पाकिस्तानी सेना का 'अपहरण कांड'! 11 सालों में 40 हजार लोग लापता

बार-बार हिन्दुस्तान के अंदरूनी मामले का झूठा राग अलापने वाले पाकिस्तान में उसकी सेना ने नरसंहार फैक्ट्री खोल रखी है. अफगानिस्तान की सरहद से लगा खैबर पख्तूनख्वा से 11 सालों में 40 हजार से ज्यादा लोग लापता हैं.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Nov 15, 2019, 07:16 AM IST
    1. पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में नरसंहार की फैक्ट्री
    2. 11 सालों में 40 हजार से अधिक लोग लापता हैं
    3. बलोच-पश्तूनों को पाकिस्तानी सेना ने जबरन अगवा किया था
पाकिस्तानी सेना का 'अपहरण कांड'! 11 सालों में 40 हजार लोग लापता

नई दिल्ली: खैबर पख्तूनख्वा अफगानिस्तान की सरहद से लगा पाकिस्तानी वो इलाका है जहां घुमावदार पहाड़ों के बीच से गुजरते रास्ते को आसमान से देखो तो रेंगते सांप से लगते हैं. इन्हीं पहाड़ियों में पाकिस्तान ने नर्क का वो तहखाना बना रखा है. जिसमें पिछले ग्यारह सालों में चालीस हजार से ज्यादा बेकसूर लोग जाकर लापता हो चुके हैं.

पाकिस्तान की 'नरसंहार फैक्ट्री'

इन चालीस हजार बेगुनाह जानों में खैबर पख्तूनख्वा के पश्तून लोग भी हैं. बलोचिस्तान के बपोच भी और सिंध के मोहाजिर भी हैं. सन् सत्तर के दशक में बलोचिस्तान को पाकिस्तान से आजाद करने की मांग उठी थी. उसी के बाद पाकिस्तानी सेना ने यहां की बलोच आबादी को डराने के लिये उनके बीच से लोगों को दिनदहाड़े उठाना शुरू कर दिया था. बलोचों को अगवा करने का पाकिस्तानी दमनचक्र जल्द ही खुलेआम खूनी खेल बन गया. जहां बलोचों की जमीन पर कब्जे के लिये पाकिस्तानी फौज एक ओर उन्हें खुलेआम अपनी गोलियों का शिकार बनाने लगीं.

दूसरी ओर पाकिस्तान के इशारे पर अफगानिस्तान की सीमा से बलोचिस्तान में घुसे तालिबानी आतंकी वहां कत्लोगारत मचाने लगे. भोले-भाले बलोचों को आतंकी बताकर उनके साथ ये खूनी खेल इसलिये खेला जा रहा था. ताकि बलोचिस्तान की पहाड़ियों के अंदर बेशकीमती धातुओं, पत्थरों का वो खजाना जिस पर बलोचों का हक है, उसे लूटा जा सके. 

पाकिस्तान की चालाकी के बारे में जानकर हर कोई भौचक्का रह जाएगा. बलोचों को निशाना बनाने के लिये पाकिस्तानी सैनिक दिन भर आतंकियों के वेश में घूमते हैं.

बलोचिस्तान में चल रहे इस खूनी खेल को पाकिस्तान ने जमाने तक दुनिया की नजरों से बचाकर रखा, मीडिया की एंट्री वहां बैन रही. सोशल मीडिया के एक्टिव होने से बलोचिस्तान में चल रहा पाकिस्तानी सेना का अपहरणकांड और नरसंहार फैक्ट्री का भांडा फूट गया.

खैबर पख्तूनख्वा में दफन काला सच

चोरी छिपे बनाये गये वो वीडियो सामने आने लगे. जिसमें पाकिस्तानी जुल्म की चौंकाने वाली इंतेहा बतौर सबूत दिख रही थी. बलोचिस्तान के साथ साथ-साथ खैबर पख्तूनख्वा में भी पाकिस्तानी सेना का जुल्मोसितम बढ़ा तो, वहां की पश्तून आबादी भी पाकिस्तानी हुकूमत के खिलाफ सड़कों पर उतर आई.

