Gupta Navratri 2021 में जानिए असल में किसके अवतार हैं श्रीराम और श्रीकृष्ण

श्रीविष्णु के आज्ञाचक्र में निवास करने वाली योग माया हैं. लक्ष्मी हैं, ब्रह्मा की शक्ति ब्राह्मी हैं. सरस्वती हैं. इसके अलावा पृथ्वी पर वह सीता हैं, द्रौपदी हैं, राधा भी हैं और रुक्मिणी भी हैं. यहां तक हर स्त्री के रूप में जन्म लेने वाली मां-पत्नी और बहन के किरदार निभाने वाले स्वरूप में देवी दुर्गा की ही शक्ति है. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 16, 2021, 12:09 PM IST
  • संसार में ज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ है. ज्ञान का दूसरा स्वरूप विद्या है
  • इसी बात को सीधी भाषा में समझें तो शक्ति एक प्रकार ऊर्जा है
Gupta Navratri 2021 में जानिए असल में किसके अवतार हैं श्रीराम और श्रीकृष्ण

नई दिल्लीः भारतीय परंपरा में शैव और वैष्णव परंपरा के साथ-साथ ही शाक्त परंपरा को भी मानने वाले हैं. शाक्त यानी के वे लोग जो केवल शक्ति के उपासक हैं और इस स्वरूप में मां दुर्गा का सूक्ष्म भैरवी स्वरूप उनकी अधिष्ठाता देवी हैं. शैव मत के लोग मानते हैं कि शिव ही सृष्टि का आदि और अंत हैं.

वैष्णव स्वरूप को मानने वाले भगवान विष्णु के विराट स्वरूप की कल्पना करते हैं, जिनके ही आदेश से सृष्टि में सब कुछ हो रहा है. वहीं शाक्त परंपरा का मानना है कि शिव और विष्णु के जरिए जो भी हो रहा है उसकी प्रेरणा उन्हें भैरवी शक्ति से ही मिलती है. 

क्या है देवी की शक्ति
गुप्त नवरात्रि (Gupta Navratri 2021) इसी स्थिति को बारीक से समझने का उत्सव है. दरअसल सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि संसार में ज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ है. ज्ञान का दूसरा स्वरूप विद्या है. विद्या के होने से ही किसी कार्य को करने की समझ आती है और कोई कार्य क्यों किया जाना है इसकी प्रेरणा भी ज्ञान होने से मिलती है. इसके बाद उस कार्य को करने का सामर्थ्य ही शक्ति है. 

अब इसी बात को सीधी भाषा में समझें तो शक्ति एक प्रकार ऊर्जा है. भौतिक विज्ञान कहता है कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती है, बल्कि यह हर बार दूसरे रूप में परिवर्तित हो जाती है. संभवतः शक्ति स्वरूप मां दुर्गा के इसीलिए कई अलग-अलग स्वरूप हैं. इसीलिए वह कभी देवी पार्वती हैं, कभी उमा हैं. कभी दक्ष की पुत्री सती हैं.

श्रीविष्णु के आज्ञाचक्र में निवास करने वाली योग माया हैं. लक्ष्मी हैं, ब्रह्मा की शक्ति ब्राह्मी हैं. सरस्वती हैं. इसके अलावा पृथ्वी पर वह सीता हैं, द्रौपदी हैं, राधा भी हैं और रुक्मिणी भी हैं. यहां तक हर स्त्री के रूप में जन्म लेने वाली मां-पत्नी और बहन के किरदार निभाने वाले स्वरूप में देवी दुर्गा की ही शक्ति है. 

आज मनाई जा रही है बसंत पंचमी
16 फरवरी 2021 को बसंत पंचमी (Basant Panchmi 2021) का पर्व मनाया जा रहा है. यह एक दुर्लभ संयोग है कि गुप्त नवरात्रि (Gupta Navratri 2021) में दुर्गा के दसमहाविद्या स्वरूप के साथ ही विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जा रही है. देवी सरस्वती और गायत्री दोनों ही देवताओं की वह शक्तियां हैं जिनके पास संसार का समस्त ज्ञान है.

विष्णु के अवतार के रूप में कृष्ण की नीति और उनका योग बनने वाली देवी गायत्री ही हैं. युद्ध में वह देवी काली की शक्ति के साथ विजेता होते हैं. वहीं श्री राम के साथ उनकी पत्नी सीता महालक्ष्मी का स्वरूप हैं जो खुद ही भगवती का एक अंश हैं. 

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यह हैं दस महाविद्या
दस महाविद्याओं में दे कुल आते हैं. इन्हें काली कुल और श्रीकुल कहते हैं. काली कुल में मां काली, मां तारा और मां भुवनेश्वरी आती हैं. जबकि श्रीकुल में मां बगलामुखी, मां कमला, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भैरवी, मां मांतगी और मां धूमावती आती हैं. 

श्रीराम और श्रीकृष्ण किसके अवतार?
भागवत पुराण और ज्ञात ज्ञान के आधार पर यह एक आसान प्रश्न है. जिसका उत्तर है कि दोनों ही देवता श्रीहरि के सातवें-आठवें अवतार हैं. लेकिन यह अधूरा सत्य है. पूरा सच है कि श्रीराम और श्रीकृष्ण भगवती देवी के अलग-अलग स्वरूपों की प्रेरणा के अवतार हैं. देवी पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण कालिका देवी के अवतार हैं.

इसलिए उनका रंग भी काला है और वह नीतियों में निपुण हैं. वहीं श्री राम देवी मातंगी के अवतार हैं. श्रीकृष्ण की लीलास्थली वृंदावन में एक ऐसा मंदिर विद्यमान है, जहां कृष्ण की काली रूप में पूजा होती है. काली अवतार होने के कारण वह जीव में होकर भी जीव से परे हैं. जबकि श्रीराम पूरी तरह मानवीय जीवन में थे और उन्होंने पूरे जीवन में कोई चमत्कार नहीं दिखाया. श्रीकृष्ण के चमत्कार जन्म से लेकर महाभारत तक दिखाई देते हैं. 

Gupta Navratri का संकेत समझिए
इसी तरह श्रीविष्णु के अलग-अलग अवतार भी देवी की अलग-अलग विद्या के स्वरूप हैं. रामायण में भी एक प्रसंग आता है. जब कुंभकुर्ण का पुत्र रावण वध के बाद लंका पर आक्रमण कर देता है तो श्रीराम और उनकी सेना भी उससे असहाय हो जाती है. तब ब्रह्माजी आकर बताते हैं कि यह केवल स्त्री शक्ति के हाथ ही मारा जाएगा.

तब देवी सीता अपना सौम्य रूप त्याग कर रणचंडी के अवतार में आती हैं और कुंभकर्ण के पुत्र का वध होता है. यह प्रसंग बताते हैं कि धरती से पाप का भार अकेले देवता के भी कम करने के बस की बात नहीं है. जबकि देवी और देव दोनों को ही मिलकर हर समस्या का समाधान करना पड़ा है. 

जीवन में भी ठीक यही बात लागू होती है. स्त्री-पुरुष में कोई कमतर या बड़ा-छोटा नहीं है. दोनों की अपनी-अपनी भूमिकाएं हैं. सनातन परंपरा इसका विकास ही करती रही है. Gupta Navraytri की गुप्त साधना और बसंत पंचमी का उत्सव यही ज्ञान देता है. 

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