Chhath Pooja: छठ महापर्व में दिखता है पीएम मोदी के सपने का भारत

छठ व्रत सिर्फ एक पर्व नहीं महापर्व है. पीएम मोदी ने बड़े भावभीने अंदाज में इसकी बधाई दी है. वास्तव में छठ पूजा की परंपराएं प्रधानमंत्री के सपने 'वोकल फॉर लोकल' और 'स्वच्छ भारत अभियान' के सबसे करीब है. 

Written by - Anshuman Anand | Last Updated : Nov 20, 2020, 09:23 PM IST
  • छठ महापर्व और पीएम मोदी के सपनों का भारत
  • छठ की परंपराएं पीएम मोदी के उद्देश्य के करीब
  • छठ में लोकल फॉर वोकल की झलक
  • पीएम का स्वच्छ भारत अभियान झलकता है छठ महापर्व में
Chhath Pooja: छठ महापर्व में दिखता है पीएम मोदी के सपने का भारत

नई दिल्ली: छठ महापर्व (Chhath Pooja) इस साल 18 से 21 नवंबर के बीच मनाया जा रहा है. पीएम मोदी (PM Modi) ने अपने खास अंदाज में पूरे देश को इसकी बधाई दी है. 

इस त्योहार में एक खास बात है. जो इस महापर्व को सबसे अलग बनाता है. वस्तुत: यह एकलौता ऐसा त्योहार है जो बिल्कुल स्थानीय वस्तुओं के जरिए मनाया जाता है. इसमें किसी बाहरी तत्व का प्रयोग नहीं किया जाता. मान्यता है कि ऐसा करने से इसकी पवित्रता नष्ट हो जाती है. यानी प्रधानमंत्री के नारे के मुताबिक कहें तो 'Vocal for Local' के पैमाने पर पूरी तरह खरा उतरता महोत्सव है छठ महापर्व. 

ज़मीन से जुड़ी है छठ की परंपराएं
छठ व्रत की शुरुआत  ‘खरना’ से हो जाती है.  श्रद्धालु दिनभर उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद  मिट्टी के चूल्हे पर ‘खीर’ और रोटी बनाते है. 

पर्व के तीसरे दिन छठ व्रती अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. चौथे यानी आखिरी दिन को पारण कहा जाता है. इस दिन उगते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है. जिसके बाद इस महापर्व का समापन हो जाता है. व्रत का खाना बनाने का पूरा काम हाथ से बने मिट्टी के चूल्हों पर आम की लकड़ी के ईंधन से होता है. खाना बनाने की लकड़ियां भी स्वच्छ जल से धोने के बाद प्रयोग में लाई जाती हैं.  

प्रकृति से एकाकार करता है छठ पर्व 
छठ महापर्व की परंपराएं हमें माता प्रकृति के साथ एकाकार होने का संदेश देती हैं. दरअसल छठ पर्व को पूरी तरह प्रकृति संरक्षण की पूजा मानें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.  इस पर्व के दौरान श्रद्धालु मनुष्य माता प्रकृति की गोद में पहुंच जाता है. छठ महापर्व के चार दिनों में व्रती प्रकृति में ही देवत्व को स्थापित करता है. यानी उसे ही अपना इष्ट मानकर पूजा करता है. 

छठ पर्व पर नदी घाटों, तालाबों जैसे जल स्रोतों की सफाई की जाती है. क्योंकि परंपरा है कि अर्घ्य देते समय सूर्य की छाया पानी में स्पष्ट दिखाई देनी चाहिए.  संदेश साफ है कि जल को इतना निर्मल और स्वच्छ बनाइए कि उसमें सूर्य की किरणें प्रतिबिंबित जाएं. 

जलाशयों के अतिरिक्त  गलियां, सड़कें, रास्ते, बागीचे यहां तक कि गंदी नालियों की भी सफाई कर दी जाती है. स्वच्छ भारत अभियान के मानदंडों को छठ महाव्रत ही पूरा करता है. 

प्राकृतिक वस्तुओं से होती है छठी मईया और सूर्यनारायण की उपासना
छठ पर्व के केन्द्र में कृषि, मिट्टी और किसान होते हैं. प्राकृतिक फल और सब्जियां इसका प्रसाद है. हाथ से लीपे गए मिट्टी से बने चूल्हे पर और मिट्टी के बर्तन में  प्रसाद तैयार किया जाता है. हाथ से बनाए गए बांस के सूप में पूजन सामग्री रखकर अर्घ्य दिया जाता है. 
 बांस का बना सूप, दौरा, टोकरी, मउनी तथा मिट्टी से बना दीप, चौमुखा व पंचमुखी दीया और कंद-मूल व फल जैसे ईख, सेव, केला, संतरा, नींबू, नारियल, अदरक, हल्दी, सूथनी, पानी फल सिंघाड़ा , चना, चावल (अक्षत), ठेकुआ इत्यादि छठ पूजा की सामग्री प्रकृति से जोड़ती है. यह कृषि आधारित भारतीय समाज का अपना त्योहार है.  पूरी तरह स्थानीय यानी लोकल. 

ये छठ त्योहार का प्रताप है कि  स्ट्रॉबेरी, एप्पल,पाइनेपल, कीवी, ड्रैगन फ्रूट जैसे विदेशी फलों को चखने वाले और विदेश में करियर बनाने वाले लोग भी ईंख, गागर नीबू, सुथनी, शरीफा कमरख, शकरकंद जैसे देसी फलों का आनंद प्राप्त करते हैं. 

 मुगलई,थाई, चाइनीज, इटालियन फूड के जमाने में भी खीर, कचरी, रोटी, चावल, दाल, कद्दू, कोहड़ा, अगस्त्य के फूल जैसी साग-सब्जियों का स्वाद लोगों को इतना पसंद आता है कि उसकी महक लोगों को अगले साल भी इस महापर्व में शामिल होने के लिए मजबूर कर देती है. स्थानीय पकवानों के स्वाद की इस परंपरा को सहेजना सिर्फ व्रत के दिनों में ही संभव हो सकता है. क्योंकि इसके स्वाद में व्रत की तपस्या भी शामिल होती है. 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वच्छ भारत अभियान, स्थानीय वस्तुओं के उत्पादन और मार्केटिंग पर जोर देना. यह संदेश छठ महापर्व में सदियों से समाहित है. इसीलिए पीएम मोदी ने विशेष तौर पर छठ पर्व को लेकर देश को बधाई दी है. 

छठ का संदेश स्पष्ट है. आप प्रकृति को उपासना करें, उसका संरक्षण करें. सुख आपको स्वयं ही प्राप्त होगा. यही छठी मैया और सूर्य नारायण का आशीर्वाद है. 

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