कहते हैं न कि सियासत बुरी चीज है, इस राजनीति के जंजाल में फंसकर कोई भी किसी भी हद से गुजर जाता है. साम दाम दंड भेद की नीति ही राजनीति का सबसे बड़ा हथियार होता है. बंगाल में चुनाव है इसी लिए तो सभी सियासी पार्टियां अपना-अपना दमखम झोंकने में जुटी हैं. किसी के लिए जय श्रीराम चुनावी हथियार हैं, तो किसी को जय श्रीराम के नाम से ही एलर्जी होने लगती है.
शायद कांग्रेस को बंगाल में चुनाव (Bengal Election) के लिए कोई मुद्दा नहीं मिल रहा है, तभी तो वो झूठ का सहारा लेकर अपने प्रतिद्वंदी को कमजोर करने की झूठ साजिश रच रही है. अधीर रंजन ने गृहमंत्री अमित शाह पर आरोप लगाया कि वो शांति निकेतन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कुर्सी पर बैठे थे.
अब इस लेटर को गौर से देख लीजिए, विश्व भारती ने इस लेटर में अधीर रंजन चौधरी को ये साफ-साफ बता दिया है कि अमित शाह वहीं बैठे थे जहां खिड़की के बगल में बैठने की व्यवस्था की गई है.
इस चिट्ठी में ये साफ किया गया कि इस स्थान पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रतिभा पाटिल के अलावा बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना बैठ चुकी हैं. शाह ने भी सदन में ये अपील की थी कि शांति निकेतन के उपकुलपति का पत्र और फोटोग्राफ को पटल पर रखा जाए.
अब जरा इन तस्वीरों को भी देखिए. भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी जिस जगह पर बैठे हैं वो गुरुदेव का सोफा नहीं है बल्कि उसके बगल में बैठने की एक जगह है.
इस तस्वीर को भी देख लीजिए, भारत की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल भी इसी स्थान पर बैठी हैं. ये भी वही जगह है जहां प्रणब दा बैठे थे. इसी जगह पर अमित शाह भी बैठे थे. खैर..
विवाद को समझिए
हाल ही में अमित शाह के बंगाल दौरे पर गए थे, जिसके बाद सोशल मीडिया पर ये दुष्प्रचार होने लगा कि शांतिनिकेतन दौरे के समय अमित शाह (Amit Shah) टैगोर की कुर्सी पर बैठ गए थे. कांग्रेस के साथ साथ तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेताओं ने भी दावे और आरोप लगाने शुरू कर दिए थे.
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कुछ लोगों ने तो ये तक कह दिया कि यह बात दिमाग में रखनी चाहिए कि गुरुदेव की कुर्सी पर बैठकर कोई टैगोर नहीं बन सकती. बस इतने में ही कांग्रेस को मौका मिल गया क्योंकि उसके पास बंगाल में चुनाव लड़ने के लिए कोई गरमागरम मुद्दा तो था नहीं, इसीलिए अधीर रंजन ने मौके पर चौका मारने की कोशिश की. मगर उनका ये प्लान फुस्स हो गया.
बंगाल में चुनाव को देखते हुए कांग्रेस ने ये सोचा था कि BJP और अमित शाह को बदनाम करने का ये अच्छा मौका है, लेकिन उन्होंने ये नहीं सोचा था कि उनकी ये चुनाव वाली साजिश सबके सामने आ जाएगी. वहीं TMC को तो पहले से ही जय श्रीराम से एलर्जी है, तभी तो BJP इसे अपने एनर्जी की तरह इस्तेमाल कर रही है.
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