Haridwar Mahakumbh 2021: वृंदावन में भी लगता है एक कुंभ, क्या आप जानते हैं?

वृंदावन में Kumbh पर्व का आयोजन किया जाता है. इसे दिव्य कुंभ या वैष्णव कुंभ भी कहते हैं. संत समाज बताते हैं कि यहां Kumbh लगने की परंपरा बहुत पुरानी है. हालांकि ऐतिहासिक तथ्य पर इसकी प्राचीनता की गणना स्पष्ट नहीं है. लेकिन यह दावा किया जाता है है कि औरंगजेब के शासन काल में जब सनातन धर्म के लिए संकटपूर्ण समय था उस समय भी यहां लोगों का समागम यमुना किनारे होता था.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 7, 2021, 08:02 AM IST
  • वृंदावन में Kumbh लगने की मान्यता भी अमृत कलश से जुड़ी है
  • यहां श्रीकृष्ण ने कालिया नाग का घमंड तोड़कर उसे नाथा था
Haridwar Mahakumbh 2021: वृंदावन में भी लगता है एक कुंभ, क्या आप जानते हैं?

नई दिल्लीः Mahakumbh 2021 की घोषणा हो चुकी है और Haridwar में इसे लेकर तैयारियों का दौर जारी है. श्रद्धालु भी एक-एक करके हरिद्वार की ओर रुख करने लगे हैं. Kumbh पर्व को लेकर यही जानकारी है कि यह भारत देश में चार स्थानों पर आयोजित होते है. इनमें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक प्रमुख हैं. इसी बीच एक बात बहुत से लोगों को चौंका सकती है, जब वे जानेंगे कि इसके अलावा पांचवां कुंभ वृंदावन में लगता है. 

500 साल से 5000 साल पुराना इतिहास
यह सच है कि वृंदावन में Kumbh पर्व का आयोजन किया जाता है. इसे दिव्य कुंभ या वैष्णव कुंभ भी कहते हैं. संत समाज बताते हैं कि यहां Kumbh लगने की परंपरा बहुत पुरानी है. हालांकि ऐतिहासिक तथ्य पर इसकी प्राचीनता की गणना स्पष्ट नहीं है. लेकिन यह दावा किया जाता है है कि औरंगजेब के शासन काल में जब सनातन धर्म के लिए संकटपूर्ण समय था उस समय भी यहां लोगों का समागम यमुना किनारे होता था.

इस तरह 500 साल पुरानी परंपरा की बात तो स्पष्ट होती है. दूसरी ओर साधु समाज इसे 5000 साल पुराना बताते हैं. मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने यमुना नदी के किनारे बाल क्रीड़ाएं कीं. यहां कालिया नाग को नाथा. कृष्णभक्ति शाखा के संतों के लिए यह पवित्र भूमि है. यमुना जल को वे चरणामृत की तरह  पूजते हैं इसलिए यहां यमुना स्नान भी कुंभ स्नान की तरह माना जाता है. 

यह भी पढ़िएः Haridwar Mahakumbh 2021: जानिए, कुंभ स्नान का महत्व जो पुराणों में बताया गया है

भागवत की कथा में मिलता है वर्णन
एक और तथ्य यह बताया जाता है कि जब अर्जुन द्वारिका से श्रीकृष्ण के एक मात्र जीवित पौत्र वज्रनाभ को लेकर लौटे तब वज्रनाभ ने ब्रज क्षेत्र बसाया. यहां Kumbh लगने की मान्यता भी अमृत कलश से जुड़ी है. संत बताते हैं कि भागवत पुराण में इस बात का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के बाद अमृत कलश लेकर वरुण जी सबसे पहले वृंदावन आए और कदंब के वृक्ष पर बैठे थे. अमृत की कुछ बूंदें वृक्ष पर गिर गईं थीं. 


 वृंदावन में जिस स्थान पर कुंभ लगता रहा है,वहां पहले एक कुंड था.  इसी कुंड में कालिया नाग रहता था. उसके विष से कुंड के आसपास के सारे वृक्ष सूख गए, पशु-पक्षी भी मर गए. वृंदावन में हाहाकार मच गया. तब श्रीकृष्ण ने इसी कदंब वृक्ष के सहारे यमुना से जुड़े इस कुंड में छलांग लगाई थी. इससे अमृत तत्व नदी में मिल गया. यही कथा वृंदावन में Kumbh लगने की परंपरा का कारण बनती है. 

शैव और वैष्णव साधुओं के बीच मतभेद!
Haridwar Mahakumbh में नागा साधु जो कि शैव संप्रदाय से होते हैं, उनका अधिक आधिपत्य रहता है. ऐसे में एक-दो बार वैष्णव साधुओं से उनके बीच मतभेद की बातें भी सामने आती रही हैं. हालांकि इसे लेकर भ्रम अधिक है. Haridwar में कुंभ लगने से पहले वैष्णव साधक वृंदावन में एकजुट होकर हरिद्वार के लिए रवाना होते थे. 

वैष्णव साधुओं के लिए यमुना नदी भी गंगा की तरह ही पवित्र है. जैसे गंगा नदी श्रीहरि के चरणों से निकलकर विष्णुपदी कहलाती है, यमुना नदी खुद श्रीकृष्ण की साधिका रही है और उनकी कई पत्नियों में एक मानी जाती है. इसके साथ ही यमुना की प्राचीनता गंगा से अधिक है, इसलिए साधु समाज वृंदावन के कुंभ को देवलोक का कुंभ भी कहता है. 

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