नई दिल्लीः एक बहुत पुराना मुहावरा है, 'आंख के अंधे नाम नयनसुख'. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो ने, तुर्की को इसी खांचे में डाल दिया है. पूरी दुनिया पर कब्जे की तमन्ना रखने वाले यूरेशिया के एक देश तुर्की में भेड़-बकरियों तक से सुरक्षाकर्मी कैसे ख़ौफ़ खाते हैं. इस वायरल वीडियो में सामने आया है.
भेड़ की फ़ौज से डर कर भागे तुर्की के सैनिक!
तुर्की के नेवसेहीर शहर में एक हॉल के बाहर जब एक बकरी, एक भेड़ और भेड़ के 3 बच्चों की धमक होती है, तो हॉल के बाहर खड़े सुरक्षाकर्मी ऐसे खौफ़ मे आते हैं, जैसे कोई आतंकवादी हमला हो ! पहली नज़र में ये वीडियो बस हंसने का एक मौक़ा देता है. पर सवाल है कि ये तेज़ी से वायरल क्यों हो रहा है? लाखों लोग ना सिर्फ इसे देख रहे हैं बल्कि रीट्वीट कर रहे हैं, कमेंट कर रहे हैं, ऐसा क्यों?
Nevşehir Belediye binası 1 koyun, 1 keçi ve 3 kuzu tarafından ele geçirilmeye çalışıldı. pic.twitter.com/3lYPrbCYza
— Kritik Haber (@kritikhabertr) December 14, 2020
वजह साफ़ है, ऐसा इसलिए कि ये वीडियो उस तुर्की का है, जो पूरी दुनिया में इस्लामिक राष्ट्रवाद की पताका लहराने की तमन्ना रखता है. इस दिशा में उसकी महत्वाकांक्षा ऐसी है, कि दुनिया के किसी कोने में उठे विवाद पर अपनी टांग ज़रूर अड़ाता है. अपनी ख़ास इस्लामिक राष्ट्रवाद की नीति के तहत सैन्य सहयोग से लेकर सामाजिक प्रभाव बढ़ाने तक के लिए उल्टे-सीधे पैंतरे आजमाता है.
इस्लामिक राष्ट्रवाद का मुंगेरी सपना!
1930 में कमाल अतातुर्क के सुधारवादी प्रयासों से आधुनिक लोकतंत्र बने तुर्की में अब उसके राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन ने उल्टी गंगा बहा दी है. लोकतंत्र की मदद से ही सत्ता में आए एर्दोआन की निरंकुशता वाले रवैये से तुर्की, यूरोप और अमेरिका समेत तमाम आधुनिक लोकतांत्रिक देशों की आंखों का किरकिरी बन चुका है.
सीरिया संकट हो, बोसनिया और कोसोवो का संकट, यूगोस्लाविया का बिखरना या अर्मीनिया अजरबैज़ान के बीच की जंग, तुर्की अपनी सैन्य ताक़त दिखाने से भी बाज़ नहीं आता. यहां तक कि पाकिस्तान के आतंकी मंसूबों को भी अब वो बेपनाह हवा दे रहा है.
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ख़ूनी इतिहास पर गर्व कैसा?
तुर्की इस 21 वीं सदी में भी, कई सदी पहले के ऑटोमन साम्राज्य के अतीत को अपना गौरव समझता है. 1500 साल पुरानी विश्व धरोहर हागिया सोफिया को मस्जिद बना देने वाला एर्दोआन आखिर चाहता क्या है? एर्दोआन की ऐसी सनक ने ही दुनिया के एकमात्र मुस्लिम सेकुलर देश की पहचान रखने वाले तुर्की को आज सेकुलरिज्म से दूर कर दिया है.
एर्दोआन का उस्मानिया सल्तनत या ऑटोमन साम्राज्य प्रेम जिस क्रूरता की पराकाष्ठा पर आधारित है, उसकी बानगी इतिहास के पन्नों में दर्ज है. सऊदी से नफ़रत की आग में जलते ऑटोमन साम्राज्य के सैनिक 1818 में किंग अब्दुल्लाह बिन सऊद और वहाबी इमाम को ज़ंजीर में बांध कर इंस्ताबुल ले आए थे.
हागिया सोफिया के सामने ही सऊदी अरब के किंग अब्दुल्लाह बिन सऊद का सिर कलम कर दिया गया था. जब किंग का सिर काटा जा रहा था तब बाहर भीड़ जश्न मना रही थी. सिर काटे जाने के बाद पटाखे फोड़े गए और 3 दिनों तक शव को लोगों के देखने के लिए रखा गया था. वहीं वहाबी इमाम का सिर इस्तांबुल के भरे बाज़ार में कलम किया गया था.
सीरियल और फिल्मों के ज़रिए हिंसा का सौदा
ऐसी रक्त-पिपासा को एर्दोआन जैसे सनकी शासक अपने अतीत का शौर्य समझते हैं, और फिर से उसी रक्तपात का सपना बुनते हैं. ताज्जुब नहीं कि पाकिस्तान जैसा देश ऐसे हिंसक सपनों का ख़रीदार बन जाता है. तभी तो अपना सामाजिक प्रभाव बढ़ाने के लिए तुर्की अर्तुरुल गाजी जैसा टीवी सीरियल बनवाता है और पाकिस्तान का सरकारी टेलीविजन भी उसे प्रसारित करता है.
तुर्की की सीमाओं के बीच हुई लड़ाई इसकी मुख्य कहानी है. एक्शन रोमांच हिंसा और मजहबी रहस्यों से भरे ऐसे सीरियल और फिल्मों के ज़रिए तुर्की दफ्न हो चुके आततायी भावनाओं को उकेरने पर आमादा है.
जबकि हक़ीक़त ये है कि हिंसक यादों में खोते जा रहे तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन के देश में, भेड़-बकरियों की एक छोटी टुकड़ी से उसके सैनिकों की हालत पतली हो जाती है.
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