फिर टूटेगा पाकिस्तान: पुलिस की बगावत लिखेगी अलग सिंध देश की इबारत

यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान की सिंध पुलिस और सेना के बीच 18/19 की रात की दरम्यानी घटना ने वहां की आम जनमानस और सेना के खिलाफ विभाजन की एक ऐसी लकीर खींच दी है, जिसे पार पाना न तो इमरान सरकार के लिए आसान होगा और ना ही वहां की सेना के लिए.    

Written by - Amit Kumar Singh | Last Updated : Oct 22, 2020, 06:34 AM IST
    • टूट की कगार पर पाकिस्तान
    • सिंध प्रांत को अलग देश बनाने की मुहिम
    • पहले टूटा बांग्लादेश, अब टूटेगा सिंध
फिर टूटेगा पाकिस्तान: पुलिस की बगावत लिखेगी अलग सिंध देश की इबारत

नई दिल्ली: इमरान सरकार (Imran Khan) के खिलाफ सिंध पुलिस के विद्रोह को वहां की स्वतंत्र संस्थाएं और गैर सरकारी संगठनों के अलावा आम जनता का भी भरपूर समर्थन मिल रहा है. अब तो  सिंध बार काउंसिल ने भी पुलिस के समर्थन में सेना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. 

पुलिस प्रमुख के अपहरण से फूटा गुस्सा
अब तक यही होता था कि सिंध प्रांत की सियासत ही वहां की सरकार और सेना से अलग सुर रखती थी, लेकिन पाक सेना (Pakistan Army) के कमांडरों द्वारा 18/19 की रात कराची पुलिस प्रमुख का अपहरणकांड ने  इमरान खान और आर्मी चीफ जनरल बाजवा (pak army chief) के लिए सब गुड़ गोबर कर दिया, इस घटनाक्रम से सरकारी संस्थाएं तो  गुस्से में है ही, साथ साथ अलग सिंध देश की मांग करने वाले विद्रोही नेतओं में भी नई जान फूंक दी है.

लंबे अरसे से सुलग रहा था गुस्से का ज्वालामुखी
अब सवाल उठता है कि पाकिस्तान के सिंध प्रांत की पुलिस में आखिर गुस्सा क्यों है ? आखिर एक स्टेट की पुलिस अपने सरकारी ट्विटर हैंडल के माध्यम से अपने ही देश की सेना  पर सबसे बड़ा आरोप कैसे लगा सकती है?  अगर यह सिर्फ आरोप होते तो इतनी नौबत तो कतई नहीं आती कि सिंध प्रांत की पुलिस के ज्यादातर अफसरान बकायदा लेटर लिखकर छुट्टी पर चले जाते.

सच्चाई यह है कि पंजाबियों के दबदबे वाली पाकिस्तानी सरकार और सेना की ज्यादतियों की कहानी कोई नहीं है. इस्लामाबाद पर हुकूमत करने वाली चाहे कोई भी सरकार हो और रावलपिंडी से इस्लामाबाद पर हुकूमत करने वाला चाहे कोई भी सेनाध्यक्ष हो, इनके लिए अनाज की टोकरी कहे जाने वाले सिंध प्रांत के लिए दोहन और दमन की नीति ही रही है. 

सिंध का होता रहा शोषण
 सिंधियों को हमेशा मलाल रहा है कि उनकी नदियों की अविरल बहती धारा पर बांध बनाकर पंजाबियों को फायदे पहुंचाए जाते हैं. एक मलाल यह भी है कि उनकी संस्कृति और पहचान से हमेशा खिलवाड़ किया जाता रहा है.  1947 के भारत-पाक बंटवारे से लेकर अब तक सरकारों के दोयम दर्जे की नीतियों और सेना की बूटों तले रखने की आदतों का शिकार होना पड़ता है. 

राज्य प्रायोजित आतंकवाद और सियासी नेताओं की गिरफ्तारी वहां की खुफिया एजेंसियों और सेना के लिए कोई नई बात नहीं. सेना के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों का हश्र तो और भी बुरा होता है. उन्हें दिनदहाड़े या तो गायब कर दिया जाता है या फिर उन्हें जेलों में सड़ने के लिए डाल दिया जाता है. अब तक लाखों लोगों का कोई अता-पता नहीं है, वे जिंदा हैं भी या नहीं.

पहले बना था बांग्लादेश, अब बनेगा सिंधुदेश 
जिस तरह बलूचिस्तान पश्चूनिस्तान की मांग पंजाबी वर्चस्व वाली पाकिस्तानी सरकार और सेना के लिए गले की हड्डी बनी हुई है, ठीक उसी तरह सिंध प्रांत की मांग भी लंबे अरसे की की जाती रही है. वहां की सड़कों पर रह-रहकर यह नारा जोर मारता है 'कल बना था बांग्लादेश, अब बनेगा सिंधुदेश'.  सिंध प्रांत के लोग सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक रुप से भी पाकिस्तान से ना सिर्फ अलग पहचान रखते हैं, बल्कि इतिहास के पन्नों में भी उनकी राष्ट्रीयता अलग तौर पर रही है. 1972 से अब तक अलग सिंधुदेश की मांग को लेकर कई आंदोलन हुए तो कई बार खून खराबे भी हुए. 

दो साल पहले भी हुआ था विद्रोह
सिंध पर पाकिस्तानियों के शासन को लेकर समय-समय पर वहां की स्थानीय सियासत किस तरह उबाल मारती रही है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दो साल वहां की विधायिका ने पंजाब के वर्चस्व को चुनौती दे डाली थी. सिंध प्रांत की असेंबली ने एक प्रस्ताव पारित कर कहा था कि पंजाबियों ने अपनी अपनी फैक्ट्रियों के जरिए सिंध की नदियों में जहर भेजा रहा है, इस पर सुप्रीम कोर्ट को नोटिस लेने को भी कहा गया था. साधनसंपन्न रहते हुए भी सिंधियों के लिए बेरोजगारी और गरीबी वहां की सरकारों और सेना ने जैसे किस्मत में लिख दी हो.

आंदोलनकारियों में फूंकेगी नई जान
ब्रिटेन में निर्वासित जीवन बिता रहे मुताहिदा कौमी मूवमेंट के लीडर अल्ताफ हुसैन और सिंध कौमी महाज को इस प्रकरण की वजह से निश्चित ही अपने आंदोलन को और मुखर किए जाने का फायदा मिलेगा. यह तो तय है कि सेना और खुफिया एजेंसियां इस समय सिंध प्रांत में पूरी तरह बैकफुट पर है, लिहाजा सिंधु देश के आंदोलनकारियों के लिए फिर से पनपने का बेहतरीन मौका है. आज पुलिस, कल वकील और परसो पूरा सिस्टम इमरान और बाजवा के खिलाफ सड़कों पर होगा. तब इमरान और बाजवा के लिए यह फैसला करना मुश्किल हो जाएगा कि अपनी कुर्सी बचाएं या सिंध प्रांत. 

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