नई दिल्लीः सभाभवन में कुछ अनुचरों के अलावा कोई न था. एक ऊंचे सिंहासन पर शुंभ-निशुंभ बैठे किसी सुंदर स्वप्न में खोए लगते थे. वे चंड-मुंड के बताया देवी के स्वरूप की कल्पना कर रहे थे और विश्वास से भरे थे कि अभी धूम्रलोचन उस हठीली को अपने पाश मां बांधकर उनके सामने ला खड़ा करेगा.
हालांकि 3 पहर बीतने को आए थे, इसलिए अब चंड को किसी आशंका ने घेर लिया था. अचानक ही कराह और बचाव के मिले-जुले स्वर का शोर सभाभवन के बाहर गूंजने लगा. चंड-मुंड समझ गए कि क्या हो चुका है.
सैनिकों ने दी चेतावनी
बिना युद्ध के ही देवी से पराजित होकर लौटे मुट्ठी भर सैनिकों ने धूम्रलोचन के वध की सूचना दी और देवी की ओर से राक्षस भाइयों को समझाया कि हठ छोड़ दें. लेकिन यह सुनकर शुभ-निशुंभ की क्रोधाग्नि भड़क उठी. दोनों ने भयंकर गर्जना की, धूम्रलोचन को कायर बताया और चंड-मुंड को मुड़े.
शुंभ ने कहा- चंड-मुंड, अपने सबसे भयंकर अस्त्र-शस्त्र और सैनिक लेकर जाओ और उस घमंडिनी को केशों से घसीटते हुए हमारे सामने प्रस्तुत करो. जाओ, तुरंत जाओ
चंड-मुंड युद्ध करने पहुंचे
सेनापति बनाए जाने के बाद चंड-मुंड अपनी विशाल सेना लेकर देवी से युद्ध करने पहुंच गए. माता इस समय भी अपने परम सुंदरी अंबिका स्वरूप में शिला पर बड़े ही शांत भाव से बैठी थीं. असुरों की सागर जैसी सेना को दूर से आते देखते हुए वह सहज ही बनी रहीं.
चंड सेना लेकर अतिशीघ्र उनके पास पहुंच गया और ललकारते हुए कहा- हे, सुंदरी, हमारे स्वामी का प्रस्ताव स्वीकार और हमारे साथ चल. देवी ने कहा- मेरी अब भी वही शर्त है, मुझे युद्ध में हराओ और ले चलो. इतना सुनकर चंड ने सेना को आक्रमण का आदेश दे दिया. सभी सैनिक देवी पर एक साथ आक्रमण करने लगे.
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देवी ने किया चंड-मुंड का संहार
चंड-मुंड को इस तरह का दुस्साहस करते देख देवी क्रोधित हो गईं. उनका अंबिका स्वरूप क्रोध से तमतमाने लगा और भ्रृकुटियां तन गईं. इसी दौरान माता के आज्ञा चक्र से एक तेज पुंज प्रकट हुआ और देवी कात्यायनी का प्रबल योद्धा स्वरूप फिर प्रकट हो गया. उनके दोनों हाथों में तलवारें थीं और वह दसों दिशाओं में समान गति से युद्ध कर रही थीं.
चंड-मुंड के देखते-देखते उसकी राक्षसी सेना काल के गाल में समा गई. यह देख चंड आक्रमण करने बढ़ा. क्रुद्ध देवी ने उसे लात मारकर पीछे धकेला और आगे बढ़कर उसका शीश काट दिया. ठीक इसी समय मुंड चुपके से प्रहार करने दौड़ा तो देवी ने हवा में अर्धवृत्त बनाते हुए हाथ पीछे की ओर घुमा दिया. मुंड भी दो भागों में कटकर धरती पर गिर पड़ा.
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इस तरह चंडिका और चामुंडा मां कहलाईं देवी
दोनों राक्षसों को यमलोक पहुंचाकर युद्ध की देवी ने चंड-मुंड के कटे शीश उठाए और अंबिका स्वरूप को अर्पित करने पहुंचीं. देवी ने अपने इस क्रोधी और वीरांगना शक्ति की भेंट प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार की. इसके बाद उन्होंने देवी को रणचंडिका कहा. वरदान दिया कि आज से मुझसे उत्पन्न आपका यह स्वरूप चंडी देवी के नाम प्रसिद्ध होगा.
शत्रु नाश की कामना लेकर क्षत्रिय राजा आपका स्मरण-वंदन करेंगे. आप राजुकलों का वैभव, युद्ध का गौरव कहलाएंगी और शौर्य में आपकी ही शक्ति समाहित होगी. चंड-मुंड का वध करने वाली आप चामुंडा के नाम से विख्यात होंगीं. तबसे देवी के इस चंडी स्वरूप को संसार बड़े ही भक्ति-भाव से पूजता है.