आप जानकर हैरान होंगे, पिछले ग्यारह सालों में पाकिस्तान में जितने बलोच-पश्तूनों को पाकिस्तानी सेना ने जबरन अगवा किया था. उनकी तादाद चालीस हजार के पार पहुंच चुकी है. इनमें मर्दों के साथ औरतें भी शामिल हैं. इन अगवा लोगों की खोज-खबर न तो उनके परिवार को है. ना ही पाकिस्तानी प्रशासन और अदालत को उनके बारे में कोई जानकारी है. पाकिस्तानी सेना ने इसकी भनक ही किसी को नहीं लगने दी है.

वहीं इनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन पर पिछले ग्यारह सालों में पांच हजार बलूचों-पश्तूनों को मौत के घाट उतारा जा चुका है. सवाल ये है कि आखिर पाकिस्तानी सेना का अपहरणकांड और बलूच-पश्तून नागरिकों के जेनोसाइड का दिल दहलाने वाला खेल किसकी शह पर और कैसे चल रहा था.

पाकिस्तानी फौज के इशारे पर चल रहे गैरकानूनी खूनी गोरखधंधे को कानूनी जामा पहनाने के लिये पाकिस्तानी सरकार ने साल 2011 में खासतौर से एक्शन रेग्युलेशन कानून बनाया था. जिसने पाकिस्तानी फौज और पुलिस को ये छूट दे दी थी कि वो किसी को भी आतंकी या संदिग्ध बताकर कोर्ट को बिना खबर दिये सालों तक अपने डिटेंशन सेंटर में कैद रख सकते हैं.

हैरानी की बात तो ये है कि मानवाधिकार को ताक पर रखकर बनाए गए इस खतरनाक कानून के तहत पकड़े गये और अगवा किये गये लोगों की खोजखबर उनके घरवालों को देना भी जरूरी नहीं है. पाकिस्तानी फौज बलूचों और पश्तूनों को पिछले कई सालों से जिस तरह सरेआम गोलियों का निशाना बनाती रही है. उससे ये सवाल भी गहरा रहा है कि अगवा किये गये वो चालीस हजार लोग जिंदा हैं भी कि नहीं.

गुमशुदा अपनों को तलाशने और बलोच-पश्तून-सिंधी समुदाय पर पाकिस्तानी सेना की ज्यादती के खिलाफ पाकिस्तान से लेकर दुनिया भर में ऐसी आवाज उठती रही हैं. इन आवाजों को पाकिस्तान अबतक भले अनसुना करता रहा है. लेकिन अब ये आवाजें पाकिस्तान की संसद में भी गूंजी हैं और पाकिस्तानी कोर्ट में सुनी गई.

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खुलासा हुआ है कि पाकिस्तान के उत्तर पूर्व के कबीलाई इलाके फाटा और खैबर पख्तूनख्वा में पाकिस्तानी सेना के ऐसे अनगिनत डिटेंशन सेंटर जिसमें बिना कानूनी प्रक्रिया के सालों से बलोच नागरिकों को कैद कर रखा गया है. पाकिस्तानी सांसद फरहतुल्ला बाबर ने ऐसे कैदखानों को हॉरर चेंबर नाम दिया है.

पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट में भी नहीं मिला इंसाफ

बलूच समुदाय से हिरासत में लिये गए लोगों से जुड़ी शिकायतों की तादाद बढ़ने लगीं तो साल 2013 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तान सरकार से ऐसे बंदियों का पूरा ब्यौरा मांगा. करीब पांच साल बाद, अब जाकर पाकिस्तान सरकार ने ऐसी दो लिस्ट जारी की है. जिसमें एक में कुछ बलोच बंदियों की लिस्ट है. तो दूसरे में कुछ आर्मी डिटेंशन सेंटर का ब्योरा है. इसी के बाद पाकिस्तान के पेशावर हाईकोर्ट में एक्शन रेग्युलेशन कानून के गैर संवैधानिक बताकर याचिका लगाई गई

हद तो ये है कि पाकिस्तान का वजीरे-आजम बनने से पहले इमरान खान खुद पाकिस्तानी सेना की गुमशुदा साजिश के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे. बलूच नागरिकों के साथ पाकिस्तान में हो रहे अत्याचार पर तब इमरान के दिल में भी कसक उठी थी. उन्हें बांग्लादेश पर पाकिस्तानी अत्याचार पर शर्म भी महसूस हुई थी. लेकिन, पाकिस्तान का वजीर-ए-आजम बनने के बाद वही इमरान पाकिस्तानी फौज के इशारों पर नाच रहे हैं. बलूचों के साथ हो रही ज्यादती की याद उन्हें अब नहीं आती.

