नई दिल्लीः नवरात्र का पावन अवसर देवी मां के सान्निध्य को प्राप्त करने का खास मौका है. भारत भूमि तो देवी मां के आशीर्वाद से सिंचित है ही, कई क्षेत्र जो भारत में नहीं हैं (हालांकि कभी भारत का अंग थे) वहां भी माता ने अपनी कृपा बरसाई है.
नवरात्र में देवी मां के दर्शन से पुण्य मिलता है और उनका वर्णन करना तो और भी श्रेष्ठ कार्य है. देवी दर्शन की इसी कड़ी में जी हिंदुस्तान भारतीय सीमा से दूर स्थित माता के धाम के दर्शन करा रहा है.
प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक खास शक्तिपीठ है सुगंधा. यह शक्तिपीठ भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में स्थित है. बरीसाल से 21 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर में शिकारपुर नामक ग्राम में सुंगधा (सुनंदा) नदी के तट पर स्थित उग्रतारा देवी का मंदिर ही शक्तिपीठ माना जाता है.
कहते हैं कि इस स्थान पर सती माता की नासिका (नाक) गिरी थी. यहां की देवी सुनंदा और शिव त्र्यम्बक हैं. इसलिए इस पीठ के सुनंदा पीठ भी कहा जाता है.
अलौकिक है मंदिर की बनावट
यह मंदिर पत्थर का बना हुआ है. मंदिर की पत्थर की दीवारों पर भी देवी-देवताओं की तस्वीर ख़ूबसूरती से उत्कीर्ण हैं. शिव चतुर्दशी पर यहाँ मेला लगता है. इसके अलावा नवरात्र पर भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.
हालांकि इस मंदिर का इतिहास उपलब्ध नहीं हो पाया है लेकिन मंदिर के परिसर को देख कर समझा जा सकता है कि मंदिर बहुत प्राचीन है. शक्तिपीठ का नाम भरतचंद्र की बांग्ला कविता ‘अन्नादामंगल’ में मिलता है.
ऐसा है देवी का स्वरूप
यहां पर स्थापित जो पुरानी मूर्ति थी, वो अब चोरी हो चुकी है. अब उसके स्थान पर नई मूर्ति स्थापित की गयी है. प्राचीन मूर्ति अब तक अज्ञात है. वर्तमान में देवी उग्रतारा की मूर्ति है, जिन्हें सुगंध की देवी के रूप में पूजा जाता है.
देवी के पास तलवार, खेकड़ा, नीलपाद, और नरमुंड की माला है. कार्तिक, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश उनके ऊपर स्थापित हैं. यह मूर्ति बौद्ध तंत्र से सम्बंधित मानी जाती है. प्राचीन काल से बंगाल में तंत्र साधना का व्यापक प्रचार-प्रसार था. बंगाल में कई प्राचीन काली मंदिर और देवी मंदिर देखे जा सकते हैं.
यह है मंदिर की प्रचलित कथा
शिकारपुर गांव में पंचानन चक्रवर्ती नाम के एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण रहते थे. एक बार उनके सपने में, मां काली ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि मैं सुगंधा के गर्भ में शिलारूप में हूँ, तुम मुझे वहां से निकाल कर ले आओ और मेरी पूजा करो. पंचानन चक्रवर्ती ने ऐसा ही किया.
वो सपने में आये स्थान पर गया, वहां से मूर्ति लाकर स्थापित की और पूजा करना शुरू कर दिया. इसके बाद वहां के स्थानीय लोग भी आने लगे और मां की पूजा करने लगे. इस तरह से ये पवित्र स्थान लोकप्रिय हुआ.
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