरूर जैसे बड़े नेताओं ने राम मंदिर पर ही निशाना साध दिया. ऐसे में सवाल यही है कि क्या राष्ट्रवाद का सहारा लेकर, कांग्रेस की 'डूबती नैया' को किनारा मिलेगा?
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