पिछले साल मई में संविधान संशोधन कर फाटा यानी ट्राइबल इलाकों को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में मिलाया गया. तब उम्मीद की गई थी कि बलोच आबादी के खिलाफ इस्तेमाल होने वाला एक्शन कानून खत्म कर दिया जाएगा. लेकिन पेशावर कोर्ट के सवाल-जवाब के बाद साफ हो चुका है कि पाकिस्तानी हुकूमत अपने कबिलाई इलाकों में अब भी बेरोकटोक मानवाधिकारों को रौंदने वाले इस काले कानून बरकरार रखे हुए है.

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इसी साल अप्रैल में सात सदस्यों वाले पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने भी गैरकानूनी तरीके से अगवा किये गये बलूच और पश्तून नागिरकों के हक का सवाल उठाया था. पाकिस्तानी फौज से उन लोगों की लिस्ट मांगी थी, जो उनके कब्जे में हैं. या जिन्हें दुनिया की नजरों से दूर पश्तू ख्वा के डिटेंशन सेंटर में रखा गया है. आप जानकर चौंक जाएंगे कि पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने जब से ये मुद्दा उठाया है. उसे पाकिस्तानी हुकूमत की नाराजगी भी झेलनी पड़ रही है.

इसी साल 30 मई को 7 सदस्यों वाले पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग के छह सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो चुका है. लेकिन इमरान सरकार ने पाकिस्तानी फौज के इशारे पर अभी तक उन छह पदों पर नई नियुक्तियां नहीं की हैं. पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग में अभी सिर्फ एक सदस्य है और वो बस घिसटकर चल रहा है.

इन सबके बीच अब ये खबर आ रही है कि पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की लार्जर बेंच ने खैबर पख्तूनख्वा की सरकार को ये आदेश जारी किया है कि वहां सात डिटेंशन सेंटर बने. जिसे इंटर्नमेंट भी कहा जाता है. उसमें मौजूद लोगों की लिस्ट अगले चौबीस घंटे में कोर्ट को सौंपी जाए.

पाकिस्तान का महापाप जगजाहिर!

आपको बता दें, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस भी बलूच-पश्तून गुमशुदा मामलों में पाकिस्तान को कड़ा एक्शन लेने की हिदायत देता रहा है. लेकिन उसका असर ढाक के तीन पात वाला रहा. अब ग्यारह साल बाद ही सही देखना ये है कि पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत पाकिस्तानी फौज के अपहरण कांड के पीड़ितों को इंसाफ दे पाती है या नहीं? या ये मौका भी दुनिया को दिखाना का छलावा बनकर रह जाता है.

आपको बता दें कि इंसाफ की आस में पाकिस्तान छोड़कर दुनिया के दूसरे हिस्सों में रहकर अपनी जंग लड़ रहे बलूच और पश्तून नागरिकों ने हिन्दुस्तान से भी अपील की है कि वो बांग्लादेश की तरह बलोचिस्तान को भी पाकिस्तान के गैरकानूनी कब्जे से छुड़ाएं. चंद घंटे पहले ही लंदन में बलोच नेशनल मूवमेंट ने उन लोगों को याद करते हुए शहीद दिवस मनाया है. जो पाकिस्तानी फौज की बेइंतहा जुल्म और गोलियों का शिकार हो गए.

जाहिर है कश्मीर में मानवाधिकार का मुद्दा जबरिया उठाने की कोशिश करने वाले पाकिस्तान पहले अपने गिरेबां में झांक ले, सवाल दुनिया भर में उठ रहे हैं. और इन्हें अब और ज्यादा दरकिनार करना उसके बूते में नहीं है.

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