उदयपुरः अधिकमास के पावन महीने में भगवान विष्णु की आराधना व ध्यान सर्वश्रेष्ठ माने गए हैं. ऐसे में इस महीने विष्णु मंदिरों के पवित्र स्थानों का महत्व और अधिक बढ़ जाता है. भारत में कई ऐसे विष्णु मंदिर हैं जो सिद्ध हैं और जिनमें उच्च आध्यात्मिक शक्तियां समाहित हैं.
जगत्पालक श्रीहरि वैसे भी दीनदयाल हैं और राजस्थान के उदयपुर स्थित श्री जगदीश मंदिर में स्थापित उनका चतुर्भुज स्वरूप मन को शांति देने वाला है.
कीजिए उदयपुर के श्री जगदीश मंदिर के दर्शन
मलमास में विष्णुमंदिर के दर्शन श्रृंखला में जी हिंदुस्तान आपको सीधे उदयपुर ले चलता है, जहां सिटी पैलेस से महज 200 मीटर की दूरी पर जगत के ईश श्री जगदीश विराजमान हैं. कोरोना काल में तो नहीं, लेकिन सामान्य दिनों में प्रभु की शरण में प्रतिदिन कई श्रद्धालु पहुंचते हैं.
पर्यटन स्थल वाले शहर में मंदिर के विराजमान होने से इस मंदिर के प्रांगण में जब-तब कई विदेशी भी ढोल-मंजीरे के साथ मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है... गाते मिल जाएंगे.
कुछ ऐसा है मंदिर का इतिहास
जगदीश मंदिर उदयपुर का बड़ा ही सुन्दर, प्राचीन एवं विख्यात मंदिर है. आध्यात्मिक रूप से इसका खास महत्व होने के साथ ही मेवाड़ के इतिहास में भी इसका योगदान रहा है. मंदिर उदयपुर में रॉयल पैलेस के पास ही बना हुआ है और भारतीय-आर्य स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहण है.
श्री जगदीश मंदिर का निर्माण महाराणा जगत सिंह ने सन् 1651 में करवाया था , उस समय उदयपुर मेवाड़ की राजधानी था. यह मंदिर लगभग 400 वर्ष पुराना है उदयपुर के बड़े मंदिरों में से एक है. मंदिर में स्थापित चतुर्भुजधारी श्रीहरि की छनि भुवनमोहिनी है, साथ ही उनकी आंखें विशेष तेज वाली हैं जो अनायास ही दर्शन करने वालों को आत्मिक शांति देती हैं. काले पत्थर की यह प्रतिमा विषिष्ट है.
ऐसी है मंदिर की संरचना
मंदिर आधार तल से 125 फीट ऊंचाई पर है. इसका शिखर 100 फीट ऊंचा है. मंदिर में कुल 50 कलात्मक स्तंभ हैं. यह शानदार नक़्क़ाशीदार खंभों, चित्रित दीवारों और सजाये गये छत के साथ एक तीन मंजिला संरचना है.
मंदिर के शीर्ष की ऊंचाई 79 फुट है जिसपर हाथियों और सवारों के साथ संगीतकारों और नर्तकियों की प्रतिमाओं को देखा जा सकता है. द्वार पर गरुड़ (आधा मनुष्य और आधा चील) भगवान विष्णु के द्वार की रक्षा करता है.
मंदिर के विषय में प्रचलित है दंत कथा
प्रचलित है कि महाराजा जगत सिंह जगन्नाथ पुरी के विष्णु भगवान में अखंड आस्था रखते थे. एक दिन उन्होंने श्रीहरि से दर्शन की इच्छा व्यक्त की और भगवान ने उन्हें सपने में कहा कि वह उदयपुर में निवास करेंगे.
इसी सपने के बाद महाराजा जगत सिंह को श्रीहरि का मंदिर बनवाने की प्रेरणा हुई.
डूंगरपुर के पास कुनबा गांव से मिली प्रतिमा
संयोग वश ठीक इसी समय डूंगरपुर के पास कुनबा गांव में एक पेड़ के नीचे खुदाई में काले पत्थर की इस दिव्य प्रतिमा के मिलने की जानकारी हुई. शंख-चक्र, गदा-पद्म से सुशोभित यह प्रतिमा चारों ओर चर्चित हो गई.
तब महाराज ने सम्मान सहित मूर्ति को मंगवाया और तब से लेकर मंदिर की निर्माण कार्य के पूरे होने तक भगवान जगन्नाथ विष्णु की मूर्ति को एक पत्थर पर रखकर उसकी पूजा-आराधना की गई थी. मंदिर में यह पत्थर आज भी में मौजूद है. बताते हैं कि पत्थर के स्पर्श मात्र से शरीर की सारी पीड़ाएं एवं दर्द दूर हो जाते हैं.
पंचायतन शैली में बना है मंदिर
शिखर और गर्भ गृह के लिहाज से यह नागर शैली में बना मंदिर है. मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिरों का निर्माण कराया गया है, जो पंचायतन शैली का उदाहरण है.
इसमें गणेश जी, शिव जी ,माता पार्वती एवं सूर्य देव के मंदिर भी बने हुए हैं. परिसर में एक शिलालेख भी है, जो गुहिल राजाओं के बारे में जानकारी देता है.
यहां भी हुआ था औरंगजेब का आक्रमण
सन 1736 में मुगल बादशाह औरंगजेब के आक्रमण के समय मंदिर का अगला हिस्सा टूट गया. इसके गजथर के कई हाथी तथा बाहरी द्वार के पास का कुछ भाग आक्रमणकारियों ने तोड़ डाला था. बाद में महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने फिर से मंदिर की मरम्मत कराई.
मंदिर में खंडित हाथियों की पंक्ति में भी नये हाथियों को यथास्थान लगा दिया गया है.
जागृत है यह पावन मंदिर
इस मंदिर को जागृत मंदिर माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि साक्षात जगदीश यहां वास करते हैं. भगवन जगन्नाथ की रथ यात्रा बेहद महत्वपूर्ण व दर्शनीय व रोमांचकारी होती है, जिसमें भगवन पालकी में विराजकर भक्तों के कंधों पर सवार हो कर पूरे शहर का भ्रमण करते हैं.
होली के मौके पर यहां फागोत्सव मनाया जाता है, इसके अलावा सावन के पूरे महीने भगवन जगन्नाथ झूले पर सवार रहते हैं. मंदिर परिसर में चांदी का एक हिंडोला भी दर्शनीय है.
.यह भी पढ़िएः मलमास में कीजिए गोरखपुर के श्री विष्णु मंदिर के दर्शन, अद्भुत है यहां की श्री हरि प्रतिमा