'फाइट ऑफ द सेंचुरी' के एक आर्टिकल ने बदल दी जिंदगी, जानें कैसे तय किया राष्ट्रमंडल गेम्स तक का सफर

बर्मिंघम में खेले जाने वाले 22वें कॉमनवेल्थ गेम्स के लिये भारतीय मुक्केबाजी दल में 14 बॉक्सर्स को भेजा जा रहा है, जिनसे देश को पदक की काफी उम्मीद है. बर्मिंघम गेम्स से पहले ये सभी खिलाड़ियों तैयारियों में जुटे हुए हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 23, 2022, 04:38 PM IST
  • 7 साल पुराने आर्टिकल ने बदली जिंदगी
  • घर में खेल से नहीं है दूर तक कोई नाता
'फाइट ऑफ द सेंचुरी' के एक आर्टिकल ने बदल दी जिंदगी, जानें कैसे तय किया राष्ट्रमंडल गेम्स तक का सफर

Commonwealth Games 2022: बर्मिंघम में खेले जाने वाले 22वें कॉमनवेल्थ गेम्स के लिये भारतीय मुक्केबाजी दल में 14 बॉक्सर्स को भेजा जा रहा है, जिनसे देश को पदक की काफी उम्मीद है. बर्मिंघम गेम्स से पहले ये सभी खिलाड़ियों तैयारियों में जुटे हुए हैं. जहां इन खेलों में हिस्सा लेने वाले इन खिलाड़ियों में कई प्लेयर अपना नाम पहले भी विश्व पटल पर लिखवा चुके हैं तो वहीं पर कुछ खिलाड़ी पहली बार खेलते हुए नजर आने वाले हैं.

इस बॉक्सिंग दल में शामिल भारतीय मुक्केबाज सागर अहलवात ने अपने अब तक के सफर के बारे में बात करते हुए बताया कि कैसे अखबार में छपे एक आर्टिकल ने उनकी जिंदगी बदल दी और उन्हें उस मोड़ पर ला खड़ा किया जिस पर वो आज पहुंचे हुए हैं. 20 वर्षीय सागर अहलावत पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों का हिस्सा बनेंगे और 92+ किग्रा भारवर्ग में चुनौती पेश करेंगे.

7 साल पुराने आर्टिकल ने बदली जिंदगी

सागर अहलावत ने अपने सफर के बारे में बात करते हुए कहा कि साल 2015 में जब फ्लॉएड मेवेदर जूनियर और मैनी पैकियाओ के बीच ‘फाइट ऑफ द सेंचुरी’ हुई थी तो उस पर छपे अखबार के एक लेख ने उनकी जिंदगी बदल दी. इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद ही मैंने बॉक्सिंग को अपना करियर चुना और 7 साल बाद आज अपने देश का प्रतिनिधित्व रॉष्ट्रमंडल खेलों में करने को तैयार हूं.

सागर ने कहा, ‘मैं पढ़ाई में अच्छा नहीं था. मेरे से पढ़ाई नहीं होती थी. इसलिये मैंने 12वीं के बाद कुछ करने के लिये देखना शुरू किया. मेरे परिवार में कोई भी खेलों में नहीं है. मुझे थोड़ा बहुत मुक्केबाजी के बारे में पता था लेकिन मुझे मेवेदर और पैकियाओ के बारे में अखबार में पढ़कर प्रेरणा मिली.'

घर में खेल से नहीं है दूर तक कोई नाता

गौरतलब है कि बर्मिंघम गेम्स में जाने वाले सागर अहलावत किसान परिवार से आते हैं और उनके परिवार में से किसी का भी खेलों से कोई लेना देना नहीं है. लेकिन जब अखबार में मेवेदर और पैकियाओ की उपलब्धियों के बारे में पढ़ा तो समझ आ गया कि उन्हें क्या करना है. हालांकि घर पर मदद करने के लिये उन्हें कई बार अपनी ट्रेनिंग को बीच में ही छोड़ना पड़ा. दो साल बाद उन्होंने अखिल भारतीय विश्वविद्यालय खेलों में स्वर्ण पदक जीता. इसके बाद उन्होंने खेलो इंडिया विश्वविद्यालय खेलों में लगातार खिताब जीत लिये. 

उन्होंने कहा, ‘मैंने 2017 में मुक्केबाजी शुरू की और जवाहर बाग स्टेडियम में ट्रेनिंग करना शुरू किया. मैंने 2019 में अपने पहले विश्वविद्यालय खेलों में हिस्सा लिया जिसमें मुझे स्वर्ण पदक मिला. फिर मैंने 2020 में और अगले साल भी खेलो इंडिया विश्वविद्यालय खेलों में स्वर्ण पदक जीता. मैं नर्वस बिलकुल नहीं हूं कि यह मेरा पहला टूर्नामेंट है क्योंकि मैंने बहुत अच्छी ट्रेनिंग की है. मैं अच्छी बाउट लड़ना चाहता हूं.’

सीनियर नेशनल प्रतियोगिता 2021 में पदार्पण में रजत पदक के बाद उन्हें पटियाला में राष्ट्रीय शिविर में शामिल कर लिया गया. उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों के चयन ट्रायल में भी प्रभावित करना जारी रखा. सागर ने टोक्यो ओलंपिक के क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे सतीष कुमार को हराने के बाद मौजूदा राष्ट्रीय चैम्पियन नरेंदर को हराकर बर्मिंघम का टिकट कटाया जो उनका पहला अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट होगा.

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