नई दिल्लीः Haridwar Mahakumbh 2021 का आगाज मकर संक्रांति के पर्व पर हुआ. श्रद्धालुओं के जत्थे अनायास ही उत्तराखंड में स्थित हरिद्वार की ओर बढ़ चले हैं. एक मान्यता के अनुसार कुंभ और संक्रांति का संयोग विशेष फल देने वाला होता है. इस शुभ तिथि और संयोग के मौके पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान किया.
कहा जाता है कि कई यज्ञों और गोदान के बरबार पुण्य अर्जित कराता है कुंभ का गंगा स्नान. जो लोग हरिद्वार नहीं जा पाते हैं वह अपने-अपने शहरों की नदियों और तालाबों का रुख करते हैं. इन सबके बीच उत्तराखंड के एक और पवित्र तीर्थ की ओर श्रद्धालुओ की श्रद्धा देखी जा रही है. 14 -15 जनवरी की तारीख में जब मकर संक्रांति का संयोग होता है तो इस तीर्थ की मान्यता क्यों बढ़ जाती है?
Mahakumbh के बीच बागेश्वर की मान्यता
इस प्रश्न का जवाब आध्यात्म देता है. यह तीर्थ है बागेश्वर धाम, जहां मकर संक्रांति के मौके पर तो लोग एकजुट होते ही हैं. जब देश में कहीं भी कुंभ का आयोजन हो रहा होता है तो इस तीर्थ में भी श्रद्धावान लोग स्नान और आचमन के लिए पहुंचते हैं. संतों-तपस्वियों के लिए तो बागेश्वर प्राचीन काल से तपस्थली रहा है. इसके अलावा उत्तराखंड और अन्य प्रदेशों के लोग भी अब इधर जाने लगे हैं. दरअसल मकर संक्रांति व महाकुंभ का जो भी स्वरूप पूरे देश में दिखाई देता है वह भौतिक जगत का स्वरूप है, जिसमें मां गंगा के प्रति लोक आस्था, उनके अवतरण की दिव्य कथा और सागर मंथन का पौराणिक इतिहास समाहित है. इसके साथ ही जो मान्यता तीर्थराज प्रयागराज और हरिद्वार की है. वही मान्यता प्राचीन बागेश्वर धाम की है. इसे सबसे प्राचीन त्रिवेणी संगम तीर्थ कहा जाता है.
यह है बागेश्वर धाम का महत्व
कुंभ के दौरान बागेश्वर की मान्यता ठीक वैसी ही है जैसे की वृंदावन में लगने वाले कुंभ की. उत्तराखंड के तीर्थराज बागेश्वर में सरयू और गोमती नदी का संगम होता है. कहते तो यह भी हैं कि भगवान शिव की नगरी की मान्यता होने से यहां प्राचीन संगम स्थल रहा है. इस संगम क्षेत्र में लुप्त सरस्वती का भी मिलन होता है.
बागेश्वर पुराने इतिहास और सुनहरे अतीत को संजोए हुए है. स्कंदपुराण के अनुसार बागेश्वर में प्रसिद्ध ‘बागनाथ मंदिर’ महादेव की आशीर्वाद की अनुभूति का स्थल है. सरयू के तट को सरयू बगड़ कहा जाता है. इसी सरयू बगड़ में आकर लोग जुटते हैं, संगम में स्नान करते हैं. कुंभ के दौरान भी यहां लोगों का आना जारी रहेगा.
पुराणों ने गाई है बागेश्वर महिमा
बागेश्वर का कस्बा पुराने इतिहास और सुनहरे अतीत को संजोये हुए है. स्कंद पुराण का मानस खण्ड कूमचिल के विभिन्न स्थानों का गहन वर्णन करता है. पौराणिक आख्यानों के अनुसार बागेश्वर शिव की लीला स्थली है. मान्यता है कि इसकी स्थापना भगवान शिव के एक गण चंडीश ने की थी.
उन्होंने महादेव की इच्छानुसार काशी की ही तरह निर्माण किया. कई विद्वान इसकी प्राचीनता काशी से भी अधिक बताते हैं. शिव-पार्वती ने इसे अपना निवास भी बनाया था. यहां स्थित स्वयंभू शिवलिंग की आराधना ॠषियों ने बागीश्वर के रूप में की थी.
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व्याघ्रेश्वर बना बागेश्वर
बागेश्वर नाम कैसे पड़ा इसकी भी कथा स्कंदपुराण कहता है. कथा के अनुसार मार्कण्डेय ॠषि यहां तपस्या कर रहे थे. ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जब देवलोक से विष्णु की मानसपुत्री सरयू को लेकर आए तो मार्कण्डेय ॠषि के कारण सरयू को आगे बढ़ने से रुकना पड़ा. ॠषि की तपस्या भी भंग न हो और सरयू को भी मार्ग मिल जाये, इस आशय से पार्वती ने गाय और शिव ने व्याघ्र का रुप धारण किया.
बाघ को देखकर गाय डर से रंभाने लगी. इससे ऋषि की आंखें खुल गईं. वह गाय की रक्षा के लिए अपनी जगह से उठे तब तक मार्ग मिलने पर सरयू नदी आगे बढ़ गईं. शिव-पार्वती ने वास्तविक रूप में आकर ऋषि को वरदान दिया. फिर ब्रह्मदेव, मार्कंडेय ऋषि, वशिष्ठ ऋषि और खुद शिव-पार्वती ने सरयू नदी को मोक्ष देने वाली बना दिया. इस तरह यह स्थान पंचतीर्थ भी कहलाता है. शिव के व्याघ्र स्वरूप के कारण यह स्थान व्याघ्रेश्वर और बाघनाथ कहलाया, जो बाद में बागेश्वर और बागनाथ बन गया.
संगम स्नान का है महत्व
सरयू नदी के जल का पान करने से सोमपान का फल और स्नान अश्वमेघ का फल प्रदान करता है. बागेश्वर तीर्थ में मृत्यु से प्राणी शिव को प्राप्त होता है. नदी की दूसरी धारा गोमती है जो अम्बरीष मुनि के आश्रम में पालित नन्दनी गाय के सींगों के प्रहार से उत्पन्न हुई. सरयू-गोमती का संगम ही इसी महत्वपूर्ण बनाता है.
सरस्वती यहां अदृश्य रूप में संगम करती है. इसलिए कुंभ स्नान जैसी ही यहां की भी मान्यता है. मकर संक्रांति के मौके पर यहां बड़ा मेला लगता है. आस्था की यह धरोहर भारत की सांस्कृतिक विरासत भी है.
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