नई दिल्ली: माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल यह पर्व 16 फरवरी को मनाया जा रहा है. इस दिन ज्ञान और सुर की देवी मां सरस्वती की आराध्ना की जाती है. हालांकि, कम ही लोग जानते हैं मां की एक प्रतिमा पर सालों ने अंग्रेज भी अपना कब्जा जमाए बैठे हैं.
राजा ने बनवाई थी मां सरस्वती के नाम से पाठशाला
दरअसल, मध्य प्रदेश के महाराजा भोज माता सरस्वती के बहुत बड़े भक्त थे. मान्यता है कि राजा की भक्ति और साधना से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें साक्षात दर्शन भी दिए थे. 1010-1055ई. तक राजा ने धार में शासन किया. कहते हैं कि उन्होंने 1034ई. में सरस्वती सदन के नाम से एक भव्य पाठशाला बनाई थी, जहां उन्होंने मां सरस्वती की मूर्ति की स्थापना करवाई.
भोजशाला के समीप मिली थी प्रतिमा
बाद में यह पाठशाला राजा के नाम भोज को मिलाकार भोजशाला के नाम से लोकप्रिय हो गई. इस भोजशाला के करीब ही मां सरस्वती की एक प्रतिमा खुदाई में मिली थी. इस मूर्ति को लेकर कहते है कि इसमें एक अलग ही तेज था और यह चमत्कारिक थी.
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सालों तक होती रही पूजा
कहते ही ज्ञान की देवी की इस मूर्ति के दर्शन करने भर से ही लोगों के भीतर तक का अज्ञान हट जाता था. मूर्ति की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी. लोग मां के दर्शन करने मंदिर आने लगे.
राजा की मृत्यु के बाद भी कई सालों तक मां सरस्वती की इस प्रतिमा की पूजा की जाती रही.
अलाउद्दीन खिलजी ने की थी मूर्ति खंडित
ऐतिहासिक सूत्रों की मानें तो 1305ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर हमला बोल दिया और मां की प्रतिमा खंडित कर दी. इस दौरान उसने लगभग 1200 आचार्यों को भी मौत के घाट उतार दिया. कहा जाता है कि 1401ई. में भोजशाला के एक हिस्से में दिलावर खां गौरी ने मस्जिद का भी निर्माण कर दिया था.
1902 ने लंदन में हैं मां सरस्वती की प्रतिमा
ब्रिटिश काल में 1902 में मेजर किनकैड भारत की कई अमूल्य वस्तुओं के साथ मां सरस्वती की एक अद्भुत प्रतिमा को भी अपने साथ लंदन ले गए. तब से आज तक मां सरस्वती की यह मूर्ति लंदन के एक म्यूजियम में कैद है. इसे वापिस लाने की कई नाकाम कोशिशें भी जा चुकी हैं.